जब जुड़ें सम्बन्ध नूतन,
प्रेम से सींचों उन्हें तुम,
तोड़ते हो पर मगर क्यों,
प्रेम के रिश्ते पुरातन?
(१)
छोड़ कर बाबुल का आँगन,
आ गई अपने पिया घर,
प्रेम और सम्मान से तुम,
जीत लो सबके यहाँ मन.
दूध के इस पात्र में तुम,
समां जाओ दूध बन कर,
कोई न पहचान पाये,
क्या है नूतन क्या पुरातन?
माई, बापू, भाई, बहना,
सास, ससुर, देवर और ननद,
नाम नए, सम्बन्ध पुराने,
प्रेम करो पाओ आनंद.
(२)
दोनों बाहें खोल दो तुम,
आया एक नया मेहमान,
इतना प्रेम लुटाओ उस पर,
बिसर जाए बाबुल का ध्यान.
बंश बेल फ़िर बढे तुम्हारी,
सब पायें सबका सम्मान,
रिद्धि-सिद्धि नाचें आँगन में,
सब पर कृपा करें भगवान.
परिवार और परिवार का,
मंगलमय नूतन सम्बन्ध,
शक्ति बढे, सम्मान बढे,
हो सफल प्रेम नूतन सम्बन्ध.
4 comments:
bahut sunder abhivykti hai badhaai
जब जुड़ें सम्बन्ध नूतन,
प्रेम से सींचों उन्हें तुम,
तोड़ते हो पर मगर क्यों,
प्रेम के रिश्ते पुरातन?
" बहुत सुंदर भावनाओ की कोमल अभिव्यक्ति.."
Regards
ati aanand daayak rachna, rishton ki madhur mithaas
छोड़ कर बाबुल का आँगन,
आ गई अपने पिया घर,
प्रेम और सम्मान से तुम,
जीत लो सबके यहाँ मन.
सुरेश जी बहुत ही सुंदर शिक्षा भरी कविता. काश सभी इसे जिन्दगी मै लाते .
धन्यवाद
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