हर व्यक्ति कवि है. अक्सर यह कवि कानों में फुसफुसाता है. कुछ सुनते हैं, कुछ नहीं सुनते. जो सुनते हैं वह शब्द दे देते हैं इस फुसफुसाहट को. एक और पुष्प खिल जाता है काव्य कुञ्ज में.
दैनिक प्रार्थना
हमारे मन में सबके प्रति प्रेम, सहानुभूति, मित्रता और शांतिपूर्वक साथ रहने का भाव हो
दैनिक प्रार्थना
सब पर कृपा करो, दया करो, कुशल-मंगल करो,
सब सुखी हों, स्वस्थ हों, सानंद हों, दीर्घायु हों,
सबके मन में संतोष हो, परोपकार की भावना हो,
आपके चरणों में सब की भक्ति बनी रहे,
सबके मन में एक दूसरे के प्रति प्रेम भाव हो,
सहानुभूति की भावना हो, आदर की भावना हो,
मिल-जुल कर शान्ति पूर्वक एक साथ रहने की भावना हो,
माँ सबके मन में निवास करो.
Thursday, 31 December 2009
नए वर्ष की शुभकामनाएं
ढेर सारी शुभकामनाएं,
नए वर्ष की,
ले लो जिस को जितनी चाहिए,
सुगन्धित वायु और जल,
सुरक्षित सड़कें, रेल-वायु मार्ग,
सब को समान अवसर,
सब को समान आदर,
सब को समान न्याय,
भरत जैसा राज्य,
राम जैसी मर्यादा,
ले लो जिस को जितनी चाहिए.
ऎसी पुलिस न होना ज्यादा बेहतर है
जो पकवान परोसे जाते हैं,
जिस पैसे से पुलिस वाले ऐयाशी करते हैं,
वह पैसा उस जनता की जेब से आता है,
जिस पर वह रात दिन अत्याचार करते हैं,
रुचिका की कहानी है,
इस बेशर्म पुलिस की कहानी,
पुलिस की जरूरत है,
पर,
ऎसी पुलिस न होना ज्यादा बेहतर है.
Tuesday, 29 December 2009
जन राजनीति
मंहगाई के खिलाफ नारा लगाया,
महंगाई ने मोर्चे में शामिल हो कर,
जनता का हौसला बढ़ाया,
शर्मा जी चकराए,
वर्मा जी के पास आये,
भैया यह क्या चक्कर है?
यह जन राजनीति है,
वर्मा जी ने समझाया,
जनता और मंहगाई,
आपस में मिल गए हैं,
जिस पार्टी ने महंगाई का मुद्दा उठाया,
जनता ने उसे हराया,
जिस सरकार ने महंगाई बढ़ाई,
जनता ने उसे जिताया.
Saturday, 26 December 2009
साझा खेल - दिल्ली बनेगी दुल्हन
दिल्ली सरकार,
कर रहे हैं अत्याचार,
गरीब बेघर आम आदमियों पर,
नाईट शेल्टर तोड़ कर,
सैंकड़ों लोगों को जमा दिया सर्दी में,
मचा दिया हाहाकार,
गरीबों की जिंदगी में,
औरतें, बच्चे, बूढ़े,
कहाँ जाएँ कंपकंपाती सर्दी में,
कहीं भी जाएँ, हमसे मतलब?
हमने सजाना है, सवांरना है,
दिल्ली को दुल्हन बनाना है,
साझा खेल होंगे,
हमारे पुराने राजा जी आयेंगे,
क्या उन्हें अच्छा लगेगा यह नाईट शेल्टर,
बदनामी न हो जायेगी हमारी?
क्या बचाने को देश को, दिल्ली को,
इस बदनामी से, राष्ट्रीय शर्म से,
हटा नहीं सकते, भगा नहीं सकते,
इन भुखमंगे, अधनंगों को?
जय सोनिया,
जय साझा खेल.
