दैनिक प्रार्थना

हमारे मन में सबके प्रति प्रेम, सहानुभूति, मित्रता और शांतिपूर्वक साथ रहने का भाव हो


दैनिक प्रार्थना

है आद्य्शक्ति, जगत्जन्नी, कल्याणकारिणी, विघ्न्हारिणी माँ,
सब पर कृपा करो, दया करो, कुशल-मंगल करो,
सब सुखी हों, स्वस्थ हों, सानंद हों, दीर्घायु हों,
सबके मन में संतोष हो, परोपकार की भावना हो,
आपके चरणों में सब की भक्ति बनी रहे,
सबके मन में एक दूसरे के प्रति प्रेम भाव हो,
सहानुभूति की भावना हो, आदर की भावना हो,
मिल-जुल कर शान्ति पूर्वक एक साथ रहने की भावना हो,
माँ सबके मन में निवास करो.

Thursday, 15 January 2009

नूतन और पुरातन सम्बन्ध

जब जुड़ें सम्बन्ध नूतन,
प्रेम से सींचों उन्हें तुम,
तोड़ते हो पर मगर क्यों,
प्रेम के रिश्ते पुरातन?

(१) 
छोड़ कर बाबुल का आँगन,
आ गई अपने पिया घर,
प्रेम और सम्मान से तुम,
जीत लो सबके यहाँ मन.

दूध के इस पात्र में तुम,
समां जाओ दूध बन कर,
कोई न पहचान पाये,
क्या है नूतन क्या पुरातन?

माई, बापू, भाई, बहना,
सास, ससुर, देवर और ननद,
नाम नए, सम्बन्ध पुराने,
प्रेम करो पाओ आनंद. 

(२) 
दोनों बाहें खोल दो तुम,
आया एक नया मेहमान,
इतना प्रेम लुटाओ उस पर,
बिसर जाए बाबुल का ध्यान.

बंश बेल फ़िर बढे तुम्हारी,
सब पायें सबका सम्मान,
रिद्धि-सिद्धि नाचें आँगन में,
सब पर कृपा करें भगवान.

परिवार और परिवार का,
मंगलमय नूतन सम्बन्ध,
शक्ति बढे, सम्मान बढे,
हो सफल प्रेम नूतन सम्बन्ध. 

4 comments:

निर्मला कपिला said...

bahut sunder abhivykti hai badhaai

seema gupta said...

जब जुड़ें सम्बन्ध नूतन,
प्रेम से सींचों उन्हें तुम,
तोड़ते हो पर मगर क्यों,
प्रेम के रिश्ते पुरातन?
" बहुत सुंदर भावनाओ की कोमल अभिव्यक्ति.."
Regards

भारतीय नागरिक - Indian Citizen said...

ati aanand daayak rachna, rishton ki madhur mithaas

राज भाटिय़ा said...

छोड़ कर बाबुल का आँगन,
आ गई अपने पिया घर,
प्रेम और सम्मान से तुम,
जीत लो सबके यहाँ मन.
सुरेश जी बहुत ही सुंदर शिक्षा भरी कविता. काश सभी इसे जिन्दगी मै लाते .
धन्यवाद