एक हल्का फुल्का सा कोमल एहसास,
उतर आया मेरे मन में,
चुपके-चुपके, धीरे-धीरे,
सहमा सा, सकुचाया सा,
लगा रहने मेरे मन में,
अनेक अपरिचित एहसासों के साथ.
कुछ अलग सा था यह एहसास,
मात्र ही कुछ दिवसों के बाद,
हो उठा मुखर,
तीव्र और प्रखर,
धकेले पीछे सब एहसास,
प्रतिष्ठित हुआ मेरे मन में,
एक नई मूर्ति के साथ.
मन की मुखरता का रूप बदला,
अधरों पर नए गीत जागे,
नई खुशबू हवाओं में,
नई ऊषा की लाली,
चिड़ियों ने नई तान छेड़ी,
प्रकृति ने मानो सर्वांग रूप बदला,
मिल गया था मुझे प्रेम का,
एक और नया पात्र.
2 comments:
vah vah gupta ji apko v aapke naye patar ko bahut bahut badhaai bahut sundar abhivyakti hai
अधरों पर नए गीत जागे,
नई खुशबू हवाओं में,
नई ऊषा की लाली,
चिड़ियों ने नई तान छेड़ी,
प्रकृति ने मानो सर्वांग रूप बदला,
मिल गया था मुझे प्रेम का,
एक और नया पात्र.
" bhut bhut sundr abhivykti.."
Regards
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