जब कहा तिलक ने आज़ादी,
है जन्म सिद्ध अधिकार मेरा,
तब शामिल था उस कहने में,
कर्तव्य मेरा, कर्तव्य तेरा.
क्या मिलना था, क्या मिल पाया,
क्या देना था, क्या दे पाये,
आओ भारत मां के बच्चों,
कुछ लेखा-जोखा हो जाय.
आज़ादी मर कर जीने की,
आज़ादी जी कर मरने की,
आज़ादी कुछ भी कहने की,
आज़ादी कुछ भी करने की,
आज़ादी कुछ न करने की,
आज़ादी ऊंचा उठने की,
आज़ादी नीचा गिरने की.
क्या मिली है पूरी आजादी?
या अभी लड़ाई जारी है?
अधिकार माँगना सीख लिया,
कर्तव्य निभाना बाकी है.
नफरत छोड़ो और प्रेम करो,
सब हैं समान, सब हैं भाई,
कर्तव्य निभाओ सुख पाओ,
यह बात कृष्ण ने समझाई.
3 comments:
sahi nafrat chod kar pyar se rehna xhahiye,bahut undar sandes aur kavita
वाकई में हम लोग आज तक वास्तविक अर्थों में आजाद नहीं हो पाये हैं.
हमे सिर्फ़ हर गलत बात करने की आजादी है, ओर वही हमे प्यारी है, अंग्रेजी हमे जान से प्यारी है, उनके त्योहार भी हमे अच्छे लगते है, उन के कपडे भी हमे अच्छे लगते है, क्यो जाने दिया इन गोरो को??? जब सब कुछ उन का प्यारा है तो???अब तो लिब इन ओर समेलिंग भी हमे प्यारा है,
जब तक हम दिमाग से आजाद नही होते तब तक गुलाम ही थे, है ओर रहेगे........
धन्यवाद
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