दैनिक प्रार्थना

हमारे मन में सबके प्रति प्रेम, सहानुभूति, मित्रता और शांतिपूर्वक साथ रहने का भाव हो


दैनिक प्रार्थना

है आद्य्शक्ति, जगत्जन्नी, कल्याणकारिणी, विघ्न्हारिणी माँ,
सब पर कृपा करो, दया करो, कुशल-मंगल करो,
सब सुखी हों, स्वस्थ हों, सानंद हों, दीर्घायु हों,
सबके मन में संतोष हो, परोपकार की भावना हो,
आपके चरणों में सब की भक्ति बनी रहे,
सबके मन में एक दूसरे के प्रति प्रेम भाव हो,
सहानुभूति की भावना हो, आदर की भावना हो,
मिल-जुल कर शान्ति पूर्वक एक साथ रहने की भावना हो,
माँ सबके मन में निवास करो.

Tuesday 10 March, 2009

बुरा न मानो होली है - शब्दों के रंग

प्रदेश के नेता के रूप में शपथ लेकर,
उन्होंने कहा,
मैं एक सीधा-सच्चा आदमी हूँ,
उनका पहला आदेश था,
पिछले मुख्यमंत्री के खिलाफ,
चार्जशीट दाखिल करवाना. 

लोहे को लोहा काटता है,
इस कहावत को चरितार्थ किया,
उनकी सरकार ने,
बीड़ा उठाया है उन्होंने,
भ्रष्टाचार ख़त्म करने का,
भ्रष्टाचारियों को मंत्री बना कर.

'सेकुलरिज्म' की तरह,
खो बैठा है अर्थ आज,
'जनादेश' भी.

जरूरत है एक राजनीतिक दुभाषिये की,
विचारों के आदान-प्रदान के लिए,
जनता और उसके प्रतिनिधियों के बीच.

लोक सभा चुनाव के बाद,
डाकुओं पर बनी एक फिल्म में,
डायलाग बदल दिया उन्होंने,
'तुम जिस रास्ते पर जा रहे हो,
वह पुलिस स्टेशन जाता है,
या फिर शम्शान,
या फिर लोक सभा'.

एक दलित महिला पर हुआ,
अमानवीय अत्याचार,
पर चुप रही दलित सरकार,
मेरे एक मित्र ने कहा,
शायद महिला के दलित होने की,
खबर झूटी थी.


Friday 6 March, 2009

नया प्रजातंत्र

आजादी के बाद,
हुआ बहुत बुरा व्यवहार,
राज परिवारों के साथ,
छीन कर उनके राज्य पकडा दिए प्रिवीपर्स,
फिर छीन लिए यह प्रिवीपर्स भी, 
खड़ा कर दिया उन्हें, 
उनकी प्रजा के साथ,
और यह छीनने वाले, 
स्वयं बना कर नए राज परिवार,
जा बैठे गगनचुम्बी अट्टालिकाओं में,
प्रजा से दूर, बहुत दूर,
प्रजा द्वारा, प्रजा के लिए,
बना कर एक नया प्रजातंत्र. 

Wednesday 4 March, 2009

इस मन की यही कहानी है (३)

मन का अधिकार कर्म पर है,
फल पर अधिकार नहीं मन का,
गुरु-सखा कृष्ण का अर्जुन को,
उपदेश  बना  मंतर  मन  का.

जीवन से पूर्व,  मृत्यु  के  बाद,
क्या होता  नही  जानता मन,
इस  जीवन  में  खोया  पाया,
उस को ही सत्य मानता मन.

ईश्वर  के  घर  में   देर  सही,
अंधेर  नहीं  कहता  है  मन,
इन कहावतों को सत्य मान,
जीवन भर  पीड़ा सहता मन,

कर्तव्यनिष्ट  हो  कर्म   करुँ,
यह मेरे  मन  ने  ठानी  है,
सारा  जीवन  संघर्ष किया,
इस मन की यही कहानी है. 


Tuesday 3 March, 2009

मन ढूँढ रहा है एक मित्र (२)

मन एक अकेला अभिमन्यु,
कैसे सब से लड़ पायेगा?
ज्यादा से ज्यादा यह होगा,
इतिहास पुनः दोहराएगा.

चाहों का रच कर चक्रव्यूह,
मन की सेनाओं ने घेरा,
इस पर मुझको अधिकार मिले,
यह मैं लूँगा, यह है मेरा.

कितना है कठिन युद्ध करना,
जब साथ नहीं हो कृष्ण कोई,
बिन गुरु, सखा और रणनीति,
सुलझेगा कैसे प्रश्न कोई?

पौराणिक गाथाएँ कहतीं,
सच की होती हर बार जीत,
पर मेरे मन के कुरुछेत्र में,
है झूट गया कई बार जीत.

मेरे मन का यह कुरुछेत्र,
नहीं दिवस अठारह तक सीमित,
कितने दिन लड़ते बीत गए,
पर अंत नहीं हो रहा विदित.

Monday 2 March, 2009

मन के अन्दर मन हैं अनेक (१)

मन रहा भागता जीवन भर,
उसके पीछे जो मिला नहीं,
जो मिला, नहीं भाया मन को,
चलता जाता सिलसिला यही.

मन के अन्दर मन हैं अनेक,
है अलग चाहना हर मन की,
मेरी ही इच्छा पूरी हो,
है यही कामना हर मन की.

एक मन कहता है 'शांत रहो',
एक मन कहता 'संघर्ष करो',
एक मन कहता 'छोडो सब कुछ',
एक मन कहता है 'कर्म करो'.

एक मन जीता, हारा विवेक,
हो गई ध्वस्त लक्ष्मण रेखा,
वह चला प्रेम का दावानल,
संयम टूटा, तन का, मन का.

एक मन हारा, जीता विवेक,
निर्बाध रही लक्ष्मण रेखा,
हुआ शांत प्रेम का दावानल,
संयम का शीतल जल वरसा.

एक मन कठोर पत्थर जैसा,
एक मन आंसू बन कर बहता,
एक मन छीना-झपटी करता,
एक मन सपने बुनता रहता.

एक मन हँसता, एक मन रोता,
एक मन सच्चा, एक मन झूठा,
एक मन भोगों का दास बना,
एक मन सन्यासी हो बैठा.