दैनिक प्रार्थना

हमारे मन में सबके प्रति प्रेम, सहानुभूति, मित्रता और शांतिपूर्वक साथ रहने का भाव हो


दैनिक प्रार्थना

है आद्य्शक्ति, जगत्जन्नी, कल्याणकारिणी, विघ्न्हारिणी माँ,
सब पर कृपा करो, दया करो, कुशल-मंगल करो,
सब सुखी हों, स्वस्थ हों, सानंद हों, दीर्घायु हों,
सबके मन में संतोष हो, परोपकार की भावना हो,
आपके चरणों में सब की भक्ति बनी रहे,
सबके मन में एक दूसरे के प्रति प्रेम भाव हो,
सहानुभूति की भावना हो, आदर की भावना हो,
मिल-जुल कर शान्ति पूर्वक एक साथ रहने की भावना हो,
माँ सबके मन में निवास करो.

Thursday 31 December, 2009

नए वर्ष की शुभकामनाएं

मैं लाया हूँ,
ढेर सारी शुभकामनाएं,
नए वर्ष की,
ले लो जिस को जितनी चाहिए,
सुगन्धित वायु और जल,
सुरक्षित सड़कें, रेल-वायु मार्ग,
सब को समान अवसर,
सब को समान आदर,
सब को समान न्याय,
भरत जैसा राज्य,
राम जैसी मर्यादा,
ले लो जिस को जितनी चाहिए.

ऎसी पुलिस न होना ज्यादा बेहतर है

पुलिस वालों की डाइनिंग टेबल पर,
जो पकवान परोसे जाते हैं,
जिस पैसे से पुलिस वाले ऐयाशी करते हैं,
वह पैसा उस जनता की जेब से आता है,
जिस पर वह रात दिन अत्याचार करते हैं,
रुचिका की कहानी है,
इस बेशर्म पुलिस की कहानी,
पुलिस की जरूरत है,
पर,
ऎसी पुलिस न होना ज्यादा बेहतर है.

Tuesday 29 December, 2009

जन राजनीति

जनता ने मोर्चा लगाया,
मंहगाई के खिलाफ नारा लगाया,
महंगाई ने मोर्चे में शामिल हो कर,
जनता का हौसला बढ़ाया,
शर्मा जी चकराए,
वर्मा जी के पास आये,
भैया यह क्या चक्कर है?
यह जन राजनीति है,
वर्मा जी ने समझाया,
जनता और मंहगाई,
आपस में मिल गए हैं,
जिस पार्टी ने महंगाई का मुद्दा उठाया,
जनता ने उसे हराया,
जिस सरकार ने महंगाई बढ़ाई,
जनता ने उसे जिताया.

Saturday 26 December, 2009

साझा खेल - दिल्ली बनेगी दुल्हन

दिल्ली नगर निगम,
दिल्ली सरकार,
कर रहे हैं अत्याचार,
गरीब बेघर आम आदमियों पर,
नाईट शेल्टर तोड़ कर,
सैंकड़ों लोगों को जमा दिया सर्दी में,
मचा दिया हाहाकार,
गरीबों की जिंदगी में,
औरतें, बच्चे, बूढ़े,
कहाँ जाएँ कंपकंपाती सर्दी में,
कहीं भी जाएँ, हमसे मतलब?
हमने सजाना है, सवांरना है,
दिल्ली को दुल्हन बनाना है,
साझा खेल होंगे,
हमारे पुराने राजा जी आयेंगे,
क्या उन्हें अच्छा लगेगा यह नाईट शेल्टर,
बदनामी न हो जायेगी हमारी?
क्या बचाने को देश को, दिल्ली को,
इस बदनामी से, राष्ट्रीय शर्म से,
हटा नहीं सकते, भगा नहीं सकते,
इन भुखमंगे, अधनंगों को?
जय मनमोहन,
जय सोनिया,
जय साझा खेल.

Tuesday 22 December, 2009

चालीस साल पहले

चालीस साल पहले,
जिंदगी बहुत आसान थी,
हमने ३२५ बेसिक पर शुरू की थी,
केंद्र सरकार में नौकरी,
तीन कमरों का मकान था,
सब कुछ बहुत सस्ता था,
आना-जाना, खाना-पीना,
मन में कोई तनाव नहीं,
जिंदगी जीते थे तब.

फिर देश ने तरक्की की,
जिंदगी मुश्किल होने लगी,
अब देश बहुत तरक्की कर गया है,
जिंदगी बहुत मुश्किल हो गई है,
तब की सारे वर्ष की आय,
मकान का किराया नहीं पूरा कर पाती,
बच्चे को स्कूल नहीं भेज पाती,
हर चीज महंगी है,
आना-जाना, खाना-पीना,
मन में तनाव-ही-तनाव है,
वाह री तरक्की,
अब तो जिंदगीबस बीत रही है,
सब कुछ आगे बढ़ गया है,
जिंदगी पीछे रह गई है.

Saturday 5 December, 2009

रावण और राम राज्य

वह एक मंजे हुए राजनीतिबाज हैं,
भाषण देना उन की आदत है,
एक सभा में भाषण दे दिया,
देश में राम राज्य लायेंगे.

कल एक जवान लड़के की मौत हो गई,
शमशान भूमि में उस के पिता को रोते देखा,
अचानक नेताजी का भाषण याद आया,
देश में राम राज्य लायेंगे,
यह कैसा राम राज्य होगा?
राम राज्य में पहले पिता जाता था,
यहाँ बेटा चला गया.

रावण के वंशज हैं यह नेता सारे,
जिसने पहले सब बेटों को भेजा,
फिर खुद गया.

Sunday 18 October, 2009

दीवाली बाद की पहली सुबह

दीवाली आई, दीवाली गई,
कुछ बदला क्या?
नहीं, कुछ नहीं बदला,
फिर कर दी बेकार,
एक और दीवाली.

खूब पटाखे बजाये,
खूब शोर मचाया,
पर जगे नहीं, सोते रहे,
प्रगाढ़ निद्रा में,
झूट, चोरी, बेईमानी,
नफरत, हिंसा, अन्याय की.

खूब दिए जलाए,
मोमबत्तियां जलाईं,
विजली की रंग-बिरंगी,
झालरें जलाईं,
पर मिटा नहीं अँधेरा,
मन, कर्म, वचन का.

Friday 16 October, 2009

आई दीवाली, आई दीवाली

आई दीवाली, आई दीवाली,
खुशियाँ लेकर आई दीवाली.

चाची ने घर खूब सजाया,
मम्मी ने भी हाथ बटाया,
मैंने और सिया ने मिल कर,
उनकी हिम्मत खूब बढ़ाई.
आई दीवाली, आई दीवाली,
धन धान्य ले आई दीवाली.

चाचा लाये अनार, फुलझडी,
पापा लाये बिस्कुट मेवे,
दादी लाई मिठाई बताशे,
खील, खिलोने, दीया-बाती,
आई दीवाली, आई दीवाली,
मुहं मीठा कर आई दीवाली.

जय लक्ष्मी माता की जय हो,
जय गणपति वापा की जय हो,
जय सरस्वती माता की जय हो,
जय हो, जय हो, सब की जय हो.
आई दीवाली, आई दीवाली,
रंग-बिरंगी आई दीवाली.

Saturday 3 October, 2009

आराम हलाल है

एक मंत्री ने ट्विटर पर ट्वीट किया,
बापू के जन्मदिन पर सब काम करें,
पढ़ कर अच्छा लगा,
कोई है तो है काम करने वाला,
यह और बात है कि कुछ दिन पहले,
यही मंत्री जी शिकायत कर रहे थे,
काम बहुत ज्यादा है दफ्तर में.

