अरे ओ दिल्ली वालों,
कब तमीज सीखोगे तुम?
शीला दीक्षित, तेजिंदर खन्ना,
और अब पी चिदंबरम,
सबका मन दुखता हे,
तुम्हारे असभ्य व्यवहार से,
पर तुम निकाल देते हो,
इस कान से सुन कर उस कान से,
कब बदलोगे अपना असभ्य सोच?
कामनवेल्थ खेलों में,
आयेंगे बड़े-बड़े मेहमान,
जिनके थे तुम गुलाम,
जिनके लिए बना रही हैं शीला जी,
सात सितारा मूत्रालय,
क्या सोचेंगे वह?
जब देखेंगे तुम्हारा असभ्य व्यवहार,
कितनी शर्म आयेगी,
सरकार को, सोनिया जी को,
पर तुम नहीं सुधरोगे,
बदतमीज कहीं के.
मैं लिख रहा था जब यह अकविता,
मेरी पोती ने पूछा,
बाबा क्यों करते हैं हम आयोजित यह खेल?
कौन सी है यह कामनवेल्थ?
कहाँ हे यह वेल्थ?
किस किस में कामन हे यह वेल्थ?
पता नहीं बेटी,
शायद मालूम हो देश के तहजीबदारों को,
उसने कहा, 'अब तो हम आजाद हैं',
मैंने कहा, 'कहते तो यही हैं,
पर शायद हैं नहीं'.
1 comment:
अरे ओ दिल्ली वालों,
कब तमीज सीखोगे तुम?
शीला दीक्षित, तेजिंदर खन्ना,
और अब पी चिदंबरम,
सबका मन दुखता हे,
पहले इन्ही महानुभावों से पूछ लेते कि इन्होने सीखी है कभी ? हमारे देश की जनता अपने नेतावो का ही तो अनुशरण करती है !
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