मुंबई हमलों के बाद ऐसा लग रहा था जैसे सारा भारत एक हो गया है. सब भारतवासी एक स्वर में आतंकवाद के ख़िलाफ़ एक जुट हो गए थे. आनन्-फानन में केन्द्रीय जांच एजेंसी और कुछ सख्त कानून भी बन गए. मुसलमान एक स्वर में आतंकवाद और आतंकवाद को इस्लाम से जोड़ने के ख़िलाफ़ खड़े हो गए.
इस सब से मैं बहुत प्रोत्साहित था. मगर मेरा एक मित्र नहीं. उस का कहना था कि यह सब कुछ दिनों का नाटक है और जल्दी ही मुसलमानों के कुछ नेता और धर्म की राजनीति करने वाले नेता फ़िर वही पुराने राग अलापने लगेंगे. हमारे बीच शर्त लग गई.
इन धर्म की राजनीति करने वालों ने कुछ दिनों का इंतज़ार भी नहीं किया और फ़िर शुरू हो गए. अंतुले ने बिगुल बजाया, लालू के चमचे हाँ में हाँ मिलाने लगे. मुसलमानों के नेता भी यही दोहराने लगे. कांग्रेस हमेशा की तरह मामले को टालने की कोशिश करने लगी. अंतुले को कैसे निकालें, राष्ट्र हित जरूरी है या मुसलमानों के वोट, इस दुविधा में फ़िर फंस गई कांग्रेस. फ़िर हो गई धर्म की राजनीति शुरू. अब जल्दी ही कुछ हिंदू भी इस में शामिल हो जायेंगे. मुंबई में निर्दोषों की हत्या फ़िर बेकार जायेगी. भारत पाकिस्तान के ख़िलाफ़ सबूत इकट्ठे कर रहा है, पर इन घरेलू आतंकवादियों का क्या करेगा?
नतीजा - मैं शर्त हार गया.
4 comments:
mujhe to lagta hai ki ye antule nahi balki poore bharat ke musalmano ki soch hai anyatha antule ki himmat hoti aisa kahne ki
जब तक कोई हिटलर जेसा तानाशाह भारत की बांग डोर नही समभालता तब तक यही सब होता रहेगा, आम मुस्लिम भी नही चाहता, आम हिन्दु भी नही चाहता ऎसी जिन्दगी लेकिन यह कमीने नेता जनता को भडका रहे है अपनी कुरसी बचा रहे है, दिल्ली बालो क दिल कितना बडा है फ़िर से इस काग्रेस कॊ जीता दिया.... ता कि आये ओर फ़िर से हमारा खुन चुसे... जब पढे लिखे लोगो का यह हाल है तो अनपडो की क्या बात.... यह नेता तो यही चाहते है, १०, १२ % ही मुस्लिम के वोट है बाकी तो आप सब ने डाले है, फ़िर मुस्लिम भी पक्के कांग्रेस को वोट डाले जरुरी नही...अब जनता ही गलत लोगो को चुने तो.... हार भी जनता को भुगतनी पडॆगी.
धन्यवाद
ऐसी शर्तें मत लगाया किजीये, ये सारे नेता हमेशा एक ही करवट लेकर बैठते हैं।
आपके मित्र नब्ज जानते है इन फिरकापरस्तों की .
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