पिछले चार दिन में मैंने जितना टीवी देखा है उतना चार महीनों में नहीं देखा. इन चार दिनों में मैंने देखा - हमेशा की तरह आम आदमियों को बेवजह मरते हुए, उनकी सुरक्षा के लिए जिम्मेदार पुलिस वालों को ख़ुद मरते हुए (शायद शहीद होते हुए), गैर-मराठी एनएसजी जांबाजों द्वारा मुंबई शहर को बचाते हुए और उनके दो जांबाजों को शहीद होते हुए, भारत के ग्रह मंत्री को दवाब में नैतिक जिम्मेदारी लेते हुए, महा-ग्रह मंत्री को इस जिम्मेदारी से बचते हुए और इस भयानक हत्याकांड को एक छोटी सी घटना कहते हुए, पहली बार वीआइपी होटलों और वहां जाने वाले खास लोगों पर हमला होते हुए, शायद इसलिए सोनिया और कांग्रेस/केन्द्र सरकार को डरते हुए और अचानक सख्त होने का नाटक करते हुए, और मीडिया को बहुत सी सही-ग़लत खबरें देते हुए. आपने भी यह सब देखा होगा.
बहुत से सवाल उठते रहे मेरे मन में. अभी भी यह सवाल उठ रहे हैं.
पहला सवाल - अगर यह हमला ताज और ओबेराय होटल पर न होकर केवल नरिमान हॉउस, प्लेटफार्म और बाज़ार में हुआ होता तो क्या एनएसजी के जांबाज आते, सोनिया और केन्द्र सरकार सख्त होने का नाटक करते, पाटिल साहब इस्तीफा देते, फेडरल जांच एजेंसी तुरत-फुरत बन जाती, पाक सरकार से पंगा लिया जाता?
मैं ख़ुद ही पहला जवाब देता हूँ. मेरा जवाब है, "नहीं". आपका जवाब क्या है यह बाद में पूछूंगा.
आम आदमी की तो आतंकी हमलों में मरने की आदत हो गई है. यह बात सही है कि आम आदमी पहले से ज्यादा गुस्सा है, पर ध्यान से दखें तो यह गुस्सा भी अपने लिए नहीं, खास लोगों के लिए है - "इन आतंकियों की यह हिम्मत कि खास आदमियों की आरामगाहों पर हमला करें, उन्हें डराएँ? अरे आम आदमी को मारते रहो न, वह तो पैदा ही इस तरह मरने के लिए होता है. ब्लू लाइन उसे कुचलती है, पुलिस वाले उसे आतंकी कह कर मार देते हैं, हवालात में उसे मार दिया जाता है, महंगाई की मार से मर जाता है बेचारा, तुम भी जब-तब उसे मार देते हो".
इस बार तुम्हारी यह हिम्मत कि खास आदमियों से भी पंगा ले लिया. उनकी तरफ़ आँख उठाने की तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई? हिन्दुस्तान का आम आदमी इस का विरोध करता है, अबकी बार जब हमला करो तो इसका ध्यान रखना कि खास आदमी की कोई तकलीफ न हो. उसके बदले में दो-चार आम आदमी ज्यादा मार लेना.
अब आप भी बताइए. आपका जवाब क्या है?
मेरी आने वाली पोस्ट्स में ऐसे ही कुछ सवाल उठाऊँगा मैं. ख़ुद भी जवाब दूँगा और आपसे भी जवाब मांगूंगा.
4 comments:
आदरणीय गुप्ता जी ..इस वक़्त बड़ा मुद्दा आतंकवाद से एक जुट होकर निबटने का है .एन एस जी कमांडो वहां इसलिए बुलाए गए क्यूंकि वो होस्टेज सिचुवेशन थी ...इसमे अमीर गरीब कुछ नही देखा जाता ...अगर रेलवे स्टेशन पर वे होते तो ये ऑपरेशन ज्यादा देर नही चलता क्यूंकि वो जगह खुली थी ....
बात विचारणीय है.
्सही बात है जी सरकार तभी जगी है आखिर ताज मे यही लोग रुकते है ना
इसी लिये राहुळ भैये को चिंता लगी . जब दिल्ली का हमला हुआ था तब उन्हे महसूसनही हुआ कि हमला उनके घर पर हुआ था . बदे लोगो का घर ताज ही हो सकता है रेलवे प्लेट्फ़ार्म नही
अभि भी देखिये ताज वाली लाशे गिनती मे है बाकी लोग अपनो को ता उंम्र ढूढते रहेगे
सुरेश गुप्ता जी आप की बात सही है, लेकिन जबाब ??
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