बापू ने कहा कर्म पूजा है,
बापू ने तो सिर्फ दोहराया था,
अर्जुन को कुरुशेत्र में,
कृष्ण ने यही समझाया था,
पर आज़ाद भारत में,
बहाने ढूँढ़ते हैं सब काम से बचने के,
सरस्वती पूजा पर न पढेंगे, न लिखेंगे,
विश्वकर्मा पूजा पर मशीनें बंद रखेंगे,
आजादी क्या आई सोच उलट गया,
आराम हराम से हलाल हो गया.

Friday 2 October, 2009

कब तक कुप्रयोग करोगे बापू के नाम का?

बापू का नाम भुनाया तुमने,
आज़ादी से पहले,
आज़ादी के बाद,
अपनी निजी स्वार्थसिद्धि के लिए,
सिर्फ नाम ही भुनाया,
बापू का कोई गुण नहीं अपनाया,
आज भी लगे हो,
बापू का नाम भुनाने में,
करोडों रुपये के विज्ञापन,
अपनी तस्वीरों के साथ,
जरा नहीं शरमाये शामिल करने में,
अपने भ्रष्ट आचार में बापू का नाम,
भ्रष्टाचार में डूबी नरेगा योजना को,
देने चले हो बापू का नाम.

Monday 28 September, 2009

क्या इस बार भी सिर्फ रावण ही जलेगा?

हर साल जलाते हो तुम रावण को,
क्या इस बार भी सिर्फ रावण ही जलेगा?
रावण से जुड़ी बुराई कब जलेगी?
कभी सोचा है तुमने?
तुम राम की पूजा करते हो,
पर करते हो प्रतिनिधित्व रावण का,
राम का कोई आदर्श नहीं अपनाया,
रावण की हर बुराई अपना ली,
किसे धोखा देते हो जला कर रावण?
खुद को, रावण को, राम को?
क्यों नहीं जला देते उस नफरत को?
जो तुम्हें इंसानियत का दुश्मन बनाती है,
जो तुम्हें राम से दूर ले जाती है.

Saturday 26 September, 2009

चाँद खतरे में है

कल टीवी पर खबर देखी,
चाँद पर पानी मिला है,
देखते देखते सो गया,
आँख खुली तो देखा,
चाँद पर मीटिंग चल रही है,
बहुत चितित हैं चाँद वाले,
अब क्या होगा?
इंसान ने पहले धरती खराब की,
अब चाँद को खराब करेगा,
चाँद पर पहले से गड्ढे हैं,
पर इंसान आकर सड़क बनाएगा,
फिर उसमें गड्ढे करेगा,
चाँद पर साफ़ पानी है,
पर इंसान पहले उसे गन्दा करेगा,
फिर साफ़ करने के यंत्र लगायेगा,
ठीक करने के नाम पर,
सब गड़बड़ कर देगा,
छुपा लो पानी,
बचा लो चाँद को,
वर्ना पानी के चक्कर में इंसान,
चाँद को धरती बना देगा.

Wednesday 23 September, 2009

कब तमीज सीखोगे तुम?

अरे ओ दिल्ली वालों,
कब तमीज सीखोगे तुम?
शीला दीक्षित, तेजिंदर खन्ना,
और अब पी चिदंबरम,
सबका मन दुखता हे,
तुम्हारे असभ्य व्यवहार से,
पर तुम निकाल देते हो,
इस कान से सुन कर उस कान से,
कब बदलोगे अपना असभ्य सोच?

कामनवेल्थ खेलों में,
आयेंगे बड़े-बड़े मेहमान,
जिनके थे तुम गुलाम,
जिनके लिए बना रही हैं शीला जी,
सात सितारा मूत्रालय,
क्या सोचेंगे वह?
जब देखेंगे तुम्हारा असभ्य व्यवहार,
कितनी शर्म आयेगी,
सरकार को, सोनिया जी को,
पर तुम नहीं सुधरोगे,
बदतमीज कहीं के.

मैं लिख रहा था जब यह अकविता,
मेरी पोती ने पूछा,
बाबा क्यों करते हैं हम आयोजित यह खेल?
कौन सी है यह कामनवेल्थ?
कहाँ हे यह वेल्थ?
किस किस में कामन हे यह वेल्थ?
पता नहीं बेटी,
शायद मालूम हो देश के तहजीबदारों को,
उसने कहा, 'अब तो हम आजाद हैं',
मैंने कहा, 'कहते तो यही हैं,
पर शायद हैं नहीं'.

Sunday 20 September, 2009

आओ मजाक करें

मनमोहन जी ने कहा,
जो थरूर ने कहा,
मजाक में कहा.
शर्मा जी को अच्छा नहीं लगा,
वर्मा जी ने समझाया,
क्या गलत कहा?
बाबू और राजनीतिबाज,
मजाक ही तो करते हैं जनता से,
साठ साल हो गए यह मजाक होते,
पर आप अभी भी नहीं समझ पाए.
थरूर पहले बाबू थे,
अब राजनीतिबाज हो गए हैं,
सो मजाक कर रहे हैं जनता से,
यही हाल मनमोहन जी का है,
मजाक को समझा करो,
क्या हर समय बुरा मान जाते हो?
शर्मा जी बोले,
ठीक है भाई,
अब तुम भी मजाक कर लो.
देखें कितने दिन चलता है यह तमाशा,
खर्चा बचाने का,
और एक बात बताऊँ?
कल काली भेंस गोरी गाय से कह रही थी,
अब बर्दाश्त नहीं होतीं,
इंसान की यह हरकतें,
खुद को हमसे मिलाते हैं,
थरूर और मनमोहन
कभी मिल गए तो,
ऐसा सींग मारूंगी,
सब मजाक भूल जायेंगे.

Friday 11 September, 2009

मीठा-मीठा मैं, कड़वा-कड़वा तू


रोज सुबह दिल्ली के अखवारों में,
छपते हैं अनेक विज्ञापन,
सरकार का हर अच्छा काम,
दर्शाते हैं यह विज्ञापन,
और छपती है इन विज्ञापनों में,
मुख्य मंत्री की तस्वीर.

अखवार में निकला एक समाचार,
सरकार के एक स्कूल में,
भगदड़ मच गई,
पांच लड़कियां मर गईं,
चौतीस घायल हो गईं,
छह गंभीर रूप से,
कारण अवव्यवस्था, कुप्रशासन,
सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों की अवहेलना,
मतलब सरकार की गलती,
भुगती बच्चों ने.

नहीं छपा कोई विज्ञापन,
सरकार के इस बुरे काम पर,
मुख्य मंत्री की तस्वीर के साथ,
मात्र उन्होंने दुःख प्रकट किया,
और ज्यादा महान हो गईं.

और महान हो जायेंगी,
अगर जांच कराई तो,
बाबुओं को हो जायेगी सजा,
जनता को दिखाने को,
मीठा-मीठा मैं, कड़वा-कड़वा तू .


Monday 24 August, 2009

ईश्वर की सच्ची पूजा

मानवीय संबंधों का आदर करो,
परिवार के प्रति कर्तव्यों का पालन करो,
यही ईश्वर की सच्ची पूजा है.

बड़ों का आदर करो,
उनके सुख दुःख का ध्यान रखो,
यही ईश्वर की सच्ची पूजा है.

बच्चों से प्रेम करो,
उन्हें सही शिक्षा दो,
यही ईश्वर की सच्ची पूजा है.

पड़ोसियों से प्रेम करो,
उनके लिए परेशानी का कारण मत बनो,
यही ईश्वर की सच्ची पूजा है.

समाज, राष्ट्र के प्रति बफादार रहो,
उन पर वोझ नहीं, सहायक बनो,
यही ईश्वर की सच्ची पूजा है.

किसी से नफरत नहीं, सबसे प्रेम करो,
हर जीव में ईश्वर का दर्शन करो,
यही ईश्वर की सच्ची पूजा है.

