गुर्जर आंदोलन - कितना सही, कितना ग़लत?
हो सकता है गुर्जरों की मांग सही हो पर उसे मनवाने के लिए जिस तरह आंदोलन हो रहा है वह सही नहीं है. हिंसा करके अपनी बात अगर गुर्जरों ने मनवा भी ली तो यह समाज और राष्ट्र के लिए कोई अच्छी मिसाल नहीं होगी. प्रजातन्त्र में सब को अपनी बात कहने का पूरा हक़ है, पर हिंसक तरीके अपनाने का किसी को कोई हक़ नहीं. यह तो अपराध है. चालीस लोगों की जान जा चुकी है. पर किसी को कोई दुःख नहीं है. सब राजनीति कर रहे हैं. कल मैंने कुछ देर इस आंदोलन की टीवी रिपोर्टिंग देखी. मन बहुत दुखी हुआ. क्या कर रहे हैं यह लोग?
किसी आंदोलनकारी के चेहरे पर कोई दुःख नजर नहीं आया. वह तो हँसते हुए रेल की पटरियाँ उखाड़ते हुए फोटो खिंचवा रहे थे. एक सज्जन ने तो यह कहा कि अगर एक लाख गुर्जर भी मर जायेंगे तो भी आंदोलन पर कोई असर नहीं पड़ेगा. जो मर गए हैं उनकी लाशों पर राजनीति हो रही है. लाशें सड़ रही हैं पर यह नेतागिरी कर रहे हैं. अरे जीवन में तो शायद उन्हें चैन मिला नहीं, अब मरने के बाद तो उन्हें चैन से रहने दो. उनके धर्म के अनुसार उनके शरीरों का अन्तिम संस्कार होने दो. प्रदेश सरकार केन्द्र को चिट्ठी लिख चुकी है. अब इस समय इस से आगे प्रदेश सरकार क्या करेगी? लेकिन आग लगाने वालों की खूनी प्यास शायद अभी नहीं बुझी है. मीडिया भी जम कर आग में घी डाल रहा है.
राषट्रीय संपत्ति को नष्ट करना, सड़क और रेल मार्गों को अवरुद्ध करके देश को आर्थिक नुकसान पहुँचाना, प्रदेश की औद्योगिक इकाइयों को जबरन बंद कराने की धमकी देना, यह सब राष्ट्र के प्रति अपराध है. केन्द्र और प्रदेश सरकारें, राजनितिक पार्टियाँ, आन्दोलनकारियों के नेता, मीडिया सब गैरजिम्मेदारी से काम कर रहे हैं. किसी को न तो गुर्जरों की चिंता है, न प्रदेश और देश की. आने वाले चुनाव और वोट बस यही उनका उद्देश्य है. जो मर गए हैं उनके परिवार जीवन भर तड़पेंगे, पर नेता लोग मजे करेंगे.
हर व्यक्ति कवि है. अक्सर यह कवि कानों में फुसफुसाता है. कुछ सुनते हैं, कुछ नहीं सुनते. जो सुनते हैं वह शब्द दे देते हैं इस फुसफुसाहट को. एक और पुष्प खिल जाता है काव्य कुञ्ज में.
दैनिक प्रार्थना
हमारे मन में सबके प्रति प्रेम, सहानुभूति, मित्रता और शांतिपूर्वक साथ रहने का भाव हो
दैनिक प्रार्थना
है आद्य्शक्ति, जगत्जन्नी, कल्याणकारिणी, विघ्न्हारिणी माँ,
सब पर कृपा करो, दया करो, कुशल-मंगल करो,
सब सुखी हों, स्वस्थ हों, सानंद हों, दीर्घायु हों,
सबके मन में संतोष हो, परोपकार की भावना हो,
आपके चरणों में सब की भक्ति बनी रहे,
सबके मन में एक दूसरे के प्रति प्रेम भाव हो,
सहानुभूति की भावना हो, आदर की भावना हो,
मिल-जुल कर शान्ति पूर्वक एक साथ रहने की भावना हो,
माँ सबके मन में निवास करो.
सब पर कृपा करो, दया करो, कुशल-मंगल करो,
सब सुखी हों, स्वस्थ हों, सानंद हों, दीर्घायु हों,
सबके मन में संतोष हो, परोपकार की भावना हो,
आपके चरणों में सब की भक्ति बनी रहे,
सबके मन में एक दूसरे के प्रति प्रेम भाव हो,
सहानुभूति की भावना हो, आदर की भावना हो,
मिल-जुल कर शान्ति पूर्वक एक साथ रहने की भावना हो,
माँ सबके मन में निवास करो.
Tuesday, 27 May 2008
लाशों पर तांडव करने वालों कुछ तो शर्म करो
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6 comments:
सुरेश जी,
बहुत सही लिखा है आपने.. सचमुच राष्ट्रीय संपती का नुकसान और हिंसा किसी भी तरह से जायज नहीं हैं... साथ ही यह वोटों की राजनीति है और भडकाने वाले अपने हित साध रहे हैं...
एक सार्थक सोच के लिये बधाई
तरीका निहायत घटीया है. देश की सम्पत्ति वस्तुतः जनता के पैसे से बनी है. अपनी ही पसीने की चीज को तोड़ना-फोड़ना बेवकुफ ही कर सकते है.
हम निंदा करते है.
आज कल आंदोलन और क्रांति की परिभाषा ही बदल गयी है। हम कहाँ जा कर रुकेंगे...अफसोस।
***राजीव रंजन प्रसाद
sahi baat hai suresh ji,is tarah se desh bant jayega......
अपने ही घर को उजाड़ना.. ये कैसा आंदोलन है ??
यह वोटों की राजनीति है एवं निन्दनीय है. सही लिखा है आपने. घोर चिन्तन और जागरुकता की आवश्यक्ता है.
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