दैनिक प्रार्थना

हमारे मन में सबके प्रति प्रेम, सहानुभूति, मित्रता और शांतिपूर्वक साथ रहने का भाव हो


दैनिक प्रार्थना

है आद्य्शक्ति, जगत्जन्नी, कल्याणकारिणी, विघ्न्हारिणी माँ,
सब पर कृपा करो, दया करो, कुशल-मंगल करो,
सब सुखी हों, स्वस्थ हों, सानंद हों, दीर्घायु हों,
सबके मन में संतोष हो, परोपकार की भावना हो,
आपके चरणों में सब की भक्ति बनी रहे,
सबके मन में एक दूसरे के प्रति प्रेम भाव हो,
सहानुभूति की भावना हो, आदर की भावना हो,
मिल-जुल कर शान्ति पूर्वक एक साथ रहने की भावना हो,
माँ सबके मन में निवास करो.

Wednesday 31 December, 2008

विदा २००८, स्वागतम २००९

आज वर्ष २००८ का आखिरी दिन है. रात बारह बजे वर्ष २००८ सबसे विदा लेगा, और वर्ष २००९ हमारी जिंदगी में कदम रखेगा. 

शताब्दी एक्सप्रेस में स्टेशन आने से पहले एनाउंसर कहती है - अगर आप इस स्टेशन पर उतर रहे हैं तो हम आशा करते हैं कि आपकी यात्रा सुखद रही होगी. स्टेशन से गाड़ी चलने पर वह कहती है - जो लोग इस स्टेशन से ट्रेन में चढ़े हैं, हम आशा करते हैं कि उनकी यात्रा सुखद रहेगी. कुछ ऐसा ही मैं हिन्दी ब्लागजगत के सहयात्रिओं  से कहना चाहता हूँ - आशा है वर्ष २००८ आपके लिए सुखद रहा, और वर्ष २००९ आपके लिए सुखद रहेगा. 

Monday 29 December, 2008

कौन थी पहली मिस इंडिया?

क्या आप जानते हैं कि पहली मिस इंडिया कौन थी और वह कब मिस इंडिया चुनी गई? 
फर्स्ट  मिस इंडिया थी प्रमिला  (एस्थर  अब्राहम). वह वर्ष १९४९ में मिस इंडिया चुनी गई.

वह अब ९० वर्ष की हो गई हैं.

Saturday 27 December, 2008

कुछ महान कथन जो आपकी जिंदगी को बेहतर बना देंगे

अगर समय आपका इंतज़ार नहीं करता तो न करे, 
आप घड़ी से बेटरी निकाल कर फेंक दो और बिंदास जिंदगी जियो. 

दुनिया से यह उम्मीद करना कि वह आपसे अच्छा व्यवहार करेगी 
क्योंकि आप एक अच्छे इंसान हैं, 
यह ऐसा है जैसे शेर से यह उम्मीद करना कि 
वह आपको इसलिए नहीं खायेगा क्योंकि आप शाकाहारी हैं. 

पढ़े-लिखे लोग कहते हैं कि सुन्दरता बाहर से नहीं आंकी जाती 
और न ही इस बात से कि आप कैसे कपड़े पहने हुए हैं, 
सुन्दरता आंकी जाती है कि आप अन्दर से कैसे हैं. 
इसलिए कल बिना कपड़े पहने बाहर जाइए और देखिये 
लोग आपकी सुन्दरता की कैसे  तारीफ़ करते हैं. 

ऐसे मत चलिए जैसे आप दुनिया के राजा हैं, 
बल्कि ऐसे चलिए जैसे आपको इस बात की कोई परवाह नहीं है 
कि दुनिया पर कौन राज्य करता है. 
यह सही सोच कहलाता है ..... बिंदास बनो. 

हर स्त्री यह आशा करती है कि उसकी बेटी ऐसे आदमी से शादी करेगी 
जो उस आदमी से बेहतर होगा जिस से उसने शादी की थी, 
और बेटे को कभी ऐसी बीबी नहीं मिलेगी जो उस के पिता की बीबी से बेहतर हो.   

वह एक अच्छा आदमी था. उस ने कभी धूम्रपान नहीं किया, 
शराब नहीं पी, किसी दूसरी औरत के साथ कोई चक्कर नहीं चलाया. 
जब उस की म्रत्यु हुई तो बीमा कम्पनी ने यह कह क्लेम देने से मना कर दिया 
कि जो जिंदगी जिया ही नहीं, मर कैसे सकता है. 

एक आदमी ने अपनी पत्नी को मगरमच्छों से भरे तालाब में फेंक दिया. 
अब उस पर जानवरों पर अत्त्याचार करने का मुकदमा चल रहा है. 

आत्महत्या करने के बहुत से तरीके हैं, जहर खाना, नींद की गोलियां लेना, 
फांसी लगा लेना, ऊंची बिल्डिंग से कूद जाना, रेल पटरियों पर लेट कर जान दे देना, 
लेकिन उन्होंने इस के लिए शादी करना तय किया. 
 
केवल २० प्रतिशत लड़कों के पास दिमाग होता है, 
बाकी के पास महिला मित्र होती हैं.   

जिंदगी में जितनी भी अच्छी प्यारी चीजें हैं, वह या तो गैरकानूनी हैं, 
या कानून ने उन पर पाबंदी लगा रखी है, या बहुत महंगी हैं, 
या उनकी शादी किसी और से हो गई है. 
  
सुस्ती हमारी सबसे बड़ी दुश्मन है - नेहरू ने कहा,
हमें अपने दुश्मनों से प्यार करना चाहिये - गाँधी ने कहा,
इसलिए बहुत से लोग सुस्ती से प्यार करते हैं. 
  
दस प्रतिशत सड़क दुर्घटनाएं शराब पीकर गाड़ी चलाने से होती हैं. 
इसका अर्थ हुआ कि ९० प्रतिशत सड़क दुर्घटनाएं बना शराब पिए गाड़ी चलाने से होती हैं. 
  

Thursday 25 December, 2008

Tuesday 23 December, 2008

एक नेता चाहिए

मुंबई आतंकी हमलों के बाद भारत का हर नागरिक एक स्वर में बोल रहा है आतंकवाद के ख़िलाफ़ (उनको छोड़ कर जिनके ईमान में देश के लिए बफादारी नहीं). इस अप्रत्याशित एकता को संजोये रखने के लिए और इस विचारधारा को सही दिशा देने के लिए आज देश को एक नेता की जरूरत है. 

यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि आज़ादी के बाद इस देश में कोई नेता पैदा नहीं हुआ. कहते तो बहुत हैं ख़ुद को नेता पर कहने से क्या होता है, हकीकत में तो यह सब मात्र राजनीतिबाज हैं जो राजनीति का व्यवसाय करते हैं. चुनाव में पैसा लगाते हैं और जीत जाने पर हजारों गुना नफा कमाते हैं. इनका मजहब पैसा है. इनका ईमान पैसा है. 

देश को एक ऐसा नेता चाहिए जिसका धर्म, ईमान सब कुछ देश हो, जिसके मन, वचन और कर्म में जनता की सेवा ही एकमात्र उद्देश्य हो. जो शासक नहीं सेवक हो. काश एक ऐसा नेता मिले इस देश को. 

Monday 22 December, 2008

जनता एक हो सकती है पर नेता नहीं

यह भारत का दुर्भाग्य है कि किसी भी विपत्ति में भारत की जनता एक हो सकती है, पर नेता कभी देश हित में एक नहीं हो सकते. उनके अपने निजी स्वार्थ हैं जिन्हें वह हमेशा देश हित से ऊपर रखते हैं. 

मुंबई हमलों के बाद देश की जनता एक होकर खड़ी हो गई, हर नागरिक एक ही बात कह रहा था, आतंकवाद के ख़िलाफ़ हम सब एक हैं, आतंकवाद को हम किसी धर्म से जोड़ कर नहीं देखते. उस समय इस एक राय का ऐसा तीव्र ज्वार उठा था कि सरकार और सारे राजनीतिबाज घबडा गए थे. उसी का असर है कि इतनी जल्दी केन्द्रीय जांच एजेंसी और कानूनों को सख्त बनाना सम्भव हो सका. 

लेकिन राजनीतिबाज ज्यादा दिन तक अपनी घटिया राजनीति से दूर नहीं रह सके. अंतुले ने जनता की इस राय के ख़िलाफ़ बिगुल बजा दिया, कि मेरी पार्टी आतंकवाद को धर्म से जोड़ कर देखती है, मेरी पार्टी यह मानती है कि मुसलमानों को आतंकवाद से जोड़ना पार्टी और सरकार के अस्तित्व के लिए आवश्यक है. धीरे-धीरे और राजनीतिबाज भी अंतुले के साथ खड़े होने लगे. दिग्विजय सिंह, लालू और अब कम्युनिस्ट, कुछ ही दिनों में स्थिति पहले जैसी हो जायेगी. सोनिया और मनमोहन ने अभी तक अंतुले के ख़िलाफ़ कोई कदम नहीं उठाया, यह इस बात का सबूत है कि इस सारे मामले में यह दोनों और इनकी पार्टी कांग्रेस पूरी तरह शामिल हैं. मजबूरी में कुछ कदम उठाने पड़ रहे हैं. अंतुले के माध्यम से देश के मुसलमानों को यह समझाने की कोशिश हो रही है कि कांग्रेस की सोच और नीतियों में कोई बदलाव नहीं आया है. दुःख की बात यह है कि यह राजनीतिबाज यह नहीं देख रहे कि मुसलमानों का एक बड़ा वर्ग आतंकवाद को इस्लाम से अलग देखता है और उस के ख़िलाफ़ है. यह हमेशा से उन्हें धर्म के नाम पर भड़काते रहें हैं और अब भी यही कर रहे हैं. मुंबई हमलों के बाद जो एकता देश में नजर आई थी उसे बिगाड़ने के काम  में फ़िर से लग गए हैं यह घटिया देशद्रोही राजनीतिबाज.

देश के वह नागरिक, जो सोच सकते हैं, कह सकते हैं, अपना कर्तव्य पहचानें और इन घटिया देशद्रोही राजनीतिबाजों की इन चालों को सफल न होने दें. हिन्दी ब्लागजगत एक मुहिम चलाये जिसमें अलगाववाद के ख़िलाफ़ मोर्चा खोला जाय. ज्यादा से ज्यादा लेख लिखे जाय और इन लेखों पर ज्यादा से ज्यादा टिपण्णी की जाय. आइये हम सब आम आदमी मिल कर अपने देश को बाहरी और इन अंदरूनी आतंकवादियों से बचाएँ.

Saturday 20 December, 2008

आतंकवाद, मुसलमान और कांग्रेस - मैं शर्त हार गया

मुंबई हमलों के बाद ऐसा लग रहा था जैसे सारा भारत एक हो गया है. सब भारतवासी एक स्वर में आतंकवाद के ख़िलाफ़ एक जुट हो गए थे. आनन्-फानन में केन्द्रीय जांच एजेंसी और कुछ  सख्त कानून भी बन गए. मुसलमान एक स्वर में आतंकवाद और आतंकवाद को इस्लाम से जोड़ने के ख़िलाफ़ खड़े हो गए. 

इस सब से मैं बहुत प्रोत्साहित था. मगर मेरा एक मित्र नहीं. उस का कहना था कि यह सब कुछ दिनों का नाटक है और जल्दी ही मुसलमानों के कुछ नेता और धर्म की राजनीति करने वाले नेता फ़िर वही पुराने राग अलापने लगेंगे. हमारे बीच शर्त लग गई. 

इन धर्म की राजनीति करने वालों ने कुछ दिनों का इंतज़ार भी नहीं किया और फ़िर शुरू हो गए. अंतुले ने बिगुल बजाया, लालू के चमचे हाँ में हाँ मिलाने लगे. मुसलमानों के नेता भी यही दोहराने लगे. कांग्रेस हमेशा की तरह मामले को टालने की कोशिश करने लगी. अंतुले को कैसे निकालें, राष्ट्र हित जरूरी है या मुसलमानों के वोट, इस दुविधा में फ़िर फंस गई कांग्रेस. फ़िर हो गई धर्म की राजनीति शुरू. अब जल्दी ही कुछ हिंदू भी इस में शामिल हो जायेंगे. मुंबई में निर्दोषों की हत्या फ़िर बेकार जायेगी. भारत पाकिस्तान के ख़िलाफ़ सबूत इकट्ठे कर रहा है, पर इन घरेलू आतंकवादियों का क्या करेगा? 

नतीजा - मैं शर्त हार गया. 

Friday 19 December, 2008

सोनिया जी, क्या आप कुछ नहीं करेंगी?

मैंने अपनी पिछली पोस्ट में लिखा था कि कांग्रेस द्वारा अंतुले के बयान से पल्ला झाड़ लेना काफ़ी नहीं है. अब तो यह लगता है कि अंतुले का बयान एक सोचे-समझे षड़यंत्र का एक हिस्सा है, जिस से पकिस्तान के सामने भारत के पक्ष को कमजोर किया जा सके. अंतुले भारत सरकार का एक मंत्री है, इसलिए उस का बयान बहुत महत्वपूर्ण हो जाता है. यह बयान भारत सरकार के द्वारा दिए जा रहे सबूतों की काट करता है. 
 
कांग्रेस समर्थक एक अंग्रेजी के प्रसिद्द अखबार को भी यह बयान बहुत ग़लत लगा है और आज इस अखबार ने अपने सम्पादकीय में कहा है प्रधानमंत्री को तुंरत अंतुले का इस्तीफा माँगना चाहिए. अगर ऐसा नहीं किया गया तो भारत को बहुत नुक्सान उठाना पड़ेगा. आज सारा देश आतंक के ख़िलाफ़ एक जुट है. केवल अंतुले जैसे कांग्रेसी देश के ख़िलाफ़ खड़े हैं. यह भी हो सकता है कि अंतुले ही भारत के अन्दर सीमापार से आ रहे आतंकवाद को सुबिधायें मुहैया कराता है. 

कुछ दिन पहले, एक और मंत्री सईद ने सुरक्षा परिषद् में दिए गए भाषण से नरिमान हाउस का नाम ही गायब कर दिया. अब सुरक्षा परिषद् के रिकार्ड्स में भारत का एक ऐसा भाषण दर्ज है जिस के अनुसार मुंबई में नरिमान हाउस पर कोई हमला नहीं हुआ और कोई यहूदी नहीं मारा गया. 

