में लिखता हूँ क्योंकि मुझे लिखना अच्छा लगता है,
पहले भी लिखता था पर छपता नहीं था,
मन के अन्दर अक्सर उमड़ गुमड़ होता है,
बाहर कागज़ पर छप जाए तो मन शांत हो जाता है,
अगर रद्दी में नहीं बिकी हैं तो अभी भी मिल जाएँगी,
मेरी अनछपी रचनाएं,
पर शायद अब मैं उन्हें पहचान भी न पाऊँ,
बहुत कुछ बदल गया है इस बीच,
मन बदल गया है, मोहल्ला बदल गया है,
सोच ही नहीं सोच का तरीका भी बदल गया है।
इंटरनेट ने छपने की मुश्किल आसन कर दी है,
लिखो और ख़ुद ही छप जाओ,
संपादक से 'खेद सहित वापस' का कोई डर नहीं,
पर एक नई मुश्किल हो गई है,
पहले छपने वाले कम थे और पढ़ने वाले बहुत,
अब पढ़ने वाले कम हैं और छपने वाले बहुत अधिक,
में पढ़ता हूँ, सोचता हूँ, टिपण्णी करता हूँ,
पर टिपण्णी अनुत्तरित रह जाती है,
लिखने वाला बस लिखता ही रहता है,
उसके लेखन ने क्या असर किया दूसरों पर?
शायद पलट कर देखने की जरूरत नहीं उसे.
मुद्दे तो है पर बहस कहाँ है?
बिना बहस के मुद्दे मुर्दा हैं.
हिन्दी ब्लाग जगत कब्रिस्तान बन गया है मुर्दा मुद्दों का,
इन मुर्दा मुद्दों को जीवित करना होगा,
मुद्दों को उनके तार्किक निष्कर्ष तक ले जाना होगा,
लिखने के साथ साथ पढ़ना भी होगा,
मुद्दे पर टिपण्णी, फ़िर टिपण्णी पर टिपण्णी, ........
यह क्रम बने ब्लागिंग का,
हिन्दी ब्लाग जगत का आंकलन हो,
नंबर से नहीं, मुद्दों की सार्थकता से,
आइये, आप आमंत्रित हैं, इस हवन में।
ion to debate
हर व्यक्ति कवि है. अक्सर यह कवि कानों में फुसफुसाता है. कुछ सुनते हैं, कुछ नहीं सुनते. जो सुनते हैं वह शब्द दे देते हैं इस फुसफुसाहट को. एक और पुष्प खिल जाता है काव्य कुञ्ज में.
दैनिक प्रार्थना
हमारे मन में सबके प्रति प्रेम, सहानुभूति, मित्रता और शांतिपूर्वक साथ रहने का भाव हो
दैनिक प्रार्थना
है आद्य्शक्ति, जगत्जन्नी, कल्याणकारिणी, विघ्न्हारिणी माँ,
सब पर कृपा करो, दया करो, कुशल-मंगल करो,
सब सुखी हों, स्वस्थ हों, सानंद हों, दीर्घायु हों,
सबके मन में संतोष हो, परोपकार की भावना हो,
आपके चरणों में सब की भक्ति बनी रहे,
सबके मन में एक दूसरे के प्रति प्रेम भाव हो,
सहानुभूति की भावना हो, आदर की भावना हो,
मिल-जुल कर शान्ति पूर्वक एक साथ रहने की भावना हो,
माँ सबके मन में निवास करो.
सब पर कृपा करो, दया करो, कुशल-मंगल करो,
सब सुखी हों, स्वस्थ हों, सानंद हों, दीर्घायु हों,
सबके मन में संतोष हो, परोपकार की भावना हो,
आपके चरणों में सब की भक्ति बनी रहे,
सबके मन में एक दूसरे के प्रति प्रेम भाव हो,
सहानुभूति की भावना हो, आदर की भावना हो,
मिल-जुल कर शान्ति पूर्वक एक साथ रहने की भावना हो,
माँ सबके मन में निवास करो.
Monday, 5 May 2008
बिना बहस के मुद्दे मुर्दा हैं
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logical conclusion of debate
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3 comments:
हिन्दी ब्लाग जगत कब्रिस्तान बन गया है मुर्दा मुद्दों का,
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अरे, इतना नाराज न हों...कितने ही सार्थक कार्य हो रहे हैं, उन्हें ऐसे नजर अंदाज न करें.
आज से दो साल पहले की हिन्दी की स्थिती नेट पर देखें और आज की, फिर आज जान पायेंगे कि जाने अनजाने, उबड़ खाबड़ ही सही, कितने सकारात्मक कार्य हुए हैं और हिन्दी कहाँ से कहाँ पहुँची है- एक मोटी जानकारी हेतु आज से दो साल पहले १०० हिन्दी चिट्ठाकार थे जो आज ५००० पार कर रहे हैं.
मुझे विश्वास है आज से २ साल बाद आप हिन्दी चिट्ठाकारों और हिन्दी के नेट पर विकास पर आप गर्व करते नजर आयेंगे और यही रचना कुछ अलग अंदाज में होगी.
आपकी बात से में असहमत नहीं हो सकता. मैं नाराज भी नहीं हूँ. आज से २ साल बाद तो दूर मैं आज भी हिन्दी चिट्ठाकारों और हिन्दी के नेट पर हुए और हो रहे विकास पर गर्व करता हूँ. विश्वास करें, मुर्दा मुद्दों का प्रसंग उठाते हुए मेरे मन में हिन्दी ब्लाग जगत की उपलब्धियों को नकारने की बात कहीं नहीं थी. बात सिर्फ़ बहस की कमी की थी. मुद्दों पर लिखना बहुत अच्छी बात है. पर मुद्दों पर बहस उससे ज्यादा जरूरी है. सुधार की जरूरत तो हर समय होती है. विकास पर चर्चा होना जरूरी है. जहाँ जरूरत महसूस हो वहाँ सुधार किया जाना चाहिए.
आपकी टिपण्णी के लिए धन्यवाद. संवाद चलता रहेगा ऐसा मेरा विश्वास है.
बहुत बढिया कहा आपने...
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