ईश्वर प्रेम है, प्रेम ईश्वर है,
प्रेम ईश्वर की सच्ची पूजा है.

Sunday 16 August, 2009

राष्ट्रपति ने चाय पिलाई

राष्ट्र ने मनाया स्वतंत्रता दिवस,
राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री,
राज्यपाल और मुख्यमंत्री,
सबने औपचारिकता निभाई,
आम आदमी को भाषण सुना कर,
आम आदमी ने भी निभाई,
यह सारे भाषण सुन कर.

भाषण सुनने का और सुनाने का,
सुन सुना कर तुरत भूल जाने का,
अनवरत चल रहा है,
सिलसिला इस राष्ट्रीय बीमारी का,
अजीब सी बीमारी है,
क्या भाषण दिया भूल जाते हैं,
पर भाषण देना नहीं भूलते.

शाम को राष्ट्रपति ने चाय पिलाई,
देश के गणमान्य लोगों को,
हर बार की तरह इस बार भी,
हमें नहीं बुलाया,
इंतज़ार करते करते हो गए हम,
आम आदमी से वारिष्ट आम आदमी,
पर गणमान्य नहीं बन पाए,
कल्लू मवाली गया था चाय पीने,
पिछला लोक सभा चुनाव जीत कर,
बन गया था वह गणमान्य.

Friday 14 August, 2009

पंद्रह अगस्त - क्या भूल गए क्या याद रहा

मैं बच्चा था एक वर्ष का,
जब पंद्रह अगस्त आया था,
आधी रात सूरज निकला था,
माँ ने मुझको बतलाया था,
आजादी के रंग में रंग कर,
नया तिरंगा फहराया था,
कई सदियों के बाद आज फिर,
भारत माता मुस्काई थी,
कितने बच्चों की कुरबानी
देकर यह शुभ घडी आई थी.

रंग-बिरंगे वस्त्र पहन कर,
हम सब विद्यालय जाते थे,
झंडा फहरा, राष्ट्र गान गा,
सब मिल कर लड्डू खाते थे,
दिन भर हा-हा-हू-हू करते,
रंग-बिरंगी पतंग उडाते,
मौज मनाते, ख़ुशी मनाते,
थक जाते, जल्दी सो जाते.

अब सोते हैं सुबह देर तक,
छुट्टी का आनंद लूटते,
लाल किले की प्राचीरों से,
कुछ न कुछ हर साल भूलते,
बना दिया बाज़ार राष्ट्र को,
भूल गए अपना इतिहास,
बने नकलची बन्दर हम सब,
अपना नहीं बचा कुछ पास.

राष्ट्र मंच पर कहाँ खड़े हैं,
नायक हैं या खलनायक है,
हैं सपूत भारत माता के,
या उसके दुःख का कारण हैं?
छह दशकों के दीर्घ सफ़र में,
कितने कष्ट दिए हैं माँ को,
माँ की आँखें फिर गीली हैं,
जागो अरे अभागों जागो.

Wednesday 5 August, 2009

वर्ल्ड क्लास शहर का वर्ल्ड क्लास पार्क





समझ नहीं पाता हूँ मैं,
शिकायत करुँ या करुँ धन्यवाद?
दिल्ली सरकार, केंद्र सरकार,
कौन है धन्यवाद का हकदार?
सांसद, एम्एलए, पार्षद,
किसे पहनाऊं प्रशंसा का हार?
उपराज्यपाल, डीडीए उपाध्यक्ष,
किस की प्रशंसा का हूँ मैं कर्जदार?
डीडीए डिस्ट्रिक्ट पार्क पश्चिम पुरी,
गढ़ रहा है नए मानक लगातार,
इंसान करते हैं योग, प्राणायाम,
पास मैं सूअर करते हैं विहार,
गाय चरती हैं कूड़ा पार्क में,
कुतिया करती है बच्चों से दुलार,
युवा चलाते हैं वाइक पार्क में,
बच्चे रहते हैं साइकिल पर सवार,
अम्मा फेंकती हैं कूड़ा पार्क में,
बाबा बीड़ी पी कर करते हैं हवा में सुधार,
भैया टहलाते हैं कुत्ता पार्क में,
भाभी की आँखों से छलकता है प्यार,
बच्चे दौड़ते हैं क्यारियों में,
फूल तोड़ता है परिवार,
क्रिकेट और फुटबाल खेलकर,
घास का करते जीर्णोद्दार
खाली बोतल खोजते बीपीएल बच्चे,
दारू पीकर फेंक गए थे छोटे सरकार,
कल मनाई थी पिकनिक पार्क में,
कूडादान करता रहा इंतज़ार,
वर्ल्ड क्लास शहर है दिल्ली,
बारी जाऊं मैं बारम्बार,
क्लिक करो यदि निम्न लिंक पर,
खुल जायेंगे चित्र हज़ार.

Sunday 19 July, 2009

बलात्कार एक दलित महिला का

एक दलित महिला का बलात्कार हुआ,
राजनीतिबाज सक्रिए हो उठे,
मीडिया ने खबर तोड़नी शुरू कर दी,
जिसको जिसमें जैसा फायदा लगा,
उसने वही बात कहनी शुरू कर दी.

बल्लात्कार बन गया एक बिजनेस,
नेता वोट कमाने लगे,
मीडिया रीडरशिप रेटिंग, 
सरकार ने कर दी घोषणा,
आर्थिक सहायता की,
सामजिक कार्यकर्त्ता दौड़ पड़े,
कमाने को अपना कमीशन,
मिल कर सरकारी बाबुओं के साथ. 

खंडित तन, खंडित मन,
खुद पर ही शर्मसार,
लुटी-पिटी दलित महिला,
बहाती रही आंसू,
अँधेरे कमरे के एक कोने में,
बलात्कारी घूमते रहे सड़कों पर,
सीना ताने, बिना किसी डर के,
किसी और शिकार की तलाश में.

देश की मुखिया एक महिला,
सरकार के मुखिया की मुखिया एक महिला,
प्रदेश की मुखिया एक महिला,
बलात्कार का शिकार एक महिला,
रोती हुई बोली अपने पिता से,
बाबू सरकार ने भी किया बलात्कार मेरा,
कीमत लगा दी मेरी इज्जत की,
कोई फर्क नहीं दिखाई दिया,
मुझमें और एक वैश्या में. 

Friday 3 July, 2009

कचरादान

कचरा ही कचरा हर तरफ़,

घर मे कचरा, घर के बाहर कचरा,

सड़क पर कचरा, पार्क मे कचरा,

मन्दिर, मस्जिद, गुरुद्वारा, चर्च,

सब जगह कचरा ही कचरा,

दिमाग मे कचरा, जुबान पर कचरा,

जो काम किया वह भी कचरा,

मानवीय सम्बन्ध हो गये कचरा,

बेटे ने माँ बाप का किया कचरा,

पत्नी ने पति का, पति ने पत्नी का,

प्रेमी के साथ मिल कर किया कचरा,

बेटी को बाप से खतरा,

बहन को भाई से खतरा,

पवित्र प्यार का कर दिया कचरा,

गुरु-शिश्य का सम्बन्ध हुआ कचरा,

सरकार कचरा, सरकारी बाबू कचरा,

वकील कचरा, जज कचरा,

पुलिस ओर अदालत कचरा।

 

एक कहानी पढी थी ''थूकदान',

सड़क पर चलता हर आदमी,

लेखक को दिखता था थूकदान,

आदमी बात करे आपस मे,

लेखक को दिखाई दे,

थूक रहे हे एक दूसरे मे,

कहानी वही हे, बस नाम बदला हे,

मेरी रचना का नाम है 'कचरादान'

Friday 22 May, 2009

चुनाव या सत्ता का बँटवारा?