कितनी शर्म की बात है सोनिया जी, आपकी कांग्रेस पार्टी और उसकी सरकार देश का ऐसा अहित कर रही हैं. अगर आप, आपकी पार्टी एवं सरकार इस देश से प्यार करते हैं तब अंतुले और सईद जैसे मंत्रिओं को तुंरत बर्खास्त किया जाय और उनके ख़िलाफ़ उचित कानूनी कार्यवाही की जाय. 

Thursday 18 December, 2008

सोनिया जी, क्या इतना काफ़ी है?

अंतुले कांग्रेस की केन्द्र सरकार में अल्पसंख्यक मंत्रालय में मंत्री है. कल उस ने मुंबई में हेमंत करकरे की मौत पर जो टिपण्णी की, उस से कांग्रेस ने पल्ला झाड़ लिया. कांग्रेस प्रवक्ता अभिषेक सिंघवी ने उसे अंतुले की व्यक्तिगत राय कह कर मामले को दफनाने की कोशिश की. पर यह काफ़ी नहीं है. अंतुले ने जो बात कही है वही बात पकिस्तान के कुछ अखबारों में कही जा रही है. आज जब आतंकवाद के ख़िलाफ़ सब भारतीय एक हैं और इसे धर्म से अलग करके देखा जा रहा है, अंतुले का बयान हिन्दुओं के ख़िलाफ़ एक मोर्चा खोलना है और धर्म को फ़िर आतंकवाद से जोड़ देना है. यह बयान पाकिस्तान की बात को समर्थन देकर मजबूत करता है. बीजेपी ने सही कहा है कि अंतुले की बात से लग रहा है कि वह भारत में पकिस्तान की आईएसआई का एजेंट है.  

अंतुले के ख़िलाफ़ कार्यवाही की जानी चाहिए. उसे मंत्रिमंडल से तुंरत बर्खास्त किया जाना चाहिए, और फ़िर उस के ख़िलाफ़ कानूनी कार्यवाही की जानी चाहिए.

Wednesday 17 December, 2008

चाँद बन गया माथे की बिंदी

कल रात मेरी हथेली पर,
चाँद उतर आया. 
पिछली ओला वृष्टि में टूट गई थी खपरेल,
उतर आया उसी टूटी खपरेल से,
चाँद मेरी हथेली पर.

विरह से तपता वदन,
काम से थकी दुखती हथेली,
चाँद का शीतल स्पर्श,
कंपा गया मुझे अन्दर तक,
सिहर कर मैंने करली हथेली बंद,
पर फिसल गया चाँद,
खाली रह गई बंद मुट्ठी.

मुट्ठी खोलती और चाँद को पकड़ती,
पर चाँद हर बार फिसल जाता,
उतर आया था जैसे बचपन, 
उस रात मेरी झोंपड़ी में.

अटखेलियाँ करता रहा चाँद,
सारी रात मेरे सिरहाने,
कभी बन जाता मेरे माथे की बिंदी,
कभी चूम लेता मेरे होंटो को,
कभी नाक पर सुरसुरी करता,
कभी झांकता मेरी आंखों में,
मैं सिमट जाती, करबट बदलती,
चाँद सहला देता मेरे चेहरे को,
सारे वदन को,
कब नींद आ गई पता नहीं,
सपने में देखा,
तुम आए थे चाँद बन कर. 

Sunday 14 December, 2008

कल १३ दिसंबर था


कल का दिन हमें याद दिलाता है उन शहीदों की जिन्होनें पार्लियामेन्ट और वहां मौजूद राजनीतिबाजों की रक्षा करने में अपने प्राणों की आहुति दी थी. हम भारतवासी उन शहीदों को नमन करते हैं. 

पिछले वर्षों की भांति, इस वर्ष भी, इन शहीदों की स्मृति में जो कार्यक्रम पार्लियामेन्ट में आयोजित किया गया, उस में लोकसभा सदस्यों की मौजूदगी नगण्य थी. लानत है इन राजनीतिबाजों पर, एक बार फ़िर अपमान किया इन्होनें अपने शहीदों का, एक बार फ़िर दिखाई एहसानफ़रामोशी उनके लिए जिन्होनें इन्हें बचाने में अपनी जान दे दी. 

एक वीडियो देखिये आतंकियों द्वारा पार्लियामेन्ट पर हमले का: 


दूसरा वीडियो है इन राजनीतिबाजों द्वारा पार्लियामेन्ट पर हमले का:


मुंबई हमलों के बाद भारत सरकार ने पाकिस्तान को आतंकिओं की सूची दे कर कहा है कि इन्हें भारत के हवाले किया जाय ताकि उन पर देश के कानून के अनुसार मुकदमा चलाया जा सके और उनके अपराध की सजा दी जा सके. लेकिन एक आतंकी जिसे इस देश का सर्वोच्च कानून म्रत्युदंड दे चुका है, उसे यह सरकार सजा नहीं दे रही, बल्कि  उस की दामाद की तरह खातिर कि जा रही है. इन और आतंकवादी दामादों को पाकिस्तान् से लाकर इस देश का पैसा क्यों बेकार करना चाहती है यह सरकार? शर्म आनी चाहिए इस सरकार को? 


Saturday 13 December, 2008

यही मौका है, इसका फायदा उठाओ

भारत की जनता आज आतंकवाद के ख़िलाफ़ एक स्वर में बोल रही है. आज आतंकवाद के ख़िलाफ़ हर नागरिक केवल एक भारतीय है, न कोई हिंदू है, न कोई मुसलमान, न सिख, न ईसाई, न और किसी और वर्ग का. राजनीतिबाजों के ख़िलाफ़ जो जन मत बना उसने सब को सोचने पर मजबूर कर दिया. कुछ इस्तीफे दिए गए. कुछ सख्त बातें की गईं. कुछ सख्त कदम उठाने की प्रक्रिया शुरू हुई. लोक सभा में सब राजनीतिबाज एक स्वर में बोले. अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भी भारत को अभूतपूर्व समर्थन मिल रहा है. 

यह एक बहुत अच्छा अवसर है, इस का पूरा फायदा उठाना चाहिए. जनता को राजनीतिबाजों पर यह दबाब बनाए रखना चाहिए. राजनीतिबाजों को दलगत राजनीति से ऊपर उठ कर यह एकता दिखाते रहना चाहिए,मन, वचन और कर्म तीनों में. 

हिन्दी ब्लागजगत को भी आतंकवाद के विरुद्ध एक स्वर में लिखना चाहिए. 

Friday 12 December, 2008

देश को शासक नहीं ट्रस्टी चाहिए

भारत में प्रजातंत्र है - प्रजा का तंत्र, प्रजा द्वारा, प्रजा के लिए. प्रजा अपने प्रतिनिधियों द्वारा इस तंत्र का प्रबंधन करती है. यह दुःख और निराशा की बात है कि यह प्रतिनिधि शासकों जैसा व्यवहार करते हैं. प्रजातंत्र में शासक और शासन की बात करना ग़लत है. ऐसा सोचना और व्यवहार करना उस से भी ज्यादा ग़लत है. हर राजनितिक पार्टी ऐसा अनुचित व्यवहार कर रही है. मीडिया भी यही कहता  है कि इस राज्य में इस पार्टी का शासन है और उस राज्य में उस पार्टी का. क्या जनता ने इन्हें शासन करने के लिए चुना था, या जनता के प्रतिनिधि बन कर राज्य का प्रबंधन करने के लिए? 

ब्रिटिश राज की गुलामी से मुक्त होने के बाद, भारत एक प्रजातान्त्रिक गणतंत्र बना. आज ६० वर्षों से अधिक बीत पाए पर प्रजातंत्र जैसी कोई बात नजर नहीं आती. प्रजा के प्रतिनिधियों में प्रजा के प्रति कोई बफदारी की भावना नहीं है. प्रजातंत्र के प्रति कोई बफदारी की भावना नहीं है. जिस राज्य के प्रबंधन की जिम्मेदारी इन प्रतिनिधियों को दी गई थी, उस राज्य को यह लोग लूट रहे हैं, खोखला कर रहे हैं. इनका हर सोच, हर काम, उनके अपने किए है. इनके व्यवहार में केवल भ्रष्टाचार और अनेतिकता ही दिखाई देते हैं. 

आज इस देश को शासक नहीं ट्रस्टी चाहियें. भरत जैसे ट्रस्टी. राम पिता की आज्ञा से बन गए थे. सारी अयोध्या उन्हें मनाने के लिए बन में गई पर वह आने के लिए तैयार नहीं हुए. उन्होंने यही कहा कि उनके वापस आने तक भरत अयोध्या का राज कार्य संभालें. उस समय अयोध्या में राजतन्त्र था. भरत राज्य करते, इस में कुछ भी अनुचित नहीं होता. पर भरत राजतन्त्र में भी इसके लिए तैयार नहीं हुए. उन्होंने स्वयं को राम के प्रतिनिधि के रूप में ही स्वीकार किया, और राम के वापस आने तक अयोध्या का प्रबंधन एक ट्रस्टी के रूप में किया. जैसे राम बन में रहे बैसे ही भरत नंदीग्राम में झोपड़ी बना कर रहे. 

राजतन्त्र में एक राजा वनवासी की तरह रहा. पर आज प्रजातांत्रिक भारत में प्रजा के प्रतिनिधि राजा की तरह रहते हैं. प्रजा की उन्हें कोई चिंता नहीं. कितनी दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति है? कब हमारा देश इस दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति से बाहर आएगा? कभी बाहर आएगा भी या नहीं? हे ईश्वर मेरे देश की रक्षा कर. जनता और जनता के प्रतिनिधियों को सदबुद्धि दे. 

Thursday 11 December, 2008

बेईमानों की सरकार

आज भारत में जो सरकार है वह जनता ने नहीं चुनी. वह बेईमानी से इस देश पर थोपी गई है. वह बेईमानों की सरकार है. पिछले दिनों जब इस सरकार के ख़िलाफ़ अविश्वास पर मतदान हुआ था, कांग्रेस ने इस सरकार को बचाने के लिए जम कर बेईमानी की थी. समाजवादी पार्टी और कुछ दूसरी पार्टियों के सांसदों ने पैसे और बहुत से फायदे लिए थे इस सरकार के समर्थन में वोट डालने के लिए. एक ऐसा बेईमान नेता तो एक प्रदेश का मुख्य मंत्री बन गया. 

आज ख़बर है समाजवादी पार्टी के मुलायम सिंह की बेईमानी की और इस बेईमान सरकार द्वारा उसे बचाने की. सीबीआई मुलायम सिंह के ख़िलाफ़ बेईमानी से कमाए गए अंधाधुंध धन के बारे में जांच कर रही थी. अब सीबीआई ने अदालत में इस केस को बंद करने के लिए याचिका दी है. सीबीआई का कहना है कि ऐसा उस ने केन्द्र सरकार के हुक्म पर किया है. 

आज अखबार में एक और ख़बर है कि भारत भ्रष्टाचार में दुनिया का पाँच नंबर का देश है. लेकिन इस बेईमान सरकार जैसी कोई और सरकार दुनिया में शायद ही हो. सरकार को समर्थन देने वाले बेईमानों के ख़िलाफ़ जांच बंद करने का आदेश देने वाली सरकार भी शायद ही दुनिया में कोई और हो. बेईमानी से बनी और बेईमानों के समर्थन से चल रही यह सरकार भ्रष्टाचार के छेत्र में एक अजब मिसाल है.  

Wednesday 10 December, 2008

आतंकवाद को जिहाद का नाम देना ग़लत है

विश्व में बहुत से आतंकवादी अपनी अमानवीय कार्यवाहियों को जिहाद का नाम देते हैं. उसे इस्लाम से जोड़ कर यह साबित करते हैं कि जो कुछ वह कर रहे हैं वह इस्लाम का तकाजा है. इस्लाम के बहुत से धार्मिक नेता इस का विरोध करते हैं. उनका कहना है कि इस्लाम इस तरह के कामों की इजाजत नहीं देता. मगर कहीं न कहीं, लोग इन आतंकिओं की बात का समर्थन कर देते हैं, उन्हें जिहादी मान कर, उन्हें जिहादी कह कर. 

जो कत्लेआम यह आतंकी कर रहे हैं वह जिहाद नहीं है. जिहाद तो इंसान अपने अन्दर छिपी बुराई के ख़िलाफ़ करता है. जिहाद एक तरह की तपस्या है, प्रायश्चित है. वह किसी के ख़िलाफ़ नहीं होता. वह सिर्फ़ बुराई के ख़िलाफ़ होता है. हम जब सच बोलते हैं, झूट के ख़िलाफ़ जिहाद करते हैं. हम जब प्रेम करते हैं, नफरत के ख़िलाफ़ जिहाद करते हैं. अहिंसा हिंसा के ख़िलाफ़ जिहाद है. ईमानदारी बेईमानी के ख़िलाफ़ जिहाद है. 

Sunday 7 December, 2008

एक परिवार बनाम देश के बाकी सारे परिवार

एक तराजू लीजिये, एक पलड़े में एक परिवार रखिये और दूसरे में देश के बाकी सारे परिवार, एक परिवार का पलड़ा नीचे झुक जायेगा. कौन है यह परिवार? पिछले कुछ दिनों से जो अखवार में छप रहा है, टीवी पर दिखाया जा रहा है, उसके अनुसार यह परिवार है, गाँधी परिवार. इस परिवार में हैं चार वयस्क और कुछ बच्चे. यह परिवार अकेला देश के सारे परिवारों पर भारी पड़ता है. इस परिवार की सुरक्षा पर  जनता का जितना पैसा खर्च होता है वह देश के बाकी परिवारों पर खर्च होने वाले पैसे से कहीं ज्यादा है. 

इस परिवार की सुरक्षा करता है - स्पेशल प्रोटेक्शन ग्रुप (एसपीजी). देश की जनता को आतंकी हमलों से बचाने के लिए एनएसजी का गठन किया गया है. एनएसजी के बहुत से कमांडोज को जनता की सुरक्षा से हटा कर कुछ राजनीतिबाजों की सुरक्षा पर लगा दिया गया है. अब तुलना करें  एसपीजी और  एनएसजी की. वर्ष २००८ -२००९ में  एनएसजी का बजट है १५८ करोड़ रुपये. इस के मुकाबले में एसपीजी का बजट है १८० करोड़ रुपये. यानी, देश की जनता की सुरक्षा पर जितना पैसा खर्चा हो रहा है, उससे कहीं ज्यादा पैसा इस अकेले परिवार की सुरक्षा पर खर्च हो रहा है. 

