विश्व में बहुत से आतंकवादी अपनी अमानवीय कार्यवाहियों को जिहाद का नाम देते हैं. उसे इस्लाम से जोड़ कर यह साबित करते हैं कि जो कुछ वह कर रहे हैं वह इस्लाम का तकाजा है. इस्लाम के बहुत से धार्मिक नेता इस का विरोध करते हैं. उनका कहना है कि इस्लाम इस तरह के कामों की इजाजत नहीं देता. मगर कहीं न कहीं, लोग इन आतंकिओं की बात का समर्थन कर देते हैं, उन्हें जिहादी मान कर, उन्हें जिहादी कह कर.
जो कत्लेआम यह आतंकी कर रहे हैं वह जिहाद नहीं है. जिहाद तो इंसान अपने अन्दर छिपी बुराई के ख़िलाफ़ करता है. जिहाद एक तरह की तपस्या है, प्रायश्चित है. वह किसी के ख़िलाफ़ नहीं होता. वह सिर्फ़ बुराई के ख़िलाफ़ होता है. हम जब सच बोलते हैं, झूट के ख़िलाफ़ जिहाद करते हैं. हम जब प्रेम करते हैं, नफरत के ख़िलाफ़ जिहाद करते हैं. अहिंसा हिंसा के ख़िलाफ़ जिहाद है. ईमानदारी बेईमानी के ख़िलाफ़ जिहाद है.
2 comments:
सुरेशचंद्र जी, आपने सच लिखा है। सही लिखा है। दरअसल, जेहाद के साथ यह शर्त भी जुड़ी है कि किसके लिए और क्यों? कुरानशरीफ में यह बहुत साफ लिखा है कि जेहाद निर्दोष लोगों की हत्या के लिए नहीं किया जाना चाहिए। जेहाद तो जालिमों के सफाए के लिए है। मुंबई या भारत के किसी कोने में आतंकवादी हमले या बम ब्लास्ट में मारे जाने वाले तमाम इंसान जालिम नहीं थे, वे निर्दोष थे। इसलिए पाकिस्तान या अन्य कोई देश (छिपा नाम अमेरिका) अगर ऐसा तथाकथित जेहादियों का समर्थन कर रहा है तो वह इस्लाम विरोधी है। यह जेहाद नहीं है...इसे पागलपन या कायरता ही कही जाएगी कि आप किसी को धोखे से मार डालें।
आपको इतने स्पष्ट लेखन और विचार के लिए मैं दिल से बधाई देता हूं।
बात तो आपने बिल्कुल सही कही है, पर जिन लोगों ने जिहाद को धंधा बना दिया है वह नहीं समझेंगे.
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