सबने कहा यह चुनाव है,
मैंने कहा सत्ता का बँटवारा है,
चुनाव तो एक बहाना है,
असली उद्देश्य सत्ता में आना है,
मिल बाँट कर खाना है.

जनता का वोट बेकार नहीं जाएगा,
कोई न कोई तो चुना जाएगा,
जो चुना जाएगा,
पाँच वर्ष तक देश को खायेगा.

सत्ता के गलियारों में,
सत्ता के बंटवारे का भव्य आयोजन,
एक एक करके आयेंगे,
देश को खाने की शपथ खाएँगे.

चुनाव का नाटक ख़त्म,
सत्ता का नाटक शुरू,
कल के वफादार चमचे,
अब बन जायेंगे गुरु.

जनता ने वोट डाला,
अपना कर्तव्य निभाया,
पाँच साल तक भोगेंगे,
अगली बार फिर वोट दे देंगे.

सत्ता का बंटवारा अनवरत चलता रहेगा,
लोग इसे चुनाव कहते रहेंगे.

Wednesday 20 May, 2009

भिक्षाम देही

भिक्षाम देही मां,
भिक्षाम देही,
एक अच्छा सा मंत्रालय,
कमाई हो जिस में तगडी,
बनी रहे सर पर यह पगड़ी,
अर्पित है चरणों में तुम्हारे,
चिट्ठी समर्थन की,
भिक्षाम देही मां,
भिक्षाम देही.

Saturday 25 April, 2009

शन्नो हमें माफ़ कर देना

हम तुम्हारे अपराधी हैं शन्नो,
पर हम क्या करें?
एक बड़े परिवार की बिटिया बीच में आ गई,
और हमारा बिगड़ा सोच और ज्यादा गड़बड़ा गया,
मैं मंत्री हूँ कोई कृष्ण नहीं,
जो पहुँच जाऊं विदुर के यहाँ,
तुम्हारे स्कूल के साथी अंग्रेजी नहीं बोलते,
स्कूल के दरवाजे पर मोमबत्ती नहीं जलाते,
अब कैसे जाये मीडिया तुम्हारे घर?
पुलिस को हमने सफारी दी है,
इतनी महंगी कार कैसे जायेगी?
तुम्हारे घर की टूटी-फूटी सड़क पर,
डाक्टरी रिपोर्ट अब आर्डर पर बनती है,
कैसे लिखें तुम्हारी मौत कैसे हुई?
अब इस आधार पर ही तो दे पायेगा,
शिक्षा विभाग क्लीन चिट टीचर को,
अब क्या-क्या सफाई दें तुमको,
शन्नो बस तुम हमें माफ़ करदो,
हाँ एक सलाह देनी है तुमको,
अगले जन्म में बड़े घर में जन्म लेना.

Wednesday 22 April, 2009

भद्रपुरुष बिकाऊ हैं

वर्ष २००८,
आस्ट्रेलिया में मास्टर ब्लास्टर,
बजी घंटी फोन की,
बोले मुम्बई इंडियंस के मालिक,
किन्हें रखना चाहेंगे अपनी टीम में?
सचिन ने अभी सोचा नहीं था इस पर,
पर तुरत एक नाम  आया दिमाग में,
सनत जयसूर्या,
तुरत खरीद लो उसे ,
और खरीद लिया मुकेश ने,
भद्रपुरुषों का खेल,
अब भद्रपुरुषों का नहीं रहा,
भद्र तो क्या पुरुषों का भी नहीं रहा,
जो बिके वह कैसा पुरुष? 

Tuesday 10 March, 2009

बुरा न मानो होली है - शब्दों के रंग

प्रदेश के नेता के रूप में शपथ लेकर,
उन्होंने कहा,
मैं एक सीधा-सच्चा आदमी हूँ,
उनका पहला आदेश था,
पिछले मुख्यमंत्री के खिलाफ,
चार्जशीट दाखिल करवाना. 

लोहे को लोहा काटता है,
इस कहावत को चरितार्थ किया,
उनकी सरकार ने,
बीड़ा उठाया है उन्होंने,
भ्रष्टाचार ख़त्म करने का,
भ्रष्टाचारियों को मंत्री बना कर.

'सेकुलरिज्म' की तरह,
खो बैठा है अर्थ आज,
'जनादेश' भी.

जरूरत है एक राजनीतिक दुभाषिये की,
विचारों के आदान-प्रदान के लिए,
जनता और उसके प्रतिनिधियों के बीच.

लोक सभा चुनाव के बाद,
डाकुओं पर बनी एक फिल्म में,
डायलाग बदल दिया उन्होंने,
'तुम जिस रास्ते पर जा रहे हो,
वह पुलिस स्टेशन जाता है,
या फिर शम्शान,
या फिर लोक सभा'.

एक दलित महिला पर हुआ,
अमानवीय अत्याचार,
पर चुप रही दलित सरकार,
मेरे एक मित्र ने कहा,
शायद महिला के दलित होने की,
खबर झूटी थी.


Friday 6 March, 2009

नया प्रजातंत्र

आजादी के बाद,
हुआ बहुत बुरा व्यवहार,
राज परिवारों के साथ,
छीन कर उनके राज्य पकडा दिए प्रिवीपर्स,
फिर छीन लिए यह प्रिवीपर्स भी, 
खड़ा कर दिया उन्हें, 
उनकी प्रजा के साथ,
और यह छीनने वाले, 
स्वयं बना कर नए राज परिवार,
जा बैठे गगनचुम्बी अट्टालिकाओं में,
प्रजा से दूर, बहुत दूर,
प्रजा द्वारा, प्रजा के लिए,
बना कर एक नया प्रजातंत्र. 

Wednesday 4 March, 2009

इस मन की यही कहानी है (३)

मन का अधिकार कर्म पर है,
फल पर अधिकार नहीं मन का,
गुरु-सखा कृष्ण का अर्जुन को,
उपदेश  बना  मंतर  मन  का.

जीवन से पूर्व,  मृत्यु  के  बाद,
क्या होता  नही  जानता मन,
इस  जीवन  में  खोया  पाया,
उस को ही सत्य मानता मन.

ईश्वर  के  घर  में   देर  सही,
अंधेर  नहीं  कहता  है  मन,
इन कहावतों को सत्य मान,
जीवन भर  पीड़ा सहता मन,

कर्तव्यनिष्ट  हो  कर्म   करुँ,
यह मेरे  मन  ने  ठानी  है,
सारा  जीवन  संघर्ष किया,
इस मन की यही कहानी है. 


Tuesday 3 March, 2009

मन ढूँढ रहा है एक मित्र (२)

मन एक अकेला अभिमन्यु,
कैसे सब से लड़ पायेगा?
ज्यादा से ज्यादा यह होगा,
इतिहास पुनः दोहराएगा.

चाहों का रच कर चक्रव्यूह,
मन की सेनाओं ने घेरा,
इस पर मुझको अधिकार मिले,
यह मैं लूँगा, यह है मेरा.

कितना है कठिन युद्ध करना,
जब साथ नहीं हो कृष्ण कोई,
बिन गुरु, सखा और रणनीति,
सुलझेगा कैसे प्रश्न कोई?

पौराणिक गाथाएँ कहतीं,
सच की होती हर बार जीत,
पर मेरे मन के कुरुछेत्र में,
है झूट गया कई बार जीत.

मेरे मन का यह कुरुछेत्र,
नहीं दिवस अठारह तक सीमित,
कितने दिन लड़ते बीत गए,
पर अंत नहीं हो रहा विदित.

Monday 2 March, 2009

मन के अन्दर मन हैं अनेक (१)

मन रहा भागता जीवन भर,
उसके पीछे जो मिला नहीं,
जो मिला, नहीं भाया मन को,
चलता जाता सिलसिला यही.

मन के अन्दर मन हैं अनेक,
है अलग चाहना हर मन की,
मेरी ही इच्छा पूरी हो,
है यही कामना हर मन की.