कितना शर्मनाक है यह, देश के लिए, जनता के लिए, इस परिवार के लिए. 

Saturday 6 December, 2008

निर्दोषों की लाशों पर कुर्सी की लड़ाई

आज सारा देश दुखी है, मुंबई में कितने निर्दोष आतंकियों की गोली का निशाना बन गए. उनकी कोई दुश्मनी नहीं थी आतंकियों से, आतंकी उन्हें जानते भी नहीं थे, पर फ़िर भी यह निर्दोष अपनी जान गवां बैठे. दुखी लोग इकट्ठे होकर संवेदना प्रकट कर रहे हैं. 

सारा देश आक्रोश से भरा हुआ है - 'बस बहुत हो गया'. जन आक्रोश से घबराई सरकार ने भी आक्रोशित होने का नाटक शुरू कर दिया. बयानबाजी शुरू हो गई. गलती किस की थी, किसने अपना कर्तव्य पूरा नहीं क्या? लोग अपनी गलती दूसरों पर डालने लगे, क्रिकेट बंद हो गई पर गलती उछालने का खेल चल रहा है. कुछ लोग इस दुखी समय में कुर्सी का खेल खेलते रहे. उन्होंने सोचा, कोई न कोई तो जायेगा, अगर अपना दांव लग गया तो उसकी खाली कुर्सी मेरी हो सकती है. महा सीएम ने अपनी जान लगा दी अपनी कुर्सी बचाने में, पर बची नहीं. हाई कमान समझ नहीं पा रही थी, किसे दें कुर्सी? किसकी बफदारी पर यकीन करें. योग्यता की तलाश नहीं थी. सबसे ज्यादा बफादार की तलाश थी. एक को कुर्सी मिली. दूसरे ने गालियाँ देनी शुरू कर दी. 

यह है इन की श्रद्धांजलि, उनके लिए जो इनकी सरकार की नालायकी की वजह से मारे गए. 

Thursday 4 December, 2008

सुरक्षा में बेशर्मी और बेईमानी

जनता असुरक्षित है पर सेंकड़ों करोड़ रुपए खर्च किए जा रहे हैं कुछ राजनीतिबाजों की सुरक्षा पर. 
७००० एनएसजी जांबाजों में से १७०० जांबाज इन नेताओं की सुरक्षा में लगा दिए गए हैं. 
कितनी शर्म की बात है कि जिस एनएसजी का आतंकवाद  से निपटने के लिय गठन किया गया था, उसके जवान इन घटिया राजनीतिबाजों को सुरक्षा प्रदान कर रहे हैं.
कुछ दिन पहले दिल्ली हाई कोर्ट ने कहा था, कि राजनीतिबाज कोई राष्ट्रीय सम्पदा नहीं है जिन्हें सुरक्षा प्रदान की जाय. 
४२२ वीआइपी की सुरक्षा में लगे हैं लगभग १०००० सुरक्षा कर्मी. इन में वह रेगुलर पुलिस वाले शामिल नहीं हैं जिन्हें उनकी अपनी ड्यूटी से हटाकर इन लोगों की सुरक्षा में लगाया जाता है. अकेले दिल्ली में १४२०० पुलिस वाले इन की सुरक्षा में लगाए गए हैं. कोई ताज्जुब नहीं कि दिल्ली की जनता बहुत ज्यादा असुरक्षित है. 
२४ घंटे वीआइपी की सुरक्षा में लगे इन सुरक्षा कर्मियों को जरूरी ट्रेनिंग भी नहीं दी जा पाती है.
इन वीआइपी में कुछ को हो सकता है खतरा रियल हो पर अधिकाँश को कोई खतरा नही है, पर यह देश के ऊपर वोझ बने हुए हैं. जनता का पैसा बरबाद करते हैं और जनता को ट्रेफिक समस्यायें पैदा करके परेशान करते हैं. लगभग २५० करोड़ रुपया खर्च होता है इस गैर-जरूरी सुरक्षा पर. ऐसे कुछ देश पर वोझ हैं - देवगोडा, अमर सिंह, राम विलास पासवान, सज्जन कुमार, बी एल जोशी, आर एल भाटिया, शरद यादव, रामेश्वर ठाकुर, ई एहमद, मुरली मनोहर जोशी, ब्रज भूषन शरण, प्रमोद तिवारी. 
वर्तमान और भूतपूर्व प्रधानमंत्रियों और गाँधी परिवार के सदस्यों को स्पेशल प्रोटेक्शन ग्रुप (एसपीजी) सुरक्षा प्रदान करता है. वर्ष २००८-२००९ के लिए इस ग्रुप का बजट है - १८० करोड़ रुपए. इसके मुकाबले में, एनएसजी, जो सारे भारतवासियों को सुरक्षा प्रदान करने के लिए है, का वर्ष २००८-२००९ का बजट है १५८ करोड़. 
वीआइपी सुरक्षा पाँच स्तर पर दी जाती है - एसपीजी, जेड प्लस, जेड, वाई, एक्स. जेड प्लस सुरक्षा एनएसजी ब्लेक केट्स द्वारा दी जाती है जिसमें ६ पर्सनल सुरक्षा अधिकारी, २ हेड कांस्टेबल, १२ कांस्टेबल, एक एस्कोर्ट, एक पायलट वेहिकिल. ३० राजनीतिबाज ऐसे हैं जिन्हें जेड प्लस सुरक्षा मिली हुई है. इनमें हैं - आडवानी, मायावती, नरेंद्र मोदी, जयललिता, मुरली मनोहर जोशी, अमर सिंह, पासवान. ६२ को जेड, २४३ को वाई, ८१ को एक्स स्तर की सुरक्षा मिली हुई है. 
क्या कहेंगे इसे? बेईमानी और बेशर्मी, या इस से भी कुछ अधिक? 
हटाओ सुरक्षा कवच इन राजनीतिबाजों से. 
जनता को दो यह सुरक्षा कवच. 

Wednesday 3 December, 2008

विश्वासघाती राजनीतिबाजों को देश निकाला दो

मुंबई आतंकी हमले के बाद जनता के मन में जन-प्रतिनिधियों के प्रति आक्रोश भरा हुआ है . बैसे तो हर आतंकी हमले के बाद यह आक्रोश जन्म लेता है, पर इस बार यह आक्रोश तीब्र रूप से मुखर भी हो उठा है. हर और जन-प्रतिनिधियों के प्रति अविश्वास जताया जा रहा है, उनकी भर्त्सना की जा रही है, उन्हें जिम्मेदार ठहराया जा रहा है निर्दोष नागरिकों की हत्या का. यह मांग भी की जा रही कि अपनी जिम्मेदारी न निभा सकने वाले जन-प्रतिनिधियों के ख़िलाफ़ कार्यवाही की जाय. इस सब से अधिकाँश जन-प्रतिनिधि बौखला उठे हैं. यह जन-प्रतिनिधि स्वयं को राजनेता कहते हैं. मेरे विचार में वह सिर्फ़ घटिया राजनीतिबाज हैं और इस देश और समाज पर एक गाली की तरह छा गए हैं. 

भारत एक प्रजातांत्रिक देश है. भारत की जनता, चुनाव प्रक्रिया द्वारा अपने प्रतिनिधि चुनती है, उन पर विश्वास करती है कि यह जन-प्रतिनिधि जनता के ट्रस्टी के रूप में देश का प्रबंध कार्य करेंगे. यह अत्यन्त अफ़सोस की बात है कि चुने जाने के बाद यह अपना जन-प्रतिनिधि का चौला उतार फेंकते हैं और स्वयं को राजनेता घोषित कर देते हैं. जनता के ट्रस्टी न रह कर जनता के राजा बन जाते हैं, उस पर राज्य करने लगते हैं. केवल अपने बारे में सोचते हैं, केवल अपनी सुरक्षा के लिए चिंतित रहते हैं, जनता को बांटने के नए-नए तरीके निकालते हैं, नफरत फेलाते हैं. कुर्सी पर पारिवारिक मालिकाना हक़ तय कर देते हैं. 

पिछले दिनों में जनता का उग्र रूप देख कर इनकी सिट्टीपिट्टी  गुम  हो गई है. इनकी प्रदूषित मानसिकता नंगी होकर बाहर आ गई है. वोटों की राजनीति के साथ अब इस्तीफों की राजनीति हो रही है. जनता को मूर्ख बनाने का हर-सम्भव प्रयास किया जा रहा है. दो इस्तीफों के बाद तीसरा राजनीतिबाज अकड़ जाता है और जिम्मेदारी तय करने का सारा नाटक धरा रह जाता है. परिवार की बफादारी देश से ऊपर है, यह बात फ़िर एक बार साबित हो जाती है. 

एक राजनीतिबाज देश पर कुर्बान हुए एक शहीद और उसके परिवार का अपमान करता है, सारा देश विरोध में उठ खड़ा होता है. इस राजनीतिबाज की पार्टी इस के घटिया व्यवहार पर खेद प्रकट करती है, पर यह बेशर्म राजनीतिबाज अपनी बेशर्मी पर शर्मसार होने की बजाये ऐसे जाहिर करता है जैसे उस ने देशभक्ति का कोई महान कार्य किया है. इस पार्टी की एक सहयोगी पार्टी का नेता इस घटिया व्यवहार का समर्थन करता है और उस शहीद के पिता पर ही ऊँगली उठाने लगता है. 

एक और राजनीतिबाज महिलाओं द्वारा राजनीतिबाजों में अविश्वास प्रकट करने पर उन्हें गालियाँ देने लगता है. उसकी पार्टी की एक समर्थक संस्था उसकी भाषा को आपत्तिजनक बताती है, पर राजनीतिबाजों में अविश्वास प्रकट करने को ग़लत ठहराती है. 

जिस जनता का प्रतिनिधित्व यह घटिया राजनीतिबाज कर रहे हैं, उसी को आँखें दिखा रहे हैं, उसी को धमका रहे हैं कि खबरदार अगर हम पर अविश्वास किया तो. यह मौका है भारत की जनता के पास, इन घटिया राजनीतिबाजों को उखाड़ फेंकने का. हे मेरे देशवासियों आओ हम सब एक होकर इन विश्वासघातियों को समुन्दर में धकेल दें. यह देश हमारा है. हमारा देश एक प्रजातंत्र है. इस के प्रति हमारा यह कर्तव्य है कि इन प्रजातंत्र के दुश्मनों, इन अवांछित तत्वों को देश निकाला दे दें.  

Monday 1 December, 2008

आतंकियों की यह हिम्मत कि खास आदमियों से पंगा ले लिया

पिछले चार दिन में मैंने जितना टीवी देखा है उतना चार महीनों में नहीं देखा. इन चार दिनों में मैंने देखा - हमेशा की तरह आम आदमियों को बेवजह मरते हुए, उनकी सुरक्षा के लिए जिम्मेदार पुलिस वालों को ख़ुद मरते हुए (शायद शहीद होते हुए), गैर-मराठी एनएसजी जांबाजों द्वारा मुंबई शहर को बचाते हुए और उनके दो जांबाजों को शहीद होते हुए, भारत के ग्रह मंत्री को दवाब में नैतिक जिम्मेदारी लेते हुए, महा-ग्रह मंत्री को इस जिम्मेदारी से बचते हुए और इस भयानक हत्याकांड को एक छोटी सी घटना कहते हुए, पहली बार वीआइपी होटलों और वहां जाने वाले खास लोगों पर हमला होते हुए, शायद इसलिए सोनिया और कांग्रेस/केन्द्र सरकार को डरते हुए और अचानक सख्त होने का नाटक करते हुए, और मीडिया को बहुत सी सही-ग़लत खबरें देते हुए. आपने भी यह सब देखा होगा. 

बहुत से सवाल उठते रहे मेरे मन में. अभी भी यह सवाल उठ रहे हैं. 

पहला सवाल - अगर यह हमला ताज और ओबेराय होटल पर न होकर केवल नरिमान हॉउस, प्लेटफार्म और बाज़ार  में हुआ होता तो क्या एनएसजी के जांबाज आते, सोनिया और केन्द्र सरकार सख्त होने का नाटक करते, पाटिल साहब इस्तीफा देते, फेडरल जांच एजेंसी तुरत-फुरत बन जाती, पाक सरकार से पंगा लिया जाता?

मैं ख़ुद ही पहला जवाब देता हूँ. मेरा जवाब है, "नहीं". आपका जवाब क्या है यह बाद में पूछूंगा.  

आम आदमी की तो आतंकी हमलों में मरने की आदत हो गई है. यह बात सही है कि आम आदमी पहले से ज्यादा गुस्सा  है, पर ध्यान से दखें तो यह गुस्सा भी अपने लिए नहीं, खास लोगों के लिए है - "इन आतंकियों की यह हिम्मत कि खास आदमियों की आरामगाहों पर हमला करें, उन्हें डराएँ? अरे आम आदमी को मारते रहो न, वह तो पैदा ही इस तरह मरने के लिए होता है. ब्लू लाइन उसे कुचलती है, पुलिस वाले उसे आतंकी कह कर मार देते हैं, हवालात में उसे मार दिया जाता है, महंगाई की मार से मर जाता है बेचारा, तुम भी जब-तब उसे मार देते हो". 

इस बार तुम्हारी यह हिम्मत कि खास आदमियों से भी पंगा ले लिया. उनकी तरफ़ आँख उठाने की तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई? हिन्दुस्तान का आम आदमी इस का विरोध करता है, अबकी बार जब हमला करो तो इसका ध्यान रखना कि खास आदमी की कोई तकलीफ न हो. उसके बदले में दो-चार आम आदमी ज्यादा मार लेना. 

अब आप भी बताइए. आपका जवाब क्या है?

मेरी आने वाली पोस्ट्स में ऐसे ही कुछ सवाल उठाऊँगा मैं. ख़ुद भी जवाब दूँगा और आपसे भी जवाब मांगूंगा. 

