"जेसिका, मट्टू और अब नितीश - न्याय की हेट-ट्रिक", हैं शीर्षक एक समाचार का जो भारत के एक लोकप्रिय अखबार मैं छपा है. इसे पढ़कर जो पहला ख्याल मेरे दिल मैं आया वह था नितीश के परिवार का जिसे आखिरकार न्याय मिला. उनके प्यारे नितीश के हत्यारों को मुजरिम ठहराया अदालत ने. अब शुक्रवार को उन्हें सजा सुनाई जायेगी.
दूसरा ख्याल जो मेरे दिल मैं आया वह था - यह न्याय एक बार, दो बार या तीन बार ही क्यों, हर बार क्यों नहीं और हर केस में क्यों नहीं. फ़िर तो ख्यालों की झड़ी लग गई. क्या केवल हाई प्रोफाइल केसों में ही न्याय मिलेगा? क्या नागरिक और मीडिया केवल ऐसे केसों में ही खुलकर मुखर स्वरों में न्याय की गुहार करेंगे? क्या कभी यह लोग एक आम आदमी के लिए इस तरह न्याय मांगेंगे? क्या अदालतें एक गरीब विधवा के बेटे की हत्या पर भी ऐसा फ़ैसला देंगी? यह वह सवाल हैं जो हर किसी के मन में उठ रहे होंगे पर जिनका एक निश्चित उत्तर किसी के पास नहीं होगा. समय ही इन सवालों का जवाब देगा.
भारतीय न्यायपालिका अक्सर ऐसे इम्तहान से गुजरी है. कभी पास हुई है और कभी फेल. हम सभी यह चाहते हैं कि इस इम्तहान में वह अब्बल नंबरों से पास हो.
हर व्यक्ति कवि है. अक्सर यह कवि कानों में फुसफुसाता है. कुछ सुनते हैं, कुछ नहीं सुनते. जो सुनते हैं वह शब्द दे देते हैं इस फुसफुसाहट को. एक और पुष्प खिल जाता है काव्य कुञ्ज में.
दैनिक प्रार्थना
हमारे मन में सबके प्रति प्रेम, सहानुभूति, मित्रता और शांतिपूर्वक साथ रहने का भाव हो
दैनिक प्रार्थना
है आद्य्शक्ति, जगत्जन्नी, कल्याणकारिणी, विघ्न्हारिणी माँ,
सब पर कृपा करो, दया करो, कुशल-मंगल करो,
सब सुखी हों, स्वस्थ हों, सानंद हों, दीर्घायु हों,
सबके मन में संतोष हो, परोपकार की भावना हो,
आपके चरणों में सब की भक्ति बनी रहे,
सबके मन में एक दूसरे के प्रति प्रेम भाव हो,
सहानुभूति की भावना हो, आदर की भावना हो,
मिल-जुल कर शान्ति पूर्वक एक साथ रहने की भावना हो,
माँ सबके मन में निवास करो.
सब पर कृपा करो, दया करो, कुशल-मंगल करो,
सब सुखी हों, स्वस्थ हों, सानंद हों, दीर्घायु हों,
सबके मन में संतोष हो, परोपकार की भावना हो,
आपके चरणों में सब की भक्ति बनी रहे,
सबके मन में एक दूसरे के प्रति प्रेम भाव हो,
सहानुभूति की भावना हो, आदर की भावना हो,
मिल-जुल कर शान्ति पूर्वक एक साथ रहने की भावना हो,
माँ सबके मन में निवास करो.
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1 comment:
मैं तो इसके लिये न्यायपालिका को कोई तमगा नहीं दूंगा.
इसके लिये तमगे की हकदार है तो वो नितीश कटारा की मां है जो इन्साफ की लड़ाई के लिये उतरी. जिसे बार बार झुकाने की मुतवातर कोशिशें हुईं लेकिन वो नहीं झुकी. न्यायपालिका को इस वजह से सही फैसला देने पर मज़बूर होना पड़ा.
जेसिका और मट्टू, दोनों के केस के पिछले फैसले गवाह है कि न्यायपालिका ने किस कदर आंख मुंदाई की थी.
दूसरी बात, इन मामलों में पीडित इतने कमजोर नहीं थे कि इनके मामले दबाये जा सकते.
कितने गरीबों को न्याय मिला है?
हम लोग तो एसे अत्याचार देखते हैं और आंख मूद लेते है, कान बन्द कर लेते हैं, मुंह पर रूमाल रख लेते हैं.
क्योंकि हम गांधीजी के बन्दर हैं, बुराई से हमें क्या काम. हम तो भले आदमी हैं.
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