आजकल हम बात बहुत करते हैं,
पर सिर्फ़ अधिकारों की,
कर्तव्य की बात बेमानी हो गई है,
क्यों लेते हैं हम जिम्मेदारी?
जब उसे निभा नहीं पाते,
वह सब करते हैं हम,
जो हमें नहीं करना चाहिए,
और जो हमें करना चाहिए,
वह नहीं करते,
क्यों आख़िर क्यों?
धन और मान मिलने पर नम्र नहीं रह पाते,
अधिकार मिलने पर न्याय नहीं कर पाते,
स्वयं के लिए आदर की अपेक्षा,
दूसरों के लिए अनादर और उपेक्षा,
जो मन में है, वह वचन नहीं,
जो वचन दिया वह किया नहीं,
दो चेहरे दो बातें,
मुख में मिश्री, मन में घातें,
बस यही बचा है हमारा परिचय.
1 comment:
यही बचा है परिचय. सही कहा
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