Sunday 30 November, 2008

डूब मरो अगर कुछ शर्म बाकी है

मैं जानता हूँ कि तुम्हारे अन्दर कोई शर्म बाकी नहीं है, पर एक कहावत है, 'चुल्लू भर पानी में डूब मरो', इसलिए मैंने अपनी पोस्ट का शीर्षक यह रख दिया. बुरा मत मानना. तुम भी जानते हो और मैं भी जानता हूँ कि तुम डूब कर मरने वाले नहीं, तुम तो इस देश को डुबाने के लिए अवतरित हुए हो. 

६० घंटे तक मुंबई में मौत का तांडव चलता रहा, सैकड़ों निर्दोष लोग मारे गए, विदेशी मेहमान मारे गए, पुलिस के कई अफसर और जवान मारे गए, एनएसजी के दो जांबाज शहीद हो गए. तुमने क्या किया? जनता ने मुंबई को तुम्हारे हवाले किया था. तुम मुख्यमंत्री बने, उपमुख्यमंत्री बने, मेयर बने, जनता के पैसे पर ऐयाशी की, कहाँ थे तुम जब जनता के ऊपर मौत मंडरा रही थी? जब सब शांत हो गया तो तुमने प्रेस को बुलाकर कहा कि मुम्बई जैसे बड़े शहर में ऐसी छोटी घटनाएं हो जाया करती हैं. क्या मैंने ग़लत कहा कि 'डूब मरो अगर कुछ शर्म बाकी है '.

तुमने कहा था मुंबई महा-मानुसों का है. बाहर वाले यहाँ क्या कर रहे हैं? तुमने उन पर हमले करवाए. तुम्हारे वीर महा-सैनिकों ने उन्हें ऐसे ही मारा जैसे आतंकवादियों ने इन ६० घंटों में निर्दोषों को मारा. कहाँ थे तुम इस दौरान, और तुम्हारे महा-सैनिक? जब यह बाहर वाले अपनी जान की बाजी लगाकर तुम्हारे मुंबई को और इन निर्दोषों को बचा रहे थे, किस बिल में जा छुपे थे तुम और तुम्हारे वीर महा-सैनिक? तुमने क्यों यह फरमान नहीं जारी किया कि 'कोई बाहर वाला मुंबई और इन्हें बचाने नहीं आएगा क्योंकि यह जिम्मेदारी हमारी है'. कहाँ थे तुम और क्या हुआ तुम्हारी जिम्मेदारी का? क्या मैंने ग़लत कहा कि 'डूब मरो अगर कुछ शर्म बाकी है '.

तुम्हारे बारे में क्या कहूं? बस एक बार फ़िर दोहराता हूँ कि है जनता द्वारा हराए गए, पर एक परिवार की बफादारी के बदले में सारे देश पर ग्रह मंत्री के रूप में थोप दिए गए तुम, 'डूब मरो अगर कुछ शर्म बाकी है '. 

आप तो प्रधानमन्त्री हैं, भले ही एक परिवार द्वारा मनोनीत किए गए. प्रधानमन्त्री तो सारे देश का होता है. परिवार को एहसान का बदला दो पर देश के लिए भी कुछ करो. इस देश के प्रति और इस देश की जनता के प्रति भी आपकी कुछ जिम्मेदारी है. पाँच साल हो गए, अब चलते-चलते तो उसे निभा जाओ. मुंबई में मौत बरस रही थी, आपने देशवासियों को संबोधित किया, पर किसी को भरोसा नहीं दे पाये. यह संबोधन होना या न-होना एक बराबर रहा. क्या प्रधानमन्त्री ऐसा होना चाहिये? आज सर्व-दलीय मीटिंग कर रहे हैं आप. आज तो कुछ कर डालिए, या आपके लिए भी यही कहना होगा - 'डूब मरो अगर कुछ शर्म बाकी है '? 

सैकड़ों निर्दोष लोग मारे गए, पर आप सब वोट की राजनीति करने में लगे गुए हैं. किसी भी पार्टी के हों पर काम सब के एक जैसे हैं - जनता को, देश को, समाज को एक बस्तु की तरह बेच कर अपनी जेबें भरना. आज जनता गुस्से से जल रही है, कहीं ऐसा न हो कि यह आग बाहर आ जाए. तुम राजनीतिबाज इस देश की जरूरत हो ऐसा साबित करो, कहीं ऐसा न हो कि जनता तुम्हें गैर-जरूरी मान कर कचरे के डब्बे में फैंक दे? कुछ करो वरना 'डूब मरो अगर कुछ शर्म बाकी है '.

कौन जिम्मेदार है इस देश की, इस देश की जनता की सुरक्षा के लिए? अपनी जिम्मेदारी समझो, उसे पूरा करो, वरना डूब मरो अगर कुछ शर्म बाकी है .

Saturday 29 November, 2008

क्या कभी मनमोहन कह पायेंगे - मैं हूँ न!!!

मुंबई में आतंकवादियों ने हमले किए. जब इन हमलों का फैलाव और न्रशंसता सामने आए तो सरकार को लगा कि कुछ करना चाहिए. अब यह सरकार कहने के अलाबा क्या कर सकती है, तो उस ने तय किया कि प्रधानमन्त्री राष्ट्र के नाम संदेश प्रसारित करें. प्रधानमन्त्री ने ऐसा किया भी. लेकिन उनके संबोधन से पहले जनता के मन में जो डर और आशंकाएं थी, शासन के प्रति जो अविश्वास था,  उस में कोई परिवर्तन नहीं हुआ.  मेरे एक जानकार ने उनका भाषण सुनने के बाद कमेन्ट किया - 'He does not inspire confidence'. 

एक नेता जो जनता के मन में अपने और अपनी सरकार के प्रति विश्वास पैदा नहीं कर सकता, वह देश को आतंकवाद से क्या बचायेगा? जब-तब आतंकी आते रहेंगे और यहाँ-वहां आतंकी हमले करते रहेंगे. इस देश में नागरिक इतनी स्वतंत्रता के साथ इधर-उधर नहीं घूम सकते, जितनी आसानी से आतंकवादी घूमते हैं. सरकार के हर कदम से आतंकवादी संगठनों और आतंकवादियों के मन में इस सरकार के प्रति यह विश्वास और पक्का हो जाता है कि यह सरकार उनके ख़िलाफ़ कभी कोई सख्त कदम नहीं उठाएगी. 

सारा देश चाहता है कि आतंकवादियों के ख़िलाफ़ सख्त कार्यवाही की जाय, पर यह सरकार ऐसा कोई काम नहीं करना चाहती जिस से उसे वोटों का नुक्सान हो. इस सरकार का हर सोच, हर एक्शन इस से प्रभावित है. इस सबके चलते क्या मनमोहन जी कभी यह कह पायेंगे, 'हे मेरे देशवासियों, घबराओ मत, में हूँ न?' 

Wednesday 26 November, 2008

हम कितने स्वतंत्र हैं?

हम सब एक स्वतंत्र देश के नागरिक हैं, पर क्या हम मन, वचन और कर्म से स्वतंत्र हैं? आइये स्वतंत्रता के दार्शनिक, व्यवहारिक और साधना पक्ष का अवलोकन करें और देखें कि हम कितने स्वतंत्र हैं:

दार्शनिक पक्ष - प्रत्येक पदार्थ का अस्तित्व स्वतंत्र है. कोई किसी के अस्तित्व में हस्तक्षेप नहीं करता, इसलिए सब पदार्थ अपने-अपने मौलिक गुणों के कारण अपनी विशिष्टता बनाए हुए हैं.

व्यवहार पक्ष - मनुष्य की स्वतंत्रता अथवा व्यक्तिगत स्वतंत्रता का मूल्यांकन किए बिना समाज स्वस्थ नहीं रहता. सामाजिकता के महत्त्व को स्वीकार करते हुए भी वैयक्तिक स्वतंत्रता का मूल्य कम नहीं आंकना चाहिए. 

साधना पक्ष - एक व्यक्ति दूसरे व्यक्ति की स्वतंत्रता मन बाधक न बने. ऐसा वही व्यक्ति कर सकता है, जो अपने विचार के सर्वोपरि सत्य नहीं मानता. अपने विचार को ही सब कुछ मानने वाला दूसरे की स्वतंत्रता में हस्तक्षेप किए बिना नहीं रहता. इस हस्तक्षेपी मनोवृत्ति को बदलने के लिए स्वतंत्रता की अनुप्रेक्षा बहुत मूल्यवान है. 

यदि हम स्वतंत्रता के इन पक्षों का विचार-पूर्वक अवलोकन करें तो यह पायेंगे कि कोई बिरला ही होगा जो स्वयं को स्वतंत्र कह सके. कहीं न कहीं, किसी न किसी रूप में हम परतंत्र हैं. यदि हम स्वतंत्र होना चाहते हैं तब हमें दूसरों की स्वतंत्रता में बाधक होना बंद करना होगा.   

(लोकतंत्र - नया व्यक्ति नया-समाज से साभार) 

Tuesday 25 November, 2008

सौ दिन में आतंकवाद समाप्त

मनोनीत प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह जी ने कहा है कि एक उच्च स्तरीय टास्क फोर्स बनाकर वह १००  दिन में आतंकवाद और नक्सलवाद समाप्त कर देंगे. उन्होंने यह भी कहा कि नक्सलवाद आतंकवाद से ज्यादा खतरनाक है. यह बात उन्होंने पहले भी कही थी पर किया कुछ नहीं था. क्या इस बार भी वह सिर्फ़ कहने की आदत के कारण कहने के लिए कह रहे हैं? आडवाणी जी ने उनकी इस बात का मजाक उड़ा दिया और कहा कि १०० दिन में मनमोहन जी की सिर्फ़ कहने वाली सरकार को ही समाप्त कर देना चाहिए. 

हम आडवानी जी से अपील करते हैं कि वह इस तरह मनमोहन जी की बात का मजाक न उड़ाएं. हो सकता है इस बार वह बाकई कुछ करना चाहते हों - 'शायद उनका आखिरी हो यह सितम, हर सितम यह सोच कर हम सह गए'. हम सोनिया जी से भी अपील करते हैं कि इस बार वह मनमोहन जी कुछ कर ही लेने दें. 

Monday 24 November, 2008

भारत का नेतृत्व कैसा हो?

अगले वर्ष लोक सभा के चुनाव होंगे. भारतीयों के सामने फ़िर एक अवसर है एक योग्य नेतृत्व चुनने का. यह नेतृत्व कैसा हो, इस बारे मैं आडवाणी जी ने हिन्दुस्तान टाइम्स लीडरशीप समिट में क्या कहा:
"भारत को एक ऐसे मजबूत नेतृत्व और एक ऐसी सुदृढ़ सरकार की जरूरत है जिसमें वर्तमान संकट पर काबू पाने और दीर्घकालिक लक्ष्यों को कृतसंकल्प होकर हासिल करने की एक सुस्पष्ट दृष्टि रखने की क्षमता हो। मैं ऐसा इसलिए कह रहा हूं क्योंकि मैं यह मानता हूं कि वर्तमान संकट यद्यपि आहत कर रहा है लेकिन यह भारत के लिए लम्बी छलांग लगाने हेतु अद्वितीय अवसर भी उपलब्ध करा रहा है। हम वैश्विक अर्थव्यवस्था और राजनीतिक व्यवस्था में हो रहे असाधारण परिवर्तनों के परिप्रेक्ष्य में भारत के पुनर्जागरण का मौका भी हासिल कर सकते हैं। यह नेतृत्व की वर्तमान पीढ़ी और हमारे नागरिक समाज पर निर्भर करता है कि वे राष्ट्र को आगे बढ़ने के लिए बौध्दिक और नीतिगत आधार प्रदान करें जिससे एक ऐसे राष्ट्र का निर्माण हो जो एक गौरवशाली और प्राचीन राष्ट्र की छवि के अनुरूप हो और जो बहुसंख्यक भारतीयों की सामाजिक तथा आर्थिक आकांक्षाओं को पूरा करे।"

Friday 21 November, 2008

आडवाणी जी ने सही मुद्दा उठाया है, कांग्रेस को हिन्दुओं से माफ़ी मांगनी चाहिए

प्रधानमंत्री जी ने आडवाणी जी को फोन करके कहा कि वह मालेगांव बम धमाकों में हो रही जांच का विवरण उनसे बांटना चाहते हैं. बहुत दिनों से, एक योजनावद्ध तरीके से, हिन्दुओं और हिंदू धर्म को बदनाम करने की साजिश चल रही है. यह कांग्रेस की मुस्लिम तुष्टिकरण नीति का एक हिस्सा है - हिन्दुओं को बदनाम करो तो मुसलमान खुश होंगे और उनके वोट मिलेंगे. जब बीजेपी ने इसका विरोध किया तो प्रधानमंत्री को लगा कि अब बात करनी ही चाहिए,  वरना मामला हाथ से निकल जायेगा. मुसलमानों को खुश करने के चक्कर में हिंदू नाराज हो रहे हैं. कहीं सत्ता हाथ से न निकल जाय. 

बीजेपी हमेशा से यह कहती रही है कि आतंकवादिओं का कोई धर्म नहीं होता. आतंकवादी सिर्फ़ आतंकवादी होता है. वह एक अपराधी है और उस के साथ एक अपराधी की तरह ही व्यवहार होना चाहिए. केन्द्र और महा सरकार, एटीएस और खरीदे हुए मीडिया द्वारा मालेगांव जांच की आड़ में हिन्दुओं के विरुद्ध जो दुष्प्रचार किया जा रहा है,  उस से हिन्दुओं की भावनाएं आहत हुई हैं (उन हिन्दुओं की नहीं जो जन्म से तो हिंदू हैं पर इस जन्म में हिंदू विरोधी हैं). हिन्दुओं ने कभी आतंकवाद के साथ मुस्लिम या सिख शब्द नहीं लगाए, पर इन लोगों ने हिंदू आतंकवाद का ग़लत  ढोल पीटना शुरू किया. बीजेपी की चुप्पी हिन्दुओं को अखर रही थी. जब यह दुश्प्रचार हद से बाहर होने लगा तो आडवाणी जी ने आतंकवाद के साथ हिंदू शब्द जोड़ने पर आपत्ति की. पानीपत में हिंदू संत इकठ्ठा हुए और अपना विरोध प्रकट किया. साध्वी प्रज्ञा ने कोर्ट में अपने ऊपर हो रहे मानसिक और शारीरिक अत्त्याचार के बारे में हलफनामा दाखिल किया. हिन्दुओं को इस से बहुत दुःख पहुँचा. आडवाणी जी ने इस पर एक बयान दिया और इस की घोर भर्त्सना की. इस से घबरा कर प्रधानमंत्री जी ने आडवाणी जी को फोन किया. 

