दैनिक प्रार्थना

हमारे मन में सबके प्रति प्रेम, सहानुभूति, मित्रता और शांतिपूर्वक साथ रहने का भाव हो


दैनिक प्रार्थना

है आद्य्शक्ति, जगत्जन्नी, कल्याणकारिणी, विघ्न्हारिणी माँ,
सब पर कृपा करो, दया करो, कुशल-मंगल करो,
सब सुखी हों, स्वस्थ हों, सानंद हों, दीर्घायु हों,
सबके मन में संतोष हो, परोपकार की भावना हो,
आपके चरणों में सब की भक्ति बनी रहे,
सबके मन में एक दूसरे के प्रति प्रेम भाव हो,
सहानुभूति की भावना हो, आदर की भावना हो,
मिल-जुल कर शान्ति पूर्वक एक साथ रहने की भावना हो,
माँ सबके मन में निवास करो.

Wednesday, 17 December 2008

चाँद बन गया माथे की बिंदी

कल रात मेरी हथेली पर,
चाँद उतर आया. 
पिछली ओला वृष्टि में टूट गई थी खपरेल,
उतर आया उसी टूटी खपरेल से,
चाँद मेरी हथेली पर.

विरह से तपता वदन,
काम से थकी दुखती हथेली,
चाँद का शीतल स्पर्श,
कंपा गया मुझे अन्दर तक,
सिहर कर मैंने करली हथेली बंद,
पर फिसल गया चाँद,
खाली रह गई बंद मुट्ठी.

मुट्ठी खोलती और चाँद को पकड़ती,
पर चाँद हर बार फिसल जाता,
उतर आया था जैसे बचपन, 
उस रात मेरी झोंपड़ी में.

अटखेलियाँ करता रहा चाँद,
सारी रात मेरे सिरहाने,
कभी बन जाता मेरे माथे की बिंदी,
कभी चूम लेता मेरे होंटो को,
कभी नाक पर सुरसुरी करता,
कभी झांकता मेरी आंखों में,
मैं सिमट जाती, करबट बदलती,
चाँद सहला देता मेरे चेहरे को,
सारे वदन को,
कब नींद आ गई पता नहीं,
सपने में देखा,
तुम आए थे चाँद बन कर. 

5 comments:

Anonymous said...

बहुत प्यारी दिल को छू लेने वाली रचना है.

संगीता पुरी said...

अरे वाह ! बहुत सुंदर।

seema gupta said...

सपने में देखा,
तुम आए थे चाँद बन कर.
"भावनाओ की सुंदर अभिव्यक्ति "
Regards

भारतीय नागरिक - Indian Citizen said...

mujhe to lag raha tha ye ki chaand wo wala to nahi jo abhi abhi hariyana men nikla hai. lekin abhivyakti bahut sashakt

राज भाटिय़ा said...

कब नींद आ गई पता नहीं,
सपने में देखा,
तुम आए थे चाँद बन कर.
क्या बात है....
बहुत सुंदर
धन्यवाद