हम दाम के लिए काम करते हैं, तो दाम तभी मिलना चाहिए जब उस के लिए काम किया हो. सुप्रीम कोर्ट ने भी इस
सिद्धांत को माना हैं. यह तार्किक द्रष्टि से भी सही है. पर इस सिद्धांत पर पूरी तरह और बिना किसी भेदभाव के अमल नहीं होता.
लोग हड़ताल कर देते हैं, न ख़ुद काम करते हैं और न दूसरों को करने देते हैं. कुछ राजनितिक दल इस ग़लत बात को न सिर्फ़ बढ़ाबा देते हैं बल्कि अदालतों को गाली देने से भी बाज नहीं आते. इन लोगों के ख़िलाफ़ कोई कार्यवाही नहीं होती. एम् पी और एम् एल ऐ जब मर्जी हो सदन की कार्यवाही भंग कर देते हैं. कितनी बार अखबारों में निकला है कि इन लोगों ने कितना काम किया है. पर इन लोगों के ख़िलाफ़ भी कोई कार्यवाही नहीं होती. छात्र हड़ताल करते हैं. अध्यापक हड़ताल करते हैं. डाक्टर हड़ताल करते हैं. सरकारी बाबू हड़ताल करते हैं. कभी तो कोई सरकार भी हड़ताल कर देती है. यह लोग काम नहीं करते पर