इस बातचीत  के दौरान आडवाणी जी ने प्रधानमंत्री से कहा - 'आपने नासिक कोर्ट में साध्वी प्रज्ञा द्वारा दाखिल हलफनामे को पढ़ा होगा जिस में उन्होंने ख़ुद को १६ दिनों तक गैरकानूनी हिरासत में रखने और अपने ऊपर किए गए अमानवीय अत्त्याचार के बारे में अदालत को बताया है. मैंने जब इसे पढ़ा तो बहुत दुखी हुआ. मुझे विश्वास है कि आप भी बहुत दुखी हुए होंगे.'

आडवाणी जी ने यह खुलासा किया कि उनका विरोध साध्वी द्वारा लगाए गए आरोपों तक सीमित है और वह बम धमाकों में की जा रही जांच पर टिपण्णी नहीं कर रहे हैं. उन्होंने कहा कि इस पूरे विषय पर वह चुप थे, लेकिन इस हलफनामे ने उन्हें अपनी चुप्पी तोड़ने पर विवश कर दिया. उन्होंने प्रधानमंत्री से मालेगांव केस को हिंदू आतंकवाद कहने पर भी विरोध जताया. उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि यह कहना ग़लत है कि बीजेपी ने आतंकवाद पर अपनी नीति बदली है क्योंकि इस केस में पकड़े गए लोग हिंदू हैं. बीजेपी की नीति हमेशा से यही रही है  कि आतंकवादिओं का कोई धर्म नहीं होता. आतंकवादी सिर्फ़ आतंकवादी होता है. वह एक अपराधी है और उस के साथ एक अपराधी की तरह ही व्यवहार होना चाहिए. 

मैं आडवाणी जी को वधाई देता हूँ कि उन्होंने इस मुद्दे को इतने सही और स्पष्ट तरीके से उठाया है. कांग्रेस को अपनी स्थिति साफ़ करनी चाहिए और हिन्दुओं से माफ़ी मांगनी चाहिए. अदालत को साध्वी के मानवीय अधिकारों की रक्षा करनी चाहिए. यातनाएं देने वाले अधिकारियों के ख़िलाफ़ कार्यवाही होनी चाहिए. सत्य क्या है इस के लिए इन अधिकारियों का नार्को टेस्ट होना चाहिए. 

Thursday 20 November, 2008

अल्पसंख्यक : बहुसंख्यक

शब्दार्थ की द्रष्टि से अल्पसंख्यक और बहुसंख्यक - दोनों शब्द सार्थक हैं किंतु राजनीतिक सन्दर्भ में दोनों त्रुटिपूर्ण हैं. राजनीति के छेत्र में इन शब्दों का सदुपयोग कम हुआ है, अधिकांशतः दुरूपयोग हुआ है. उत्तेजना फैलाने और हिंसा भड़काने में ये शब्द बाहक बने हैं. 

राष्ट्र का प्रत्येक नागरिक नागरिकता की द्रष्टि से समान होता है. जब हम अल्पसंख्यक और बहुसंख्यक का प्रयोग करते हैं, तब राष्ट्र को गौण, जातीयता और प्रांतीयता को प्रधान बना देते हैं. मुसलमान इस्लाम के अनुयाई हैं. हिन्दुस्तान में इस्लाम के अनुयाई अल्पसंख्या में हैं और उसे न मानने वाले अधिक संख्या में. इस अल्प्संखयकता  और बहुसंख्यकता का आधार धर्म-सम्प्रदाय है, राष्ट्रीयता नहीं. राष्ट्रीयता की द्रष्टि से न कोई अल्पसंख्यक है और न कोई कोई बहुसंख्यक. अल्पसंख्यक को वही अधिकार प्राप्त हैं जो बहुसंख्यक को है, और बहुसंख्यक को वही अधिकार प्राप्त हैं जो अल्पसंख्यक को है. धार्मिक विश्वासके आधार पर जैन और बोद्ध भी अल्पसंख्यक हैं. वैदिक धर्म भी अनेक सम्प्रदायों में विभक्त है. बहुसंख्यक कौन है, यह निष्कर्ष निकालना सरल नहीं है. 

राष्ट्रीय मंच पर अल्पसंख्यक और बहुसंख्यक का प्रयोग न हो, यह राष्ट्र के हित में है. 

(लोकतंत्र : नया व्यक्ति नया समाज से साभार) 

Wednesday 19 November, 2008

मुफ्त हज यात्रा - क्या इस्लाम इस की इजाजत देता है?

पिछले दिनों अखबार में एक ख़बर पढ़ी - हज पेनल की पाँच सितारा मांगें. केन्द्रीय हज कमेटी के १०० अधिकारी अपने परिवार के सदस्यों के साथ मुफ्त हज यात्रा पर चले गए हैं या जाने वाले हैं. यह लोग मुफ्त में हज यात्रा कर के पुन्य कमाएंगे, और सरकार को ८ करोड़ का चूना लगेगा. हकीकत में तो यह चूना जनता को लगेगा क्योंकि सरकार के पास तो जनता का ही पैसा है. 

हज कमेटी ने रियाध और जेद्दाह में भारतीय मिशनों को पत्र लिख कर मांग की कि इन अधिकारिओं और उनके परिवारों को अलग से पाँच सितारा सुविधाएं मुहैया कराई जाएँ. भारतीय मिशनों ने तुंरत नई दिल्ली सरकार से सलाह मांगी, क्योंकि उन्हें प्रधानमंत्री की और से यह हिदायतें दी गई हैं कि वह खर्च में कटौती करें. सरकार ने क्या सलाह दी, ख़बर में इसका कोई जिक्र नहीं है. जाहिर है हरी झंडी दिखाई गई होगी. 

आपने मोहम्मद ओवाईस का नाम तो सुना होगा. यह सज्जन हज कमेटी के सीईओ हैं. इन्होने मांग की कि अधिकारिओं और उनके परिवारों के रूतवे के अनुसार उन्हें अलग से पाँच सितारा रहने की जगह दी जाय जिसमे रसोई और गुसलखाने अलग से हों. अब किनसे अलग रहने की बात हो रही है यहाँ? जाहिर है उन आम मुसलामानों से जो अपने पैसे से हज यात्रा कर रहे हैं. यह अधिकारी इन आम मुसलमानों को सुविधा से यात्रा करवाने के लिए जाते हैं. इस साल इन्होनें पाँच सितारा सुवुधायें मिलें  इस की मांग की है. यह एक धर्म-निरपेक्ष राज्य की पहचान है. 

अब सवाल यह उठता है कि क्या इस्लाम मुफ्त में (यानि दूसरों के पैसे से) हज करने की इजाजत देता है? मैंने कहीं पढ़ा था कि किराए पर जो सब्सिडी दी जाती है वह भी इस्लाम के अनुसार नहीं है. इस तरह की हज यात्रा से कोई पुन्य नहीं मिलता. लेकिन जहाँ फायदा हो रहा हो वहां ऐसा क्यों सोचा जाय या माना जाय? 

Tuesday 18 November, 2008

निशाचर कौन हैं?

बाढ़े खल बहु चोर जुआरा  I
जे लम्पट परधन परदारा II
मानहीं मातु पिता नहीं देवा I 
साधुन्ह सन करबावहीं सेवा II
जिन्ह के यह आचरन भवानी I
ते जानहु निसिचर सब प्रानी II

"दुष्ट, चोर और जुआरी बहुत बढ़ गए हैं. जो दूसरों की सम्पत्ति और स्त्रियों पर बुरी द्रष्टि रखते हैं; माता, पिता और देवता को जो समादर नहीं देते तथा साधुओं से सेवा लेते हैं. है, है पार्वती, जिनके ऐसे आचरण हैं, वे सबके-सब व्यक्ति निशाचर हैं." 

निशाचरों के सींग नहीं होते, न ही उनके बड़े-बड़े दांत होते हैं, न ही रंग काला होता है, और न ही वह देखने में भयंकर होते हैं. जिस भी व्यक्ति का आचरण भ्रष्ट है वह निशाचर है. आज समाज में निशाचरों की संख्या बहुत बढ़ गई है. पर-स्त्री पर वासना की द्रष्टि डालने वाले यह निशाचर आपको हर गली-रास्ते पर मिल जायेंगे. दूसरों का धन चुराने वाले निशाचर किसी भी समय हमला कर सकते हैं. माता-पिता की सेवा तो दूर, उनकी हत्या तक कर रहे हैं यह निशाचर. गुरु जनों से सेवा कराने में इन्हें लज्जा नहीं आती. यह निशाचर हर वर्ग में हैं, हर जाति में हैं, हर सम्प्रदाय में हैं, अशिक्षित और शिक्षित दोनों वर्गों में हैं, शासक और शासित में हैं, गुरु और शिष्य में हैं, समाज का कोई भी वर्ग ऐसा नहीं बचा है जहाँ यह निशाचर निवास नहीं करते. 

समाज में कृतज्ञता की भावना ही व्यक्ति को एक-दूसरे के लिए त्याग, वलिदान और सेवा की प्रेरणा देती है. निशाचर कृतज्ञता की किसी भी भावना को अस्वीकार करता है. दूसरे अर्थों में यह भी कहा जा सकता है कि निशाचर में देने की नहीं केवल लेने की भावना होती है. 

हमें इस निशाचरी प्रवृत्ति से बचना चाहिए. 

Monday 17 November, 2008

लो जी मधुशाला भी इस्लाम के ख़िलाफ़ है

आप में से बहुत लोगों ने मधुशाला पढ़ी होगी. मैंने पढ़ी है और मुशायरों में सुना भी है. आज से ७३ वर्ष पहले डा. हरिवंश राय बच्चन ने यह किताब लिखी थी. अब एक मुसलमान धार्मिक नेता ने यह फतवा दिया है कि यह किताब इस्लाम के ख़िलाफ़ है. अब आगे वह क्या करेंगे - क्या इस किताब पर पाबंदी लगाने की मांग करेंगे? मौका अच्छा है, केन्द्र में कांग्रेस की सरकार है, और कांग्रेस की मालकिन डा. बच्चन के बेटे अमिताभ बच्चन को नापसंद करती है. माग फ़ौरन मांग ली जायेगी. हो सकता है बच्चन को नसरीना की तरह हिन्दुस्तान से बाहर जाने को कहा जाए. 

Sunday 16 November, 2008

अडवाणी जी, ऐसी वेबसाईट का क्या फायदा?

अखबार में देखा कि आपने अपनी व्यक्तिगत वेबसाईट का उदघाटन किया है. अच्छा लगा. सोचा कि अब आपसे सीधे बात चीत कर सकेंगे. आपकी नीतियों, आपके कार्यक्रमों पर अपनों राय दे सकेंगे. आपको अपनी अपेक्षाओं के बारे में बता सकेंगे. तुंरत पहुंचे आप की वेबसाईट पर. रजिस्ट्रेशन किया. रजिस्ट्रेशन कन्फर्म हुआ. फ़िर आपकी एक पोस्ट पर अपनी राय दी. एक नई पोस्ट भी लिखी, आंतरिक सुरक्षा पर. संदेश आया कि मोडरेटर मेरी राय पर विचार करेंगे और फ़िर उसे छापेंगे. 

आज एक हफ्ता हो गया, आपके मोडरेटर साहब पता नहीं कहाँ गुम हो गए हैं? रोज आपकी साईट पर जाता हूँ और निराश लौटता हूँ. जनता की एक भी पोस्ट नहीं छापी गई है वहां. आज अखबार में देखा कि दिल्ली के मुख्य मंत्री पद के उम्मीदवार मल्होत्रा जी ने भी अपनी व्यक्तिगत साईट बना दी है. क्या उस साईट का भी यही हाल होगा?

क्यों बनाई आपने यह वेबसाईट? अडवाणी जी, ऐसी वेबसाईट से क्या फायदा? 

Saturday 15 November, 2008

समाज के प्रतिष्ठित व्यक्ति कैसे हों?

ईश्वर ने जिसे प्रतिष्ठा दी हो, समाज ने जिसे अधिकार दिया हो, उसे सर्व-साधारण के लिए हर समय जागना चाहिए. 

जब पैर में काँटा चुभता है तब मष्तिष्क विश्राम नहीं कर पाता है. इसी तरह साधारण से साधारण जन के कष्ट में होने पर समाज के प्रतिष्ठित व्यक्ति तब तक न सोयें जब तक उनका कष्ट दूर न हो जाए. 

जो समाज का दुःख स्वयं ले लेते हैं, वह नीलकंठ बन कर पूजे जाते हैं. जो समाज का सुख छीनते हैं वह राहू की तरह दुर्दशा को प्राप्त होते हैं. 

