एक कहावत पढ़ी थी बचपन में,
'कस्तूरी कुंडली बसे, मृग ढूंढे वन माहीं',
इसका अर्थ भी पढ़ा था, भावार्थ भी,
पर कितना समझ पाये?
आज भी तलाश रहे हैं हम,
खुशी यहाँ-वहां, इधर-उधर,
पर नहीं झांकते मन के अन्दर,
छुपा है जहाँ,
खुशी का असीमित भण्डार.
हर व्यक्ति कवि है. अक्सर यह कवि कानों में फुसफुसाता है. कुछ सुनते हैं, कुछ नहीं सुनते. जो सुनते हैं वह शब्द दे देते हैं इस फुसफुसाहट को. एक और पुष्प खिल जाता है काव्य कुञ्ज में.
हमारे मन में सबके प्रति प्रेम, सहानुभूति, मित्रता और शांतिपूर्वक साथ रहने का भाव हो
3 comments:
khushi hamare man ewm vicharon mai hi chipi hai
सच है कि हमने कभी अपने आत्म से संबंध नहीं बनाया। दरअसल हमारे लिए अपना साथ ही सबसे बुरा होता है लेकिन अगर हम स्वयं को सुधारें, अपने को दिव्यता से भरे अथवा कलुषता हटाकर दिव्यता प्राप्त करे तो हम भी ईश्वर के आशीर्वाद को प्राप्त कर सुखी हो सकते हैं।
आप ने फिर हमेशा की तरह खरी बात कह दी.
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