आज सारा देश दुखी है, मुंबई में कितने निर्दोष आतंकियों की गोली का निशाना बन गए. उनकी कोई दुश्मनी नहीं थी आतंकियों से, आतंकी उन्हें जानते भी नहीं थे, पर फ़िर भी यह निर्दोष अपनी जान गवां बैठे. दुखी लोग इकट्ठे होकर संवेदना प्रकट कर रहे हैं.
सारा देश आक्रोश से भरा हुआ है - 'बस बहुत हो गया'. जन आक्रोश से घबराई सरकार ने भी आक्रोशित होने का नाटक शुरू कर दिया. बयानबाजी शुरू हो गई. गलती किस की थी, किसने अपना कर्तव्य पूरा नहीं क्या? लोग अपनी गलती दूसरों पर डालने लगे, क्रिकेट बंद हो गई पर गलती उछालने का खेल चल रहा है. कुछ लोग इस दुखी समय में कुर्सी का खेल खेलते रहे. उन्होंने सोचा, कोई न कोई तो जायेगा, अगर अपना दांव लग गया तो उसकी खाली कुर्सी मेरी हो सकती है. महा सीएम ने अपनी जान लगा दी अपनी कुर्सी बचाने में, पर बची नहीं. हाई कमान समझ नहीं पा रही थी, किसे दें कुर्सी? किसकी बफदारी पर यकीन करें. योग्यता की तलाश नहीं थी. सबसे ज्यादा बफादार की तलाश थी. एक को कुर्सी मिली. दूसरे ने गालियाँ देनी शुरू कर दी.
यह है इन की श्रद्धांजलि, उनके लिए जो इनकी सरकार की नालायकी की वजह से मारे गए.
5 comments:
सही कर रहे हैं आप . देश ताओ कही गया , लगे हैं अपनी कुर्सी और वोट बैंक बचाने की आपाधापी मैं . और ताओ और जनता के ध्यान को पाकिस्तान की तरफ़ मोड़ रहे हैं बजाय अपनी गलती मानने के और अपनी कारगुजारियों मैं सुधार करने के .
sahi likha hai .is samay sarkaar jo aakrosh pardarshit kar rahi hai sab notanki hai .unhe to sirf apni kursi ki chinta hai ,janta ki nahi
हर कुर्सी पर एक बम लगा दो, ओर उस मे सेटिंग कर दो जो भी गन्दा नेता, चरित्र हीन,देश द्रोही,चारा चोर, यानि हर तरह से हरामी नेता जब कुर्सी पर बेठे वो बम फ़ट जाये, ओर एक देश भगत, शरीफ़ बेठे तो बम ना फ़टे, फ़िर इन से कहो आओ भाई यह कुर्सी खाली है बेठो, ओर देश की सेवा करो ??? मुझे लगता है सारी कुर्सिया खाली ही रहेगी...
धन्यवाद
आपने सही कहा है|वास्तव में इन नेताओं को आज के कठिन समय में आपसी आपधापी से निकल कर सबसे पहले देश के लिये अपने कर्तव्यों का पालन करना चाहिये|और जनता जागरुक हों तभी ये संभव है|
केरल से चुने गए दो लोक सभा सदस्यों ने अपनी ताकत दिखा कर हवाई जहाज की उड़ान देर कर दी. दूसरे यात्रियों को असुविधा होगी, इसकी उन्हें कोई चिंता नहीं थी. वह यह भूल गए थे कि इन यात्रियों में से बहुतों ने उन्हें अपना प्रतिनिधि चुना हो सकता है. जनता ने इन्हें चुना, इसकी सजा मिल रही है अब जनता को. मेरे एक मित्र ने दुखी होकर कहा, आतंकी हमलों में हमेशा जनता ही क्यों मरती है, जन-प्रतिनिधि क्यों नहीं मरते?
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