Friday 14 November, 2008

चंद्रयान मिशन सफल, वधाईयां

चन्द्रयान भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन के एक अभियान व यान का नाम है। चंद्रयान चंद्रमा की तरफ कूच करने वाला भारत का पहला अंतरिक्ष यान है। इस अभियान के अन्तर्गत एक मानवरहित यान को २२ अक्तूबर, २००८ को चन्द्रमा पर भेजा गया है। यह यान पोलर सेटलाईट लांच वेहिकल (पी एस एल वी) के एक परिवर्तित संस्करण वाले राकेट की सहायता से प्रक्षेपित किया गया। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान केंद्र 'इसरो' के चार चरणों वाले ३१६ टन वजनी और ४४.४ मीटर लंबा अंतरिक्ष यान चंद्रयान प्रथम के साथ ही ११ और उपकरण एपीएसएलवी-सी११ से प्रक्षेपित किए गए जिनमें से पाँच भारत के हैं और छह अमरीका और यूरोपीय देशों के।इसे चन्द्रमा तक पहुँचने में ५ दिन लगेंगे पर चन्द्रमा की कक्षा में स्थापित करने में 15 दिनों का समय लग जाएगा । इस परियोजना में इसरो ने पहली बार १० उपग्रह एक साथ प्रक्षेपित किए हैं।

चंद्रयान-प्रथम चांद पर पहुंच कर वहां एक उपग्रह स्थापित करेगा। चंद्रमा से १०० किमी ऊपर ५२५ किग्रा का एक उपग्रह ध्रुवीय कक्षा में स्थापित किया जाएगा। यह उपग्रह अपने रिमोट सेंसिंग (दूर संवेदी) उपकरणों के जरिये चंद्रमा की ऊपरी सतह के चित्र खींचेगा । चंद्रमा पर जाने वाला यह यान घरेलू ध्रुवीय उपग्रह प्रक्षेपण वाहन से भेजा जाएगा। चंद्रयान-प्रथम मिशन से अत्याधुनिक वैज्ञानिक शोध के नए रास्ते खुलने की आशा जताई जा रही है। स्वदेश निर्मित प्रक्षेपण वाहन और अंतरिक्षयान क्षमताओं के कारण भारत महत्वाकांक्षी अंतरिक्ष योजनाओं को अंजाम देने में सक्षम है। इससे भविष्य में चन्द्रमा और मंगल ग्रह पर मानव-सहित विमान भेजने के लिये रास्ता खुलेगा। भारतीय अंतरिक्षयान प्रक्षेपण के अनुक्रम में यह २७वाँ उपक्रम है।

कैसे और कब हुआ यह सब:

    * बुधवार २२ अक्तूबर २००८ को छह बजकर २१ मिनट पर श्रीहरिकोटा के सतीश धवन अंतरिक्ष केन्द्र से चंद्रयान प्रथम छोड़ा गया। इसको छोड़े जाने के लिए उल्टी गिनती सोमवार सुबह चार बजे ही शुरू हो गई थी। मिशन से जुड़े वैज्ञानिकों में मौसम को लेकर थोड़ी चिंता थी, लेकिन सब ठीक-ठाक रहा। आसमान में कुछ बादल जरूर थे, लेकिन बारिश नहीं हो रही थी और बिजली भी नहीं चमक रही थी। इससे चंद्रयान के प्रक्षेपण में कोई दिक्कत नहीं आयी। इसके सफल प्रक्षेपण के साथ ही भारत दुनिया का छठा देश बन गया है, जिसने चांद के लिए अपना अभियान भेजा है। इस महान क्षण के मौके पर वैज्ञानिकों का हजूम 'इसरो' के मुखिया जी माधवन नायर 'इसरो' के पूर्व प्रमुख के कस्तूरीरंगन के साथ मौजूद थे। इन लोगों ने रुकी हुई सांसों के साथ चंद्रयान प्रथम की यात्रा पर सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से लगातार नजर रखी और एक महान इतिहास के गवाह बने।
    * चंद्रयान के ध्रुवीय प्रक्षेपण अंतरिक्ष वाहन पीएसएलवी सी-११ ने सतीश धवन अंतरिक्ष केन्द्र से रवाना होने के १९ मिनट बाद ट्रांसफर कक्षा में प्रवेश किया। ११ पेलोड के साथ रवाना हुआ चंद्रयान पृथ्वी के सबसे नजदीकी बिन्दु (२५० किलोमीटर) और सबसे दूरस्थ बिन्दु (२३, ००० किलोमीटर) के बीच स्थित ट्रांसफर कक्षा में पहुंच गया। दीर्घवृताकार कक्ष से २५५ किमी पेरिजी और २२ हजार ८६० किमी एपोजी तक उठाया गया था।
    * गुरुवार २३ अक्तूबर को दूसरे चरण में अंतरिक्ष यान के लिक्विड इंजिन को १८ मिनट तक दागकर इसे ३७ हजार ९०० किमी एपोजी और ३०५ किमी पेरिजी तक उठाया गया।
    * शनिवार २५ अक्तूबर को तीसरे चरण के बाद कक्ष की ऊंचाई बढ़ाकर एपोजी को दोगुना अर्थात ७४ हजार किमी तक सफलतापूर्वक अगली कक्षा में पहुंचा दिया गया। इसके साथ ही यह ३६ हजार किमी से दूर की कक्षा में जाने वाला देश का पहला अंतरिक्ष यान बन गया। 
    * सोमवार २७ अक्तूबर को चंद्रयान-१ ने सुबह सात बज कर आठ मिनट पर कक्षा बदलनी शुरू की। इसके लिए यान के ४४० न्यूटन द्रव इंजन को साढ़े नौ मिनट के लिए चलाया गया। इससे चंद्रयान-१ अब पृथ्वी से काफी ऊंचाई वाले दीर्घवृत्ताकार कक्ष में पहुंच गया है। इस कक्ष की पृथ्वी से अधिकतम दूरी १६४,६०० किमी और निकटतम दूरी ३४८ किमी है। 
    * बुधवार २९ अक्तूबर को चौथी बार इसे उसकी कक्षा में ऊपर उठाने का काम किया। इस तरह यह अपनी मंजिल के थोड़ा और करीब पहुंच गया है। सुबह सात बजकर ३८ मिनट पर इस प्रक्रिया को अंजाम दिया गया। इस दौरान ४४० न्यूटन के तरल इंजन को लगभग तीन मिनट तक दागा गया। इसके साथ ही चंद्रयान-१ और अधिक अंडाकार कक्षा में प्रवेश कर गया। जहां इसका एपोजी [धरती से दूरस्थ बिंदु] दो लाख ६७ हजार किमी और पेरिजी [धरती से नजदीकी बिंदु] ४६५ किमी है। इस प्रकार चंद्रयान-1 अपनी कक्षा में चंद्रमा की आधी दूरी तय कर चुका है। इस कक्षा में यान को धरती का एक चक्कर लगाने में करीब छह दिन लगते हैं। इसरो टेलीमेट्री, ट्रैकिंग एंड कमान नेटवर्क और अंतरिक्ष यान नियंत्रण केंद्र, ब्यालालु स्थित भारतीय दूरस्थ अंतरिक्ष नेटवर्क एंटीना की मदद से चंद्रयान-1 पर लगातार नजर रखी जा रही है। इसरो ने कहा कि यान की सभी व्यवस्थाएं सामान्य ढंग से काम कर रही हैं। धरती से तीन लाख ८४ हजार किमी दूर चंद्रमा के पास भेजने के लिए अंतरिक्ष यान को अभी एक बार और उसकी कक्षा में ऊपर उठाया जाएगा।
    * शनिवार 8 नवम्बर को चन्द्रयान भारतीय समय अनुसार करीब 5 बजे सबसे मुश्किल दौर से गुजरते हुए चन्दमाँ की कक्षा में स्थापित हो गया। अब यह चांद की कक्षा में न्यूनतम 504 और अधिकतम 7502 किमी दूर की अंडाकार कक्षा में परिक्रमा करगा। अगले तीने-चार दिनों में यह दूरी कम होती रहेगी।
     * आज शुक्रवार, १४ नवम्बर को एम्आईपी (मून इम्पेक्ट प्रोब) चंद्रयान से अलग हुआ और सायं ०८.३१ बजे चाँद की सतह पर उतर गया. यह प्रोब तिरंगे के रंग में रंगा गया है. इस सफलता से भारत विश्व के ऐसा तीसरा देश बन गया है जिनका राष्ट्रीय ध्वज चाँद की सतह पर मौजूद है. प्रोब से सिग्नलस आने प्रारम्भ हो गए हैं. 

आज के दिन भारत के लिए एक एतिहासिक दिन है. सभी भारतीयों को ढेर सारी वधाईयां. 



(विकी से साभार)

Wednesday 12 November, 2008

गुरु नानक देव जी के जन्म दिन पर लख-लख वधाईयां

गुरू नानक देव सिखों के प्रथम गुरू थे । गुरु नानक देवजी का प्रकाश (जन्म) 15 अप्रैल 1469 ई. (वैशाख सुदी 3, संवत्‌ 1526 विक्रमी) में तलवंडी रायभोय नामक स्थान पर हुआ। सुविधा की दृष्टि से गुरु नानक का प्रकाश उत्सव कार्तिक पूर्णिमा को मनाया जाता है। तलवंडी अब ननकाना साहिब के नाम से जाना जाता है। तलवंडी पाकिस्तान के लाहौर जिले से 30 मील दक्षिण-पश्चिम में स्थित है।

Tuesday 11 November, 2008

वंदे मातरम्

वंदे मातरम्!
सुजलाम्, सुफलाम्, मलयज शीतलाम्,
शस्यश्यामलाम्, मातरम्!
शुभ्रज्योत्सनाम् पुलकितयामिनीम्,
फुल्लकुसुमित द्रुमदल शोभिनीम्,
सुहासिनीम् सुमधुर भाषिणीम्,
सुखदाम् वरदाम्, मातरम्!
वंदे मातरम्!॥


I bow to thee, Mother,
richly-watered, richly-fruited, 
cool with the winds of the south,
dark with the crops of the harvests, the Mother! 
Her nights rejoicing in the glory of the
moonlight, 
her lands clothed beautifully with her trees in flowering bloom,
sweet of laughter, sweet 
of speech, 
the Mother, giver of boons, 
giver of bliss.

Monday 10 November, 2008

चेतावनी दी ईश्वर ने

कल रात सपने में ईश्वर आए. मैंने उन्हें प्रणाम किया, उन्होंने आशीर्वाद दिया, 'सुखी रहो और सबसे प्रेम करो'.

उन्होंने कहा, 'तुम ब्लाग लिखते हो, आज वह लिखना जो मैं तुम्हें अभी कहने जा रहा हूँ'.
मैंने कहा, 'जैसी आपकी आज्ञा'. 
वह बोलते रहे, मैं लिखता रहा.

"तुम जो करते हो वह तुम्हारे एकाउंट में जमा हो जाता है, तुम प्रेम करते हो तो प्रेम,नफरत करते हो तो नफरत. जितना प्रेम तुम्हारे एकाउंट में होगा उतना लोग तुमसे प्रेम करेंगे. इसी तरह जितनी नफरत तुम्हारे एकाउंट में होगी उतना लोग तुमसे नफरत करेंगे. अगर तुमने किसी की हत्या कर दी तो बदले में कोई तुम्हारी हत्या करेगा. जितनी बार तुम हत्या करोगे उतनी ही बार तुम्हारी हत्या होगी. जितनी बार तुम किसी की मदद करोगे उतनी ही बार लोग तुम्हारी मदद करेंगे. 

तुम जिस दुनिया में रहते हो, अपराध करके उस दुनिया के कानून से बच सकते हो, पर मेरे कानून से नहीं बचोगे. तुम्हारा जरा सा अपराध भी मुझसे छिपा नहीं रहता. तुम मन में किसी के बारे में बुरा सोचते हो, किसी के बारे में बुरा कहते हो, किसी का बुरा करते हो, यह सब अपराध हैं और इन सब अपराधों की सजा मिलेगी. मेरा नाम लेकर तुम जो अपराध करते हो, वह सबसे बड़ा अपराध है. उसकी सजा भी बहुत भयंकर है. 

संभल जाओ, मैं बार-बार समझाने नहीं आऊंगा."

ईश्वर की आज्ञानुसार मैंने यह सब ब्लाग पर लिख दिया, अब आप जानो और आपका ईश्वर जाने. 

Sunday 9 November, 2008

यूपी में कांग्रेस की सरकार

बहुत कोशिशों के बाद भी कांग्रेस यूपी में अपनी सरकार नहीं बना पा रही है. यह कांग्रेस और उसकी मालकिन के लिए बहुत हो निराशा की बात है. कुछ लोग इसे शर्म की बात भी कहते हैं. जिन्होनें ने भारत के प्रधान मंत्री और राष्ट्रपति मनोनीत किए वह यूपी के मुख्यमंत्री को मनोनीत नहीं कर सकीं. मुझे कांग्रेस से सहानुभूति है, इस लिए मैंने एक्स्ट्रा समय निकाल कर इस पर बहुत सोच-विचार किया. इस सोच-विचार का परिणाम यह निकला कि मुझे दो रास्ते नजर आए जिन पर चल कर कांग्रेस यूपी में अपनी सरकार बना सकती है. 

पहला रास्ता - कांग्रेस मायावती को प्रधान मंत्री बना दे, और बदले में मायावती मनमोहन सिंह को यूपी का मुख्य मंत्री बना दे. 

दूसरा रास्ता - कांग्रेस यूपी को दो हिस्सों में बाँट दे, एक हिस्से में रायबरेली और अमेठी, तथा दूसरे हिस्से में बाकी बचा यूपी. दूसरे हिस्से का नाम मायावती प्रदेश रख दिया जाय और मायावती को उसका आजीवन मुख्य मंत्री बना दिया जाय. पहले हिस्से का नाम यूपी रहने दिया जाय. वहां पहले से ही परिवार जीता हुआ है. कांग्रेस अपनी सरकार बना ले. 

Wednesday 5 November, 2008

मुस्लिम कौम के लिए पहली जिम्मेदारी किस की है?

अपने मुसलमान भाईयों और बहनों से मैं एक सवाल पूछना चाहता हूँ - मुस्लिम कौम के लिए पहली जिम्मेदारी किस की है - मुसलमानों की, या भारतीय समाज की, या भारत सरकार की, या दूसरे धर्मों के लोगों की? क्या आप इस बात से इन्कार करेंगे अगर मैं यह कहूं कि मुस्लिम कौम के लिए पहली जिम्मेदारी मुसलमानों की है? क्या मुसलमान अपनी यह जिम्मेदारी ईमानदारी से निभा रहे हैं? 

कहा जाता है कि अधिकांश मुसलमान गरीब हैं, गन्दी बस्तियों में रहते हैं, बीमार हैं, अशिक्षित हैं, राष्ट्र की मुख्य धारा में शामिल नहीं हैं. यह भी कहा जाता है कि सरकार ने उन के लिए कुछ नहीं किया. यह भी आरोप लगाया जाता है कि भारत में मुसलमानों का शोषण हो रहा है. धर्म के नाम पर उनके साथ ज्यादती की जा रही है. इन आरोपों में कितना सच है और कितना झूट, यह बहस का विषय हो सकता है. पर मेरी इस पोस्ट का विषय यह नहीं है. 