एक मन कहता है 'शांत रहो',
एक मन कहता 'संघर्ष करो',
एक मन कहता 'छोडो सब कुछ',
एक मन कहता है 'कर्म करो'.

एक मन जीता, हारा विवेक,
हो गई ध्वस्त लक्ष्मण रेखा,
वह चला प्रेम का दावानल,
संयम टूटा, तन का, मन का.

एक मन हारा, जीता विवेक,
निर्बाध रही लक्ष्मण रेखा,
हुआ शांत प्रेम का दावानल,
संयम का शीतल जल वरसा.

एक मन कठोर पत्थर जैसा,
एक मन आंसू बन कर बहता,
एक मन छीना-झपटी करता,
एक मन सपने बुनता रहता.

एक मन हँसता, एक मन रोता,
एक मन सच्चा, एक मन झूठा,
एक मन भोगों का दास बना,
एक मन सन्यासी हो बैठा.

Friday 27 February, 2009

स्वप्न क्या है?

स्वप्न, 
एक वरदान मानव को ईश्वर का,
यथार्थ का दर्पण, या
मात्र एक कोरी कल्पना,
इंगित भविष्य का, या
मात्र अभिव्यक्ति अपूर्ण इच्छाओं की पूर्णता की,
परिचायक शांत गहन निद्रा का, या
एक मानसिक विकृति? 

स्वप्न,
अच्छे, बुरे, गुदगुदाते, 
डराते, हंसाते, रुलाते,
कोई बंधन नहीं,
देश, समाज, जाति, धर्म, 
उंच-नीच, काला-सफ़ेद,
सब स्वतंत्र स्वप्न देखने को,
सोते, जागते, हर समय.

स्वप्न,
एक अलग ही संसार,
अंतर्मन के रंगमंच पर,
स्वयं रचित नाटक पर अभिनय,
छिपती रहती बाह्य जगत में,
जो मन की कोमल इच्छाएं,
तरह-तरह के रूप बदल कर,
नर्तन करतीं, गर्जन करतीं,
चाहतीं वह सब कुछ पा लेना,
नहीं मिला जीवन में अब तक. 

Wednesday 25 February, 2009

प्रतीक्षा एक और अवतार की !!!

किस की प्रतीक्षा कर रहे हैं हम,
एक और अवतार की?
पिछले अवतार ने दिया था जो उपदेश,
उसे अभी तक अपने जीवन में नहीं संजो पाए,
बस याद रखा इतना ही,
'मैं बार-बार आता हूँ,
धर्म को बचाने, अधर्म को मिटाने',
भूल गए बाकी सब, 
करने लगे प्रतीक्षा एक और अवतार की.

अच्छे बुरे लोग किस युग में नहीं होते?
हमीं तो बनाते हैं उन्हें रावण और कंस,
सशक्त हैं तो अन्याय करेंगे,
निर्बल हैं तो अन्याय सहेंगे,
तर्कशास्त्र के इस युग में, 
क्यों भूल जाते हैं हम?
यदि कोई रावण है हमारे लिए,
तब क्या कंस नहीं हैं हम किसी के लिए?
दोनों ही कर रहे हैं प्रतीक्षा अवतार की,
एक रावण से मुक्ति पाने को,
दूसरा कंस से निर्भय होने को,
यदि आ गया अवतार,
तब कौन बचेगा इस धरती पर?

क्यों नहीं बदल देते उस सोच को?
जो हमसे बुरे कर्म करवाता है,
अपने पापों से मुक्ति के लिए,
अवतार की प्रतीक्षा करवाता है,
क्यों नहीं करते संकल्प?
अन्याय नहीं करेंगे,
अन्याय नहीं सहेंगे,
फल की आशा छोड़ केवल कर्म करेंगे,
यही होगी ईश्वर की सच्ची पूजा,
नहीं करनी पड़ेगी फिर अवतार की प्रतीक्षा,
ईश्वर हम सब में प्रतिविम्बित है,
हम स्वयं ईश्वर का अवतार हैं,
हर अवतार बार-बार यही समझाता है,
बस हमें अपना सोच बदलना है.

है भरत,
उठ खड़े हो,
करो एक भीष्म प्रतीज्ञा,
अब नहीं करेंगे प्रतीक्षा,
किसी और अवतार की,
हम सब ईश्वर का ही रूप हैं,
खुद ही ईश्वर का अवतार हैं,
निष्काम कर्म और प्रेम व्यवहार,
आओ इस मन्त्र को,
उतार लें अपने जीवन में,
और करें निर्माण उस भारत का,
लेने को जहाँ जन्म,
तरसते हैं देवता भी. 

Monday 23 February, 2009

स्वान्तः सुखाय प्रेम

मानव स्वभाव से होता है स्वान्तः सुखाय,
करता है हर कार्य अपने सुख के लिए,
मैं भी कोई अपवाद नहीं हूँ,
मेरे मन में तुम्हारे प्रति यह प्रेम भावः,
मुझे निरंतर सुख देता है,
मुझे अच्छा लगता है तुम्हारे बारे में सोचना,
उससे अच्छा लगता है तुम्हारी बातें करना,
उससे भी अच्छा लगता है तुमसे तुम्हारी बातें करना.

प्रेम की यह भावना,
मुझे मुक्त करती है वांधती   नहीं,
मेरा प्रेम प्रत्युत्तर की कामना नहीं करता,
कोई शर्त नहीं है मेरे प्रेम में,
मैं प्रेम करता हूँ,
क्योंकि मुझे प्रेम करना है,
बस यही आता है मुझे,
ईश्वर ने मुझे इसीलिए भेजा है यहाँ, 
जाओ प्रेम करो सबसे,
नफरत न करना किसी से. 

Sunday 22 February, 2009

खुशी चाहिए, अपने अन्दर झाँकों

एक कहावत पढ़ी थी बचपन में,
'कस्तूरी कुंडली बसे, मृग ढूंढे वन माहीं',
इसका अर्थ भी पढ़ा था, भावार्थ भी,
पर कितना समझ पाये?
आज भी तलाश रहे हैं हम,
खुशी यहाँ-वहां, इधर-उधर,
पर नहीं झांकते मन के अन्दर,
छुपा है जहाँ,
खुशी का असीमित भण्डार. 

Friday 20 February, 2009

यही बचा है हमारा परिचय!

आजकल हम बात बहुत करते हैं,
पर सिर्फ़ अधिकारों की,
कर्तव्य की बात बेमानी हो गई है,
क्यों लेते हैं हम जिम्मेदारी?
जब उसे निभा नहीं पाते,
वह सब करते हैं हम, 
जो हमें नहीं करना चाहिए,
और जो हमें करना चाहिए,
वह नहीं करते,
क्यों आख़िर क्यों?

धन और मान मिलने पर नम्र नहीं रह पाते,
अधिकार मिलने पर न्याय नहीं कर पाते,
स्वयं के लिए आदर की अपेक्षा,
दूसरों के लिए अनादर और उपेक्षा,
जो मन में है, वह वचन नहीं,
जो वचन दिया वह किया नहीं,
दो चेहरे दो बातें,
मुख में मिश्री, मन में घातें,
बस यही बचा है हमारा परिचय. 

Thursday 19 February, 2009

एक और नया प्रेम

एक हल्का फुल्का सा कोमल एहसास,
उतर आया मेरे मन में,
चुपके-चुपके, धीरे-धीरे,
सहमा सा, सकुचाया सा, 
लगा रहने मेरे मन में,
अनेक अपरिचित एहसासों के साथ.

कुछ अलग सा था यह एहसास,
मात्र ही कुछ दिवसों के बाद,
हो उठा मुखर,
तीव्र और प्रखर,
धकेले पीछे सब एहसास,
प्रतिष्ठित हुआ मेरे मन में,
एक नई मूर्ति के साथ.