Tuesday, 22 December 2009
चालीस साल पहले
जिंदगी बहुत आसान थी,
हमने ३२५ बेसिक पर शुरू की थी,
केंद्र सरकार में नौकरी,
तीन कमरों का मकान था,
सब कुछ बहुत सस्ता था,
आना-जाना, खाना-पीना,
मन में कोई तनाव नहीं,
जिंदगी जीते थे तब.
फिर देश ने तरक्की की,
जिंदगी मुश्किल होने लगी,
अब देश बहुत तरक्की कर गया है,
जिंदगी बहुत मुश्किल हो गई है,
तब की सारे वर्ष की आय,
मकान का किराया नहीं पूरा कर पाती,
बच्चे को स्कूल नहीं भेज पाती,
हर चीज महंगी है,
आना-जाना, खाना-पीना,
मन में तनाव-ही-तनाव है,
वाह री तरक्की,
अब तो जिंदगीबस बीत रही है,
सब कुछ आगे बढ़ गया है,
जिंदगी पीछे रह गई है.
Saturday, 5 December 2009
रावण और राम राज्य
भाषण देना उन की आदत है,
एक सभा में भाषण दे दिया,
देश में राम राज्य लायेंगे.
कल एक जवान लड़के की मौत हो गई,
शमशान भूमि में उस के पिता को रोते देखा,
अचानक नेताजी का भाषण याद आया,
देश में राम राज्य लायेंगे,
यह कैसा राम राज्य होगा?
राम राज्य में पहले पिता जाता था,
यहाँ बेटा चला गया.
रावण के वंशज हैं यह नेता सारे,
जिसने पहले सब बेटों को भेजा,
फिर खुद गया.
Sunday, 18 October 2009
दीवाली बाद की पहली सुबह
Friday, 16 October 2009
आई दीवाली, आई दीवाली
Saturday, 3 October 2009
आराम हलाल है
Friday, 2 October 2009
कब तक कुप्रयोग करोगे बापू के नाम का?
Monday, 28 September 2009
क्या इस बार भी सिर्फ रावण ही जलेगा?
Saturday, 26 September 2009
चाँद खतरे में है
Wednesday, 23 September 2009
कब तमीज सीखोगे तुम?
Sunday, 20 September 2009
आओ मजाक करें
Friday, 11 September 2009
मीठा-मीठा मैं, कड़वा-कड़वा तू
Monday, 24 August 2009
ईश्वर की सच्ची पूजा
Sunday, 16 August 2009
राष्ट्रपति ने चाय पिलाई
Friday, 14 August 2009
पंद्रह अगस्त - क्या भूल गए क्या याद रहा
Wednesday, 5 August 2009
वर्ल्ड क्लास शहर का वर्ल्ड क्लास पार्क
Sunday, 19 July 2009
बलात्कार एक दलित महिला का
Friday, 3 July 2009
कचरादान
कचरा ही कचरा हर तरफ़,
घर मे कचरा, घर के बाहर कचरा,
सड़क पर कचरा, पार्क मे कचरा,
मन्दिर, मस्जिद, गुरुद्वारा, चर्च,
सब जगह कचरा ही कचरा,
दिमाग मे कचरा, जुबान पर कचरा,
जो काम किया वह भी कचरा,
मानवीय सम्बन्ध हो गये कचरा,
बेटे ने माँ बाप का किया कचरा,
पत्नी ने पति का, पति ने पत्नी का,
प्रेमी के साथ मिल कर किया कचरा,
बेटी को बाप से खतरा,
बहन को भाई से खतरा,
पवित्र प्यार का कर दिया कचरा,
गुरु-शिश्य का सम्बन्ध हुआ कचरा,
सरकार कचरा, सरकारी बाबू कचरा,
वकील कचरा, जज कचरा,
पुलिस ओर अदालत कचरा।
एक कहानी पढी थी ''थूकदान',
सड़क पर चलता हर आदमी,
लेखक को दिखता था थूकदान,
आदमी बात करे आपस मे,
लेखक को दिखाई दे,
थूक रहे हे एक दूसरे मे,
कहानी वही हे, बस नाम बदला हे,
मेरी रचना का नाम है 'कचरादान'।
Friday, 22 May 2009
चुनाव या सत्ता का बँटवारा?