ऐसे मुसलमानों की संख्या भी बहुत ज्यादा है जो पैसे वाले हैं. मुस्लिम धार्मिक संस्थानों के पास भी बहुत पैसा है. दुनिया के दूसरे मुल्कों से भी पैसा आता है. अगर यह पैसा इन मुसलमानों की जन्दगी का स्तर सुधारने में खर्च किया जाय तो कोई कारण नहीं है कि भारत के सारे मुसलमान एक अच्छी और इज्जतदार जिंदगी न गुजार सकें. पर ऐसा नहीं होता. यह पैसा बारूद खरीदने, बम धमाके करने और निर्दोष नागरिकों की जान लेने में खर्च किया जाता है. जो मुसलमान इस देश के लिए और अपनी कौम के लिए बहुत कुछ कर सकते हैं वह उसका उल्टा कर रहे हैं. बम विस्फोट करने से, निर्दोष लोगों को मारने से, मुसलमानों की स्थिति कैसे सुधर जायगी? मुसलमान भी दूसरे आम इंसानों की तरह है, उन्हें भी जरूरत है एक खुशनुमां जिन्दगी की, पर कुछ मुसलमान ख़ुद ही उनसे यह जिंदगी छीन रहे हैं. झूठे, बेबुनियाद आरोप लगाकर उनके दिल में हिन्दुओं से डर पैदा कर रहे हैं, ताकि वह हिन्दुओं के नजदीक न आ सकें और इस देश की मुख्य धारा में शामिल न हो सकें. क्योंकि जब तक वह डरते रहेंगे तभी तक उन का नाजायज इस्तेमाल किया जा सकेगा. 

मैं अगर यह कहूं कि कुछ मुसलमान  ही मुसलिम कौम के दुश्मन बने हुए हैं तो यह  किसी तरह ग़लत नहीं होगा. मुस्लिम कौम के लिए पहली जिम्मेदारी मुसलमानों की है, सब मुसलमान यह जिम्मेदारी पूरी करें. हिन्दुओं पर भरोसा करें. दोस्ती का एक हाथ बढ़ायें हिन्दुओं की तरफ़, हिंदू उन्हें गले से लगा लेंगे. हिंदू हाथ फैलाए खड़े हैं, मेरे  मुसलमान भाइयों और बहनों आप एक कदम आगे तो बढ़ाइये. 

Tuesday 4 November, 2008

आजादी

जब कहा तिलक ने आज़ादी,
है जन्म सिद्ध अधिकार मेरा,
तब शामिल था उस कहने में,
कर्तव्य मेरा, कर्तव्य तेरा.

क्या मिलना था, क्या मिल पाया,
क्या देना था, क्या दे पाये,
आओ भारत मां के बच्चों,
कुछ लेखा-जोखा हो जाय.

आज़ादी मर कर जीने की,
आज़ादी जी कर मरने की,
आज़ादी कुछ भी कहने की,
आज़ादी कुछ भी करने की,
आज़ादी कुछ न करने की,
आज़ादी ऊंचा उठने की,
आज़ादी नीचा गिरने की.

क्या मिली है पूरी आजादी?
या अभी लड़ाई जारी है?
अधिकार माँगना सीख लिया,
कर्तव्य निभाना बाकी है.

नफरत छोड़ो और प्रेम करो,
सब हैं समान, सब हैं भाई,
कर्तव्य निभाओ सुख पाओ,
यह बात कृष्ण ने समझाई. 

Sunday 2 November, 2008

धर्मयुद्ध और जिहाद

अभी-अभी एक लेख पढ़ा सन्डे टाइम्स में. लेखक हैं इश्तियाक दानिश, हमदर्द यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर हैं. लेख का विषय  है, धर्मयुद्ध और जिहाद. आप सबसे निवेदन है, इस लेख को जरूर पढ़ें और अपनी राय दें.

 
अमन-पसंद लोगों को यह लेख जरूर पसंद आएगा.


 

Saturday 1 November, 2008

आओ एक दूसरे का दर्द महसूस करें

युसूफ किरमानी ने अपने ब्लाग 'हम सब की बात' पर एक पोस्ट डाली है जिसका शीर्षक है 'मुशीरुल हसन की आवाज सुनो'. मैंने अपनी राय दर्ज करा दी, फ़िर सोचा कि अगर मैं इस मुद्दे पर पोस्ट लिखता तो उसे क्या शीर्षक देता?   सोचा और फ़िर यह पोस्ट यहाँ इस ब्लाग पर दाल दी. शीर्षक रखा - 'आओ एक दूसरे का दर्द महसूस करें'. 

मुशीरुल हसन साहब ने जामिया में एक समारोह आयोजित किया और उस में शबाना आजमी और नसीरुद्दीन शाह को डाक्टर की उपाधि से सम्मानित किया. इस समारोह में उन्होंने एक भाषण दिया जिसके बारे में किरमानी साहब ने लिखा कि मुशीरुल हसन की आवाज सुनो. हसन साहब ने हमें आमंत्रित ही नहीं किया, वरना हम भी उन की आवाज सुन लेते और जामिया का दर्द महसूस कर लेते. इतने बड़े विश्वविद्यालय के इतने बड़े वाइस चांसलर की आवाज सुनने का मौका निकल गया. खैर कोई बात नहीं, उन्होंने जो कहा वह अखबार में तो पढ़ ही लिया. अखबार ने जो और जैसा लिखा है उस से उनकी बातें काफ़ी हद तक सही लगीं, पर यह नहीं समझ में आया कि वह अपने दर्द के लिए किसे जिम्मेदार मानते हैं और यह सब किस से कह रहे हैं, सरकार से, पुलिस से, राजनीतिक दलों से, जामिया के और देश के दुखी मुसलमान समुदाय से या हिंदू समुदाय से, और उन से क्या चाहते हैं?

उन्होंने शबाना आजमी को डाक्टर बना दिया. अगर शबाना को यह सम्मान उनके समाज और देश को दिए गए किसी महत्वपूर्ण योगदान के लिए दिया गया है तो बहुत अच्छी बात है. लेकिन अगर उन्हें इस लिए सम्मानित किया गया कि कुछ दिन पहले उन्होंने भारतीय लोकतंत्र को मुसलमानों के ख़िलाफ़ बताया था, तो मेरे जैसे आम समझ वाले हिन्दुस्तानी को दुःख होगा. अखबार ने लिखा है कि हसन साहब ने हुसैन को भी यह सम्मान दिया था, जिन्होनें हिंदू देवी-देवताओं के नग्न चित्र बनाये थे. अगर यह सही है तो इस बात से हमें दुःख हुआ. 

अब एक मुद्दा यह बना कि हम तो जामिया के दर्द को महसूस कर रहे हैं, पर क्या हसन साहब और जामिया हमारे दर्द को महसूस करेंगे जो उन्होंने शबाना और हुसैन को इस तरह सम्मानित करके हमें दिया है? दूसरी बात, हिन्दुओं को भी दुःख होता है जब उनके परिवार, रिश्तेदारी और मित्रों में कोई बम धमाकों में जान गंवाता है. क्या हसन साहब और जामिया हिन्दुओं के इस दर्द को महसूस करते हैं? 

दर्द तो सब को होता है. हम दूसरों से कहें कि हमारा दर्द महसूस करो पर हम ख़ुद दूसरों का दर्द महसूस न करें तो बात कैसे बनेगी? आइये सब एक दूसरे का दर्द महसूस करें और उसे दूर करने के उपाय खोजें और उन पर अमल करें.  

Friday 31 October, 2008

आसाम में जो निर्दोष मारे गए उन्हें अश्रुपूर्ण श्रधांजलि

आज सुबह अखबार में पढ़ा कि गुवाहाटी में इंसानियत के दुश्मनों ने बम धमाके किए, जिन में ६६ निर्दोष नागरिक मारे गए. मन दुखी हो गया. आइये उन की आत्मा की शान्ति के लिए ईश्वर से प्रार्थना करें. 

Thursday 30 October, 2008

भाई दूज मनाइए कम्पूटर पर

पहले तो आप सब को भाई दूज पर शुभकामनाएं. 
फ़िर देखिये एक विडियो. 

फ़िर देखिये एक फिल्मी गीत


Wednesday 29 October, 2008

एक आंसू बहाओ उन के लिए

आज हमारे देश में हर तरफ़ गरीबी और बीमारी दिखाई देती है, पर हम अपना अधिकाँश समय और सामर्थ्य आपस में लड़ने में व्यर्थ गवां देते हैं. क्या कभी हमने अपने गरीब और बीमार देशवासियों दर्द महसूस किया है? क्या कभी  हमने उनके लिए एक आंसू बहाया है? 

स्वामी विवेकानंद ने कहा था 

"क्या तुम तैयार हो अपनी मात्रभूमि के लिए हर बलिदान करने को? अगर हाँ, तब तुम इस देश को गरीबी और बीमारी से मुक्ति दिला सकते हो. क्या तुम जानते हो कि हमारे करोड़ों देशवासी भूखे और बीमार हैं? क्या तुम उन का दर्द महसूस  करते हो? क्या कभी तुम उन के लिए एक आंसू बहाते हो?" 


On the photo, Vivekananda has written in Bengali, and in English: 
“One infinite pure and holy—beyond thought beyond qualities I bow down to thee” - Swami Vivekananda

Monday 27 October, 2008

प्रकाश का त्यौहार दीवाली मंगलमय हो आपके लिए

दो विडियो पेश कर रहा हूँ आपके लिए. 



पटाखे चलाइये,
अपने अन्दर सोये इंसान को जगाने के लिए,
दिए जलाइये,
अपने अन्दर गहराते अन्धकार को मिटाने के लिए.



प्रेम करो सबसे, नफरत न करो किसी से. 

आप सबको दीवाली की शुभकामनाएं. 

क्या आमिर अली आतंकवादी है?

मीडिया ने उसे आतंकवादी कहा. उसे 'मानव बम' नाम दिया. लेकिन यह सब हुआ इसलिए कि मीडिया के पास पूरी जानकारी नहीं थी, और न ही मीडिया ने कोई जानकारी इकठ्ठा करने की कोशिश की. बस तुंरत आमिर पर अपना फ़ैसला सुना दिया. 
 
आमिर एक डाक्टर था, लन्दन में रहता था, अपने परिवार से मिलने भारत आता है. एअरपोर्ट पर एक मवाली दिखने वाला एक अफसर उसके सामान की चार बार तलाशी लेता है और कुछ न मिलने पर बहुत निराश होता है. आमिर उस से पूछता है कि अगर उस का नाम अमर होता तो क्या वह इतनी बार उस की भी तलाशी लेता? मवाली अफसर और मवाली नजर आने लगता है.

आमिर एअरपोर्ट से बाहर आता है. फ़िर उसके साथ शुरू होता एक दिल देहला देने वाला चक्कर - कैसे शिक्षित मुसलमान आतंकवादी बनाए जाते हैं? कौम के नाम पर उसे आतंकवादी बनने पर मजबूर किया जाता है. उस के परिवार का अपहरण कर लिया गया है, उसे धमकी दी जाती है कि अगर उस ने उनके कहने के अनुसार काम नहीं किया तो उन्हें मार डाला जायेगा. मां के दिल का सकून, तीन बहनों और एक भाई का प्यारा भाई, आमिर मजबूर हो जाता है उन की बात मानने को. 

उसे एक सूटकेस किसी को पहुंचाने का काम सौंपा जाता है. बस में बैठ जाने पर उसे पता चलता है कि सूटकेस मैं बम है. उसे बताया जाता है कि पाँच मिनट में बम फट जायेगा, इस लिए वह तुंरत बस से उतर जाय. वह बस से उतर जाता है, पर बस में से एक बच्चा उसे देख कर मुस्कुराता है और हाथ हिलाता है. आमिर फ़िर बस में चढ़ जाता है, सूटकेस उठाता है और बस से उतर कर खुली जगह की तरफ़ भागता है. उधर कुछ मजदूर सड़क पर गड्ढा खोद रहे हैं. वह चिल्लाता है, 'सूटकेस में बम है, जल्दी से भाग जाओ'. सब दूर भाग जाते हैं. आमिर के हाथों में सूटकेस है, जिसमें बम है, बम फटता है, आमिर मर जाता है. 

मीडिया को बस इतना मालूम था. उन्होंने उसे मानव बम कहा. यह भी कहा कि वह बम लेकर बस से उतर गया और खाली जगह की तरफ़ भागा,पर इसका कारण उन के अनुसार यह था कि आमिर आखिरी वक्त पर डर गया. अगर बम बस में फट जाता तो सैकड़ों लोग मारे जाते. आमिर ने अपनी जान दे दी पर आतंकवादियों की नापाक साजिश को कामयाब नहीं होने दिया. उसने अपनी जान दे कर सैकड़ों लोगों की जान बच ली. 

क्या आप आमिर को आतंकवादी कहेंगे? मैं तो नहीं कहूँगा. आमिर मेरा हीरो है. मैं उसे सलाम करता हूँ. ऐसे बहुत से आमिर होंगे इस देश में, जिन्हें आतंकवादी बनाने की कोशिशें की जा रही हैं. बहुत से बन भी गए होंगे. पर यह आमिर नहीं बना. आज देश को ऐसे आमिरों की जरूरत है. 

नोट - आप सोच रहे होंगे कि यह क्या कहानी लिखी है मैंने. यह कहानी मैंने नहीं लिखी. मैंने इसे देखा टीवी पर. अगर आप भी देखना चाहते हैं तो उस फ़िल्म का नाम है 'आमिर'.  

Sunday 26 October, 2008

अर्थव्यवस्था की अर्थी

चार अर्थशास्त्री,
जिन्हें सब कहते थे महान,
मनमोहन, चिदंबरम,
एहलुबालिया, सुब्बाराव.
सौंपी थी इनके हाथों में, 
अर्थव्यवस्था की बाग़ डोर,
इतने साल दिखाते रहे सब्ज बाग़,
अब नजर आ रहे हैं,
कन्धों पर उठाये,
अर्थव्यवस्था की अर्थी . 

Friday 24 October, 2008

मेरे हिंदू भाइयों जरा ध्यान दीजिये

एक हिंदू मन, बचन, कर्म से अहिंसक होता है. मन, बचन और कर्म तीनों प्रकार की हिंसा का दंड ईश्वर देता है. मानव निर्मित कानून मन की हिंसा का कोई दंड नहीं दे पाता. कुछ हद तक बचन की हिंसा और कर्म की हिंसा का दंड देने की सामर्थ्य कानून में है. पर कानून इस सामर्थ्य का पूरा इस्तेमाल नहीं कर पाता. नागरिक, पुलिस, वकील और जज चारों  ईमानदार होंगे और कानून का पूरा सम्मान करेंगे तभी इस सामर्थ्य का पूरा इस्तेमाल हो पायेगा. ऐसा हो नहीं पाता और अपनी गलती का आरोप लोग कानून पर थोप देते हैं. 