मन की मुखरता का रूप बदला,
अधरों पर नए गीत जागे,
नई खुशबू हवाओं में,
नई ऊषा की लाली,
चिड़ियों ने नई तान छेड़ी,
प्रकृति ने मानो सर्वांग रूप बदला,
मिल गया था मुझे प्रेम का,
एक और नया पात्र. 

Wednesday 18 February, 2009

मेरा कुरुछेत्र

अर्जुन ने लड़ा था एक कुरुछेत्र,
पाने को,
छिना था उस से जो कुछ,
मेरा सारा जीवन ही बीत गया कुरुछेत्रों में,
मेरा न कुछ छिना था,
न मैंने कुछ पाना था,
चाहा था बस यही,
सब को मिलें समान अवसर,
जीवन मैं आगे बदने के,
मेहनत का फल बँटे बराबर,
पंक्ति के अंत में जो खड़ा है,
प्रगति का लाभ पहुंचे उस तक.

अर्जुन का कुरुछेत्र,
हो गया था समाप्त,
अठारह दिनों में,
मेरा कुरुछेत्र सतत जारी है,
एक अंतहीन युद्ध,
एक अंतहीन प्रतीक्षा,
एक विजय की.   

Monday 16 February, 2009

कभी सोचा है तुमने?

इतिहास की यह मान्यता है,
स्रष्टि के प्रारम्भ से आज तक,
हर संघर्ष में,
जो हुआ,
विपरीत मूल्यों के बीच,
हर बार विजयी  रहा,
धर्म अधर्म पर,
सत्य असत्य पर,
पुन्य पाप पर.

पर व्यक्तिगत जीवन में,
हम जब कभी अपने कुरुछेत्र से गुजरे,
एक विपरीत अनुभव हुआ,
धर्म और सत्य हमेशा नहीं जीते,
पाप हमेशा नहीं हारा.

ऐसा क्यों होता है?
क्यों नहीं होतीं परिलक्षित?
इतिहास की यह मान्यताएं,
हमारे व्यक्तिगत जीवन में,
कभी सोचा है तुमने?

Friday 13 February, 2009

क्या फर्क है मुझमें और तुममें?

"ईश्वर की सत्ता है",
आस्तिक विश्वास करता है,
नास्तिक अविश्वास करता है,
पर क्या वास्तव में,
दोनों ईश्वर की ही बात नहीं करते? 

"प्रेम ईश्वर है"'
स्रष्टि का आधार है,
एक अटूट बंधन है हम सबके बीच,
हमसे यदि कुछ सम्भव है अकारण ही,
वह है प्रेम करना,
या तो हम प्रेम करते हैं,
या हम प्रेम नहीं करते, 
पर क्या वास्तव में,
हम सब प्रेम की ही बात नहीं कहते? 

"हम सब समान हैं"'
हम रावण है किसी के लिए,
कोई कंस है हमारे लिए,
क्या फर्क है मुझमें और तुममें?

Monday 9 February, 2009

दूसरों से अलग राय रखना ओबसीन नहीं है !!!

अंग्रेजी भाषा में एक शब्द है - ओबसीन. हिन्दी भाषा में जो शब्द इस के लिए प्रयोग किए जा सकते हैं वह हैं -   अशुभ, अश्लील, निर्लज्ज. आज एक समाचार पत्र में एक नियमित रूप से लेख लिखने वाले एक सज्जन ने इस शब्द का प्रयोग किया है. उनके अनुसार मंगलोर में एक पब में शराब पीने वाली महिलाओं से दुर्व्यवहार करना ओबसीन था. दिल्ली में पुलिस द्वारा एक युवा युगल को सार्वजनिक स्थान पर चुम्बन लेने पर गिरफ्तार करना ओबसीन था. मुझे यह पढ़ कर कुछ अजीब लगा. सार्वजनिक स्थान पर शराब पीना और चुम्बन लेना ओबसीन नहीं है, पर उसका विरोध करना ओबसीन है. इसके बाद शायद - सार्वजनिक स्थान पर शराब पी कर हुडदंग करना और चुम्बन के बाद रति क्रीडा को भी शायद ओबसीन नहीं माना जायेगा. हाँ इनका विरोध करना ओबसीन होगा.

में यह मानता हूँ कि सबको अपने तरीके से सोचने का अधिकार है, पर उन सबको यह मानना चाहिए कि दूसरों को भी यह अधिकार  है. अगर किसी को  सार्वजनिक स्थान पर शराब पीने और चुम्बन लेने का अधिकार है तो दूसरों को इसे अश्लील, निर्लज्ज कहने का भी अधिकार है. इस का विरोध करने का अधिकार है. हाँ यह विरोध हिंसक नहीं होना चाहिए, क्योंकि हिंसक होने पर यह विरोध कानून का उल्लंघन हो जायेगा और ऐसा करने वाला सजा का हकदार होगा. मंगलोर में जो हुआ वह कानूनन अपराध था, ओबसीन नहीं. उस पर कानूनी कार्यवाही करनी चाहिए. 

इस देश में बहुत कुछ ओबसीन हो रहा है. उस का विरोध होना चाहिए. 

केन्द्र सरकार की एक महिला मंत्री द्वारा शराब खानों को भरने का आह्वान करना ओबसीन है. 
इन महिला मंत्री का वह कथन ओबसीन है जिस में उन्होंने कहा था कि भारतीय पुरुषों को अब यह आशा करना छोड़ देना चाहिए कि उन्हें कुंवारी लड़की पत्नी रूप में मिलेगी.
लिव-इन रिलेशनशिप की वकालत करना ओबसीन है. 
सम-लेंगिक संबंधों को कानूनी मान्यता देना ओबसीन है. 
सरकारी विज्ञापनों में  राजनीतिक दल के अध्यक्ष का फोटो छपना ओबसीन है. 
युवा शक्ति की आड़ में पारिवारिक सत्ता को आगे बढ़ाना ओबसीन है. 
आमदनी से ज्यादा धन इकठ्ठा करना ओबसीन है, उससे ज्यादा ओबसीन है जांच एजेंसी पर दबाब डाल कर मामले को रफा दफा करवाना.
सरकार को समर्थन बेचना और उसके बदले में गैरकानूनी फायदे लेना ओबसीन है.
व्यक्तिगत फायदे के लिए दल परिवर्तन ओबसीन है. 

लिस्ट बहुत लम्बी है और यह बहुत शर्मनाक है. 

Monday 2 February, 2009

मेरे जीवन का काव्य भावः

आज से ३७ वर्ष पहले,
जुड़े थे हम एक होने को,
पवित्र वैवाहिक बंधन में,
पूर्णता प्रदान की मुझे,
जिन्होनें अपने साथ से,
है आज उनका जन्म दिन, 
वधाई देकर उन्हें,
लग रहा है मुझे,
जैसे दे रहा हूँ वधाई स्वयं को. 

Wednesday 28 January, 2009

बेटी, पराया धन

मां-वापू, 
क्यों कहते हो मुझे पराया धन?
तुमने मुझे जन्म दिया,
पाल पोस कर बड़ा किया,
खून बहता है तुम्हारा मेरी रगों में,
किसी और को में जानती नहीं.

बताओ न  मां-वापू, 
कौन है वह जो मुझे तुम्हें दे गया?
कृष्ण को जन्म दिया देवकी ने,
पाला पोसा यशोदा ने,
क्या कृष्ण पराया धन थे?
देवकी का यशोदा के पास,
पर मेरे साथ तो ऐसा भी नहीं है,
मुझे तुम्हीं ने जन्म दिया,
तुम्हीं ने पाला पोसा,
फ़िर में कैसे हो गई पराया धन?
  
भईया की तरह में बेटी हूँ तुम्हारी,
उसे कभी नहीं कहा तुमने पराया धन,
मैं भी तुम्हारा अपना धन हूँ, 
भईया की तरह,
मां-वापू, 
मत कहो मुझे पराया धन,
जब तुम ऐसा कहते हो,
कलेजा कटता है मेरा.

Tuesday 27 January, 2009

गणतंत्र, नेतातंत्र या परिवारतंत्र?

६० वर्ष पूर्व जन्मा था भारतीय गणतंत्र,
पर अब नजर नहीं आता कहीं,
अल्पायु में म्रत्यु को प्राप्त हो गया?
लिप्सा के जंगल में कहीं खो गया?
छुपा दिया उसे कहीं अगवा कर?
पुलिस ने कर दिया एनकाउन्टर?
कारण कोई भी रहा हो,
पर अब दिखता नहीं कहीं गणतंत्र. 

कल मनाया था राष्ट्र ने एक जन्म दिवस,
पढ़ा था हमने, लिखा था हमने, 
सुना था हमने, कहा था हमने,
दी थी वधाई एक दूसरे को,
६० वें गणतंत्र दिवस की,
कितनी सच्चाई थी इस में?
अखबारों में छपे सेंकडों विज्ञापन,
हजारों नेताओं के चेहरे दिखे जिन में, 
आम आदमी कहीं नजर नहीं आया,
क्या मनाया था हमनें नेतातंत्र दिवस?
कुर्सी अभी खाली नहीं हुई,
पर आरक्षित हो गई नाम से,
बेटे, बेटी या फ़िर पत्नी के,
क्या मनाया था हमनें परिवारतंत्र दिवस?

जन, गण, मन न मंगल कोई,
नेता बन बैठे अधिनायक,
और भारत के भाग्य विधाता, 
न कोई शुभ नाम जगा,
न पाई शुभ आशीष कोई,
६० वर्ष का हुआ आज पर, 
नहीं नजर आता गणतंत्र.  

Sunday 25 January, 2009

नेताजी महिमा

बड़े लड़ैया हैं नेता जी,
इनकी मार सही न जाए,
एक को मारें दो मर जाएँ,
तीसरा मरे सनाका खाए,

कथनी कुछ और करनी कुछ,
है डिग्री यह नेता जी की,
जाति, धर्म, भाषा  के झगडे,
रोज कराते हैं नेता जी.

प्रजातान्त्रिक देश हमारा,
नेतातान्त्रिक देश बनाया,
मरने तक कुर्सी न छोड़ी, 
बेटे को कुर्सी पे बिठाया. 

काट-काट जेबें जनता की,
अपनी जेब भरें नेताजी,
दोनों हाथों में लड्डू हैं, 
कोई काम करें नेताजी.

मरने पर भी दुखी करें जो,
उनको कहते हैं नेताजी,
बना म्यूजियम घर अब उनका,
भूत बने रहते नेताजी. 

अलग-अलग लेबल चिपकाते,
अपने माथे पर नेताजी,
अलग काम की अलग है कीमत,
लगे सेल पर हैं नेताजी.

हे भगवान छुड़ाओ पीछा,
जोंक बने चिपके नेताजी,
सारा खून चूस कर भी,
खाली पेट खड़े नेताजी. 


Tuesday 20 January, 2009

क्या इन्हें भारतीय कहा जा सकता है?

मुंबई हमले के बाद सारा भारत आतंकवाद के ख़िलाफ़ एक हो गया (कांग्रेस के अंतुले और कुछ राजनीतिबाजों को छोड़ कर). शुरू में अंतर्राष्ट्रीय विचारधारा भी भारत के पक्ष में बहुत मजबूत नजर आई पर समय के साथ उस में कुछ नरमी नजर आने लगी. कुछ देश पाकिस्तान के पक्ष में भी दलील देने लगे. अमरीकी भारत में कुछ और पाकिस्तान में कुछ और बयान देते. फ़िर आए ब्रिटेन के विदेश सचिव. इन महाशय ने तो भारत के पक्ष की धज्जियाँ उड़ा दीं. 

भारत - मुंबई हमले में पाकिस्तान की सरकारी एजेंसियों का हाथ है.
ब्रिटेन के विदेश सचिव - नहीं यह ग़लत है, मैं ऐसा नहीं मानता.
भारत - पाकिस्तान मुंबई हमलों के दोषियों को भारत के सौंपे.
ब्रिटेन के विदेश सचिव - नहीं, पाकिस्तान मुंबई हमलों के दोषियों को भारत नहीं सौपेंगा. उन पर पाकिस्तान में ही मुकदमा चलाया जायेगा. 
भारत - पाकिस्तान की जमीन से आतंकवाद पनप रहा है.
ब्रिटेन के विदेश सचिव - नहीं, मुंबई हमलों का सम्बन्ध कश्मीर से है.

कोई भी भारतीय नागरिक इन महोदय को बर्दाश्त नहीं करेगा. मगर कांग्रेस का व्यवहार बहुत ही अजीब रहा. कांग्रेस जिसे भारत के प्रधान मंत्री के रूप में इस देश पर थोपने की कवायद कर रही है, वह ब्रिटेन के विदेश सचिव को अपने चुनाव छेत्र में पिकनिक पर ले जाता है और उसकी खूब खातिर करता है. 

न तो कांग्रेस को, न कांग्रेस सरकार को, न ही इस व्यक्ति को ब्रिटेन के विदेश सचिव के इन भारत विरोधी बयानों में कोई ग़लत बात नजर आती है, न ही कोई अपमान अनुभव होता है. वह देश का अपमान करता है और यह उसे घुमाने ले जाता है और उसकी खातिर करता है. क्या ऐसे लोगों को भारतीय कहा जा सकता है? 

Thursday 15 January, 2009

नूतन और पुरातन सम्बन्ध

जब जुड़ें सम्बन्ध नूतन,
प्रेम से सींचों उन्हें तुम,
तोड़ते हो पर मगर क्यों,
प्रेम के रिश्ते पुरातन?

(१) 
छोड़ कर बाबुल का आँगन,
आ गई अपने पिया घर,
प्रेम और सम्मान से तुम,
जीत लो सबके यहाँ मन.

दूध के इस पात्र में तुम,
समां जाओ दूध बन कर,
कोई न पहचान पाये,
क्या है नूतन क्या पुरातन?

माई, बापू, भाई, बहना,
सास, ससुर, देवर और ननद,
नाम नए, सम्बन्ध पुराने,
प्रेम करो पाओ आनंद. 

(२) 
दोनों बाहें खोल दो तुम,
आया एक नया मेहमान,
इतना प्रेम लुटाओ उस पर,
बिसर जाए बाबुल का ध्यान.

बंश बेल फ़िर बढे तुम्हारी,
सब पायें सबका सम्मान,
रिद्धि-सिद्धि नाचें आँगन में,
सब पर कृपा करें भगवान.

परिवार और परिवार का,
मंगलमय नूतन सम्बन्ध,
शक्ति बढे, सम्मान बढे,
हो सफल प्रेम नूतन सम्बन्ध. 

Tuesday 13 January, 2009

कुमारित्व (कुआंरापन) की नीलामी

यह खबरें अखबार में पढ़ी मैंने. 

क्या हो रहा इस संसार में? 
इंटरनेट पर नीलामी लगाई उसने, 
अपने कुमारित्व की,
'एक रात के लिए खरीद सकते हैं आप,
मेरा  कुआंरापन,
बोली लगाइए,
मैं हूँ केलिफोर्निया की एक २२ वर्षीय छात्रा,
नताली डीलान,
'परिवार एवं विवाह' में मास्टर्स डिग्री, 
करने के लिए चाहिये मुझे पैसा,
प्रोत्साहन मिला मुझे अपनी बड़ी बहन से,
जिसने पैसा इकठ्ठा किया डिग्री के लिए,
तीन सप्ताह तक वेश्यावृति करके,
बोली पहुँची है २.५ मिलियन पाउंड, 
क्या आप लगायेंगे बोली?'

