कचरा ही कचरा हर तरफ़,
घर मे कचरा, घर के बाहर कचरा,
सड़क पर कचरा, पार्क मे कचरा,
मन्दिर, मस्जिद, गुरुद्वारा, चर्च,
सब जगह कचरा ही कचरा,
दिमाग मे कचरा, जुबान पर कचरा,
जो काम किया वह भी कचरा,
मानवीय सम्बन्ध हो गये कचरा,
बेटे ने माँ बाप का किया कचरा,
पत्नी ने पति का, पति ने पत्नी का,
प्रेमी के साथ मिल कर किया कचरा,
बेटी को बाप से खतरा,
बहन को भाई से खतरा,
पवित्र प्यार का कर दिया कचरा,
गुरु-शिश्य का सम्बन्ध हुआ कचरा,
सरकार कचरा, सरकारी बाबू कचरा,
वकील कचरा, जज कचरा,
पुलिस ओर अदालत कचरा।
एक कहानी पढी थी ''थूकदान',
सड़क पर चलता हर आदमी,
लेखक को दिखता था थूकदान,
आदमी बात करे आपस मे,
लेखक को दिखाई दे,
थूक रहे हे एक दूसरे मे,
कहानी वही हे, बस नाम बदला हे,
मेरी रचना का नाम है 'कचरादान'।
7 comments:
बहुत ही सुन्दर अभिव्यक्ति है भाई जी...............अतिसुन्दर
जीवन की विसंगतियों का सटीक चित्रण।
-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
सुरेश जी,
आजकल बहुत कम उपस्थिति हो पा रही है। ऐसा क्यूं?
बहुत अच्छा लेख!
लिजिये हम इस कचरे से निकाल कर एक टिपण्णी लाये है, कबूल किजिये.
धन्यवाद, इस अति सुंदर रचना के लिये, आज सच मै सिर्फ़ कचरा ही बचा है,
बहुत दिनों बाद दर्शन हुये, लेकिन सच्चाई की एक और रचना के साथ.
मुझे आपका लेख बहुत अच्छा लगा मैं रोज़ आपका ब्लॉग पढ़ना है। आप बहुत अच्छा काम करे हो..
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