मैंने कहा सत्ता का बँटवारा है,
चुनाव तो एक बहाना है,
असली उद्देश्य सत्ता में आना है,
मिल बाँट कर खाना है.
जनता का वोट बेकार नहीं जाएगा,
कोई न कोई तो चुना जाएगा,
जो चुना जाएगा,
पाँच वर्ष तक देश को खायेगा.
सत्ता के गलियारों में,
सत्ता के बंटवारे का भव्य आयोजन,
एक एक करके आयेंगे,
देश को खाने की शपथ खाएँगे.
चुनाव का नाटक ख़त्म,
सत्ता का नाटक शुरू,
कल के वफादार चमचे,
अब बन जायेंगे गुरु.
जनता ने वोट डाला,
अपना कर्तव्य निभाया,
पाँच साल तक भोगेंगे,
अगली बार फिर वोट दे देंगे.
सत्ता का बंटवारा अनवरत चलता रहेगा,
लोग इसे चुनाव कहते रहेंगे.
Wednesday, 20 May 2009
भिक्षाम देही
भिक्षाम देही,
एक अच्छा सा मंत्रालय,
कमाई हो जिस में तगडी,
बनी रहे सर पर यह पगड़ी,
अर्पित है चरणों में तुम्हारे,
चिट्ठी समर्थन की,
भिक्षाम देही मां,
भिक्षाम देही.
Saturday, 25 April 2009
शन्नो हमें माफ़ कर देना
Wednesday, 22 April 2009
भद्रपुरुष बिकाऊ हैं
Tuesday, 10 March 2009
बुरा न मानो होली है - शब्दों के रंग
Friday, 6 March 2009
नया प्रजातंत्र
Wednesday, 4 March 2009
इस मन की यही कहानी है (३)
Tuesday, 3 March 2009
मन ढूँढ रहा है एक मित्र (२)
कैसे सब से लड़ पायेगा?
ज्यादा से ज्यादा यह होगा,
इतिहास पुनः दोहराएगा.
चाहों का रच कर चक्रव्यूह,
मन की सेनाओं ने घेरा,
इस पर मुझको अधिकार मिले,
यह मैं लूँगा, यह है मेरा.
कितना है कठिन युद्ध करना,
जब साथ नहीं हो कृष्ण कोई,
बिन गुरु, सखा और रणनीति,
सुलझेगा कैसे प्रश्न कोई?
पौराणिक गाथाएँ कहतीं,
सच की होती हर बार जीत,
पर मेरे मन के कुरुछेत्र में,
है झूट गया कई बार जीत.
मेरे मन का यह कुरुछेत्र,
नहीं दिवस अठारह तक सीमित,
कितने दिन लड़ते बीत गए,
पर अंत नहीं हो रहा विदित.
Monday, 2 March 2009
मन के अन्दर मन हैं अनेक (१)
उसके पीछे जो मिला नहीं,
जो मिला, नहीं भाया मन को,
चलता जाता सिलसिला यही.
मन के अन्दर मन हैं अनेक,
है अलग चाहना हर मन की,
मेरी ही इच्छा पूरी हो,
है यही कामना हर मन की.
एक मन कहता है 'शांत रहो',
एक मन कहता 'संघर्ष करो',
एक मन कहता 'छोडो सब कुछ',
एक मन कहता है 'कर्म करो'.
एक मन जीता, हारा विवेक,
हो गई ध्वस्त लक्ष्मण रेखा,
वह चला प्रेम का दावानल,
संयम टूटा, तन का, मन का.
एक मन हारा, जीता विवेक,
निर्बाध रही लक्ष्मण रेखा,
हुआ शांत प्रेम का दावानल,
संयम का शीतल जल वरसा.
एक मन कठोर पत्थर जैसा,
एक मन आंसू बन कर बहता,
एक मन छीना-झपटी करता,
एक मन सपने बुनता रहता.
एक मन हँसता, एक मन रोता,
एक मन सच्चा, एक मन झूठा,
एक मन भोगों का दास बना,
एक मन सन्यासी हो बैठा.