अब इन्हें भी देखिये.
चीन की वांग गुइयिंग हो गई हैं १०७ वर्ष की,
पर अभी तक कुंवारी हैं, 
खलने लगा है उन्हें अब अकेलापन,
तलाश हे उन्हें एक पति की,
एक शतवर्षीय पुरूष की,
जिस से वह बात कर सकें,
विवाह की, 
क्या ख्याल है आपका? 

Monday 12 January, 2009

जब बन जायेंगी आप मेरी मां!!!

पड़ोसिनों से घिरी,
वह कर रही थीं निंदा,
अपनी बहू की,
उसके मायके वालों की,
इस सब को बर्दाश्त करती,
बहू लगी थी खातिर में.

एक पडोसन ने पूछा,
तुम्हारी बहू तुम्हें सासू जी कहती है,
सासू मां, मां, या मम्मी क्यों नहीं?
सब पड़ोसिनों ने सर हिलाया,
हाँ, यह तो नोटिस किया है हमने भी,
सासू जी ने गोली दागी,
बहू जवाब दे इनकी बात का.

शांत स्वर में बोली बहू,
सासू जी कहती हूँ आपको,
क्यों की आप सासू जी हैं मेरी,
'मां' नहीं कह सकती?
वह गुस्से से चिल्लाईं, 
कहूँगी 'मां', बहू बोली,
जब बन जायेंगी आप मेरी 'मां',
क्या मतलब, वह चकराईं, 
अभी आप हैं मां,
अपने बेटे और बेटी की,
मेरी तो केवल सास हैं आप,
आप निभाती हैं सास का धर्म ,
मैं निभा रही हूँ धर्म बहू का. 

Friday 9 January, 2009

आतंक ही आतंक

लोग उन्हें गुरूजी कहते हैं,
पर काम उनके 'भाई' जैसे हैं,
कुर्सी से बहुत प्यार हैं उन्हें,
पर कुर्सी बार-बार दगा दे जाती है,
पहले अदालत ने छीनी थी कुर्सी,
अब छीन ली जनता ने. 

बचपन में पढ़ा था,
आम बोओगे तो आम मिलेंगे,
बबूल बोओगे तो बबूल,
पर हकीकत कुछ और निकली,
बोया था हमने प्रजातंत्र,
पर उग आया कंटीला राजतंत्र. 

उन्होंने कर दी हड़ताल, 
गर्व से दिया नारा,
'जाम करेंगे देश का चक्का',
हम तुम्हारे साथ हैं बोले तेलकर्मी,
आतंक के वह साठ घंटे,
अभी भूल नहीं पाया था देश,
यह नया आतंक शुरू हो गया.

उम्र क्या होती है?
अनुभव क्या होता है?
कुर्सी पर बैठते ही,
सब कुछ आ जाता है,
उनके पिता जी चालीस के थे,
वह भी चालीस के लपेटे मैं हैं,
सही उम्र है प्रधानमंत्री बनने की.

Wednesday 7 January, 2009

तू पागल है क्या?

हमारे मोहल्ले का मेडिकल सेंटर,
लगा है वहां एक बोर्ड,
लिखा है जिस पर,
यहाँ नहीं होता,
गर्भस्थ शिशु का लिंग परीक्षण, 
नीचे कोने में लिखा है,
कंडीशंस एप्लाई. 

लोग उसे पागल कहते हैं,
कल उसका भाई पकड़ा गया,
अपहरण और बलात्कार के अपराध में,
वह गई जेल में उस से मिलने,
'भाई तुम ने यह क्या किया,
मैं तो थी घर में मौजूद,
तुम्हारा काम भी हो जाता,
और जेल भी नहीं होती'
भाई गुस्से से चिल्लाया,
'तू पागल है क्या?'
'नहीं मैं एक औरत हूँ,
बिल्कुल उस लड़की की तरह,
जैसे वह लड़की है बहन,
किसी भाई की, मेरी तरह'.


Tuesday 6 January, 2009

भारत गावों में बसता है!!!

कौन गया था सबसे पहले गाँव छोड़ कर?
वह नेता जी जिन्हें चुना था 
भोले भाले ग्रामीणों ने, 
नेता जी ने हाथ जोड़ कर,
मत मांगे थे और कहा था,
यह कर दूँगा, वह कर दूँगा,
गाँव बनेगा स्वर्ग हमारा,
सब पायेंगे सुख समृद्धि,
जगा गया था कई आशाएं,
प्यारे-प्यारे मीठे सपने,
उनका महानगर प्रस्थान.

कुछ दिन बाद ख़बर यह आई,
नेता जी ने गाँव छोड़ कर,
स्वर्ग बनाया महानगर में, 
धीरे-धीरे चले गए सब गाँव छोड़कर,
स्वर्ग खोजने महानगर में,
और गाँव में देव आ गए,
फार्म हाउस के स्वर्ग बनाने,
माल बना कर माल कमाने. 

सुना था मैंने, पढ़ा था मैंने,
परीक्षाओं में लिखा था मैंने, 
भारत गावों में बसता था,
अब बसते हैं शहर गाँव में.

Sunday 4 January, 2009

नव वर्ष का दर्द!!!

क्या सुनी तुमने,
एक दर्द भरी सिसकी,
मन की गहराइयों से उठती,
दर्द की आवाज?

कान बज रहे हैं तुम्हारे,
नव वर्ष के आगमन पर,
हो रहे इस शोर में,
सुन रहे हो तुम,
एक दर्द भरी सिसकी,
एक पैग और ले लो,
सब ठीक हो जायेगा. 

हँसी में मत उड़ाओ मेरी बात,
कोई बाकई सिसक रहा है,
मैं पहचानता हूँ इस दर्द की आवाज को,
अक्सर सुना है मैंने इसे,
आजादी की हर वर्षगाँठ पर,
होली, दिवाली, गुरु पर्व और ईद पर,
हर बार जब नया साल आता है,
यह दर्द की आवाज आती है. 

कौन है यह?
क्या दर्द है इसे?
देश आगे बढ़ रहा है,
हर और तरक्की हो रही है,
लोग खुश हैं, नाच रहे हैं, गा रहे हैं,
पर यह दर्द कम क्यों नहीं होता?
लोग इसे सुन क्यों नहीं पाते?
मैं सुन पाता हूँ,
पर कुछ कर नहीं पाता,
छुपाने को अपनी नपुंसकता,
एक पैग और लेता हूँ,
और फ़िर हो जाता हूँ शामिल,
नाच-गानों के शोर में. 

नया साल सब को मुबारक हो. 

Friday 2 January, 2009

नया साल और बिजली गायब

नए साल का नया सवेरा,
लेकर आया गहरा कोहरा, 
बिजली वालों का उपहार, 
विजली गायब हुआ अँधेरा.

फोन किया जब बिजली दफ्तर,
बिजली वाला बोला हंस कर,
कैसा लगा हमारा तोहफा?
ऐसे कई अनोखे तोहफे,
तुमको पूरे साल मिलेंगे,
दिल्ली वालों को खुश करके, 
हमारे ह्रदय कमल खिलेंगे.

गर्मी में जब बिजली जाए,
तुमको रोना न आ जाए, 
इसीलिए हम सब ने सोचा,
जाड़ों में भी बिजली जाए,
सारे साल बिना बिजली के,
रहने की आदत पड़ जाए.

विकट अँधेरा घिरा देश में,
कैसे घर में आए रौशनी?
घर और देश अंधेरे में हों,
ऐसी हमने कोशिश करनी.

आओ दिल्ली वालों आओ,
हमारे संग तुम हाथ बटाओ,
नया साल मुबारक तुमको,
मोमबत्ती से काम चलाओ.