ईश्वर का कानून भंग करने की सजा हर हालत में मिलती है, वहां कोई गलती नहीं होती. ईश्वर की अदालत सब से बड़ी अदालत है. कोई भी हिंसा करने से पहले यह समझ लेना चाहिए कि हो सकता है मानव निर्मित कानून से बच जाएँ, पर ईश्वर के कानून से नहीं बच पायेंगे. ईश्वर की अदालत में मन, बचन और कर्म द्वारा की गई किसी भी प्रकार की हिंसा की सजा मिलेगी. कृष्ण का साथ भी यधिष्ठिर को बचन की हिंसा की सजा पाने से नहीं बचा पाया. इस लिए ईश्वर के कानून से डरिये, भले ही समाज में आपकी स्थिति आपको यहाँ के कानून से बचा ले. 

कुछ लोग ईश्वर के नाम पर हिंसा करते हैं. यह तो और भी बड़ा अपराध है, इस की तो सजा  भी बहुत भयंकर होगी. जो लोग सोचते हैं कि इस तरह की हिंसा करके वह जन्नत में मजे करेंगे, तो वह बहुत बड़ी गलफहमी में हैं. यह जीवन ईश्वर की देन है. किसी से उस का जीवन छीन लेना ईश्वर के प्रति एक घोर अपराध है. ईश्वर की अदालत में इस अपराध की कोई छमा नहीं है. आपको ऐसे बहुत हिंदू मिल जायेंगे जो ईश्वर में विश्वास नहीं करते, बल्कि उसे गालियाँ भी देते हैं. ईश्वर इन्हें भी प्यार करता है. पर वह किसी भी प्रकार की हिंसा को छमा नहीं करता. रात-दिन उसकी पूजा करने वाला व्यक्ति भी अगर हिंसा करेगा तो उसे सजा मिलेगी. राजा दशरथ से गलती से हिंसा हो गई और उनके वाण से श्रवन कुमार मारा गया. बाद में ईश्वर ने उन का पुत्र बन कर जन्म लिया, पर दशरथ उस हिंसा की सजा पाने से नहीं बचे. जरा सोचिये अगर दशरथ नहीं बच पाये तब आप हिंसा करके कैसे बचेंगे?  

आज समाज में हिंसा की बहुतायत हो गई हे. लोग मन, बचन और कर्म तीनों से हिंसा करने में लगे हैं. मन से किसी के बारे में सही नहीं सोचते, बचन से किसी के बारे में सही नहीं कहते, कर्म से तो बस किसी भी की जान ऐसे ले लेते हैं जैसे किसी कीड़े को मार रहे हैं. हिंदू धर्म में तो कीड़े को मारना भी हिंसा है. हिंसा का कोई स्थान नहीं है हिंदू धर्म में. अगर कोई हिंदू हिंसा करता है, चाहे कोई भी कारण हो, वह ईश्वर के प्रति अपराध कर रहा है. ईश्वर हर जीवधारी के अन्तर में विराजमान है. किसी जीवधारी पर हिंसा कर के एक हिंदू ईश्वर पर हिंसा कर रहा है. आत्मरक्षा  के लिए भी पूरी कोशिश यही करनी चाहिए कि किसी की जान न लेनी पड़े, जब कोई और रास्ता न बचे तभी किसी की जान लेना सही माना जा सकता है. पिछले दिनों एक महिला ने एक कामांध व्यक्ति का सर काट दिया. वह बहुत समय तक कोशिश करती रही कि यह दुराचारी उस के ख़िलाफ़ हिंसा बंद कर दे पर वह नहीं माना. इस महिला के सामने कोई रास्ता नहीं बचा. इस लिए उस दुराचारी की जान ले लेना सही है. मेरा पूरा विश्वास है कि यहाँ का कानून और ईश्वर का कानून दोनों इस महिला को निरपराध मानेंगे. 

मैं हिंदू हूँ, इस लिए मुझे तकलीफ होती है जब कोई हिंदू हिंसा करता है. कारण चाहे कोई भी हो, हिंदू को हिंसा करने से बचना चाहिए. मुसलमान और ईसाई अगर हिंसा करते हैं तो वह अपने ईश्वर को जवाब देंगे. इस देश का कानून उन्हें सजा देगा. हिंसा का जवाब हिंसा नहीं है. मैं यह मानता हूँ कि हिन्दुओं की इस भावना को उन की कमजोरी माना  जाता है. कोई भी बिना किसी डर के हिन्दुओं पर आक्रमण कर देता है. जब हिंदू इस हिंसा का जवाब हिंसा से दे देता तो सब तरफ़ से गालियाँ पड़ने लगती हैं. लेकिन हिन्दुओं को यह नहीं भूलना चाहिए कि हमारा धर्म हमें सब इंसानों से प्रेम करना, उनका और उनके धर्म का आदर करना सिखाता है. नफरत का हमारे धर्म में कोई स्थान नहीं है. हमारे लिए तो हर चलता-फिरता इंसान एक मन्दिर है, जिसके अन्तर में ईश्वर विराजता है. हम कैसे किसी  इंसान के अन्तर में विराजमान ईश्वर पर आक्रमण कर सकते हैं या उसे मार सकते हैं? 

इसलिए मेरे हिंदू भाइयों, अपने गुस्से पर नियंत्रण करो, अपने सोच पर नफरत को हावी मत होने दो, हमारे धर्म पर तो हर समय, हर तरफ़ से आक्रमण होते रहे हैं. अभी भी हो रहे हैं. यह आक्रमण बाहर से भी हो रहे हैं और अन्दर से भी. पर हमें संयम नहीं खोना चाहिए. यह हमारा देश है. हमें कोई ऐसा काम नहीं करना चाहिए जिस से इस देश की अखंडता और प्रभुसत्ता को कोई नुक्सान पहुंचे. जो इस देश को अपना नहीं समझते उन्हें बेनकाब करना चाहिए और देश के कानून के हवाले करना चाहिए. 

प्रेम करो सबसे, नफरत न करो किसी से. 

Thursday 23 October, 2008

प्लीज़, छुट्टी पर चले जाओ

है बुद्धिजीवी,
बहुत दिनों से तुम छुट्टी पर नहीं गए,
प्लीज़ अब चले जाओ न,
हिमालय की कंदराओं में, 
मुझे कुछ काम पूरे करने हैं,
जो पेंडिंग पड़े हैं न जाने कब से.

पड़ोस की कालोनी में,
अब्दुल को ईद की मुबारकवाद देनी है,
पीटर के घर जाना है,
कहने 'हेप्पी क्रिसमस',
रहमान कर पायेगा अपना वादा पूरा,
दीवाली पर मेरे घर आने का,
अवतार सिंह के साथ जाना है,
गुरु पर्व पर गुरुद्वारे से प्रसाद लेने.

सिमरन को कर दिया था बम ने अनाथ,
एक मां की गोद सूनी कर दी एक और बम ने,
एक बहन हर वर्ष राखी खरीदती है,
और दिन भर रोती रहती है,
क्योंकि एक बम ने छीन लिया उस का भाई,
एक भाई ने बिठाना था बहन को डोली में,
बम ने बदल दी डोली एक अर्थी में, 
इनके और इन जैसे न कितने,
सबके पास जाना है,
दो शब्द सहानूभूति के कहने.
 
है बुद्धिजीवी,
अब तो चले जाओ छुट्टी पर. 

Wednesday 22 October, 2008

अनैतिक विकास

नफरत का जहर फ़ैल रहा है,
प्रेम का अमृत सूख रहा है,
भूख इतनी बढ़ गई है,
आदमी आदमी को खा रहा है,
मानवता पशुता की और अग्रसर है,
अनैतिक विकास कहें या,
नैतिक विनाश? 

Tuesday 21 October, 2008

एक कविता रेनू सूद की

Hkkjrh;ks! le>ks ek;ktky dks

laizx dk 'kkludky gS i{kikr Hkjk]

bl i{kikr esa foHkktu ds cht gSa]

;fn gqvk ns'k dk foHkktu rks ykHk gksxk

fons'kh "kM+;U=dkjksa dks]

ljdkjsa ,oa turk gkFk eyrh jg tk,xh]

ns'k xqykeh dh tathjksa esa iqu% tdM+sxk]

bls iqu% eqDr djkuk laHko u gks ik;xkA

D;ksafd tks t+T+ok Fkk Hkkjr ds

ohj 'kghnksa esa] ftUgksaus Hkkjr dks vktkn djok;k gtkj lky dh xqykeh ls

mls iqu% txkuk laHko ugha

,sls esa Hkkjr ns'k feV tk,xkA

blls igys fd fonsf'k;ksa dk ;g

nq%LoIu lkdkj gks]

Hkkjrokfl;ks! mBks!! le>ksa ek;ktky dks]

vkt Hkkjr ty jgk gS

lkEiznkf;drk ,oa vkradokn dh vfXu esa

vle] egkjk"V] mM+hlk] tEew] dukZVd

caxky] jktLFkku ty jgs gSa

ysfdu laizx ljdkj dgha cuh gS ewdn'kZd

dgha gks xbZ mxz

D;ksafd og bl vfXu esa

gS viuh jktuSfrd jksfV;kWa lsadus dh fQjkd esa

vle] egkjk"V] tEew ds gkykr ij

ljdkj us vks<+h vijkf/kd pqIih

tcfd vle esa ekjs tk jgs gSa fgUnh Hkk"kh

egkjk"Vª esa mRrjoklh

tEew tyk tehu dh tax esa

d'ehj us fn[kk;k viuk jk"Vª?kkrh psgjk

ysfdu ljdkj pqi gS

D;ksafd ogkWa mldh lRrk gSA

tgkWa mldh lRrk gS

ogkWa dh turk dh ekSr ij

ljdkj laosnughu gSA

mM+hlk] dukZVd esa mldk 'kklu ugha

;s izns'k tc ty mBs

,d ekuorkoknh dh gR;k ds fojks/k esa

og Fks y{e.kkuan ljLorh

mUgksaus tudY;k.k dk chM+k mBk;k Fkk

ysfdu fe'ufj;ksa dks og ugha Hkk;k Fkk

blls gksrk Fkk mudk /keZifjorZu dk pØz ckf/kr

/keZifjorZu dk pØ pyk;k x;k gS

vesfjdk] osfVdu] Qzkal bR;kfn dh jktuhfr us

Hkkjr dh ljdkj D;ksa bl ij udsy ugha dlrh

D;ksafd og lRrk esa vkrh gS fons'kh vuqnku ls

fonsf'k;ksa dk M.Mk tc iM+k ljdkj ds flj ij

ljdkj us fryfeyk dj ?kkSal nh /kkjk 356 dh

mls dukZVd ,oa mM+hlk ds ejus okys yksx

gh D;ksa vius yxs

D;k lpeqp og mudh ekSr ij nq%[kh gS\

ugh] ljdkj fdlh Hkkjrh; dh ekSr ij nq%[kh ugha

mls lRrk pkfg,

og pkgs fdlh fons'kh dh lgk;rk ls feys

;k Hkkjrh;ksa dks ejok dVok dj feys

ppZ ,oa bZlkb;ksa ij geys

ehfM;k dk feF;k izpkj gS

;fn ugha] rks og D;ksa fcy[krk gS bZlkb;ksa dh ekSr ij

D;k og fcy[kk egkjk"V ds Bkdjs nEHk ij

;k fQj uanhxzke ds lagkj ij

;k fQj d'ehfj;ksa ds fu"dklu ij

;k fQj tEew dh tax ij

;k flD[kksa ds lkewfgd ujlagkj ij

xks/kjk dk.M ,oa y{e.kkuan dh gR;k

ij ehfM;k eqnkZ ut+j vkrk gS

xqtjkr ds naxksa] mM+hlk ds naxksa ij

D;ksa gjne vkalw cgkrk gS

vkt Hkkjr ngy jgk gS ce /kekdksa ls

fleh dk gkFk Li"V gS bu /kekdksa esa

ysfdu ljdkjh eU=h djrs gS fleh dk cpko

,oa ctjax ny ij pkgrs gSa dlko

ctjax ny ij vkjksi gS bZlkbZ;ksa dks ekjus dk

fleh ij vkjksi gS Hkkjrh;ksa dks ekjus dk

Hkkjroklh cM+k gS ;k bZlkbZ

D;k Hkkjr dk bZlkbZ Hkkjrh; ugha\

;fn gS] rks mldh fpUrk D;ksa nwljs ns'k djsa

D;ksa Hkkjr dh ljdkj muds rkus lqus

;fn fons'kh Hkkjr dh fpUrk djrs gSa

rks os D;ksa 'ks"k Hkkjrh;ksa dh ekSr ij pqi jgrs gSa

D;k /keZifjoZru cuk jgk gS bZlkb dks fons'kh\

;s fons'kh D;k Hkkjr ls Ny ugha djsaxs\

gesa jksduk gksxk /keZifjorZu dk pØ

ughs rks HkksysHkkys Hkkjrh; fil tk,axs ns'knzksg ds pdzO;wg esa

ns'k ds dksus dksus esa ns'knzksgh cSBk gksxk

,sls esa ns'k dk dgha ugha fu'kka gksxk

laizx us mBk j[kk gS ns'k dk feVkus dk ftEek

bl lkft'k ds ihNs ljxuk dkSu gS& irk ugha

fdruh cM+h dher feyh gS] mls ns'k dks feVkus dh &irk ugha

fdrus vius gks pqds gSa & ijk, & irk ugha

bu lc ij lRrk dk u'kk Nk;k gS

ysfdu gesa gks'k D;ksa ugha vk;k gS

vkbZ,] ge lc mBk,a iz.k]

ge djsaxsa ns'k dh j{kk

ugha gksus nsaxs fdlh ns'knzksgh ds eulwcs iwjs

gesa laizx dks lRrkghu djuk gS

bl ns'k dks jk"Vªokfn;ksa ds v/khu djuk gS

ogha djsaxs j{kk bl ns'k dh

ogh viuh tku ij [ksy dj

jk"Vªfojksf/k;ksa ls Vdjk,axs

ogh vej dgyk,axsA