इतिहास की यह मान्यता है,
स्रष्टि के प्रारम्भ से आज तक,
हर संघर्ष में,
जो हुआ,
विपरीत मूल्यों के बीच,
हर बार विजयी रहा,
धर्म अधर्म पर,
सत्य असत्य पर,
पुन्य पाप पर.
पर व्यक्तिगत जीवन में,
हम जब कभी अपने कुरुछेत्र से गुजरे,
एक विपरीत अनुभव हुआ,
धर्म और सत्य हमेशा नहीं जीते,
पाप हमेशा नहीं हारा.
ऐसा क्यों होता है?
क्यों नहीं होतीं परिलक्षित?
इतिहास की यह मान्यताएं,
हमारे व्यक्तिगत जीवन में,
कभी सोचा है तुमने?
4 comments:
पर व्यक्तिगत जीवन में,
हम जब कभी अपने कुरुछेत्र से गुजरे,
एक विपरीत अनुभव हुआ,
धर्म और सत्य हमेशा नहीं जीते,
पाप हमेशा नहीं हारा.
... प्रसंशनीय अभिव्यक्ति है।
सही विचारों की सुंदर अभिव्यक्ति....
हमेशा की तरह उत्तम विचार.
सुरेश जी बहुत अच्छा विचार.
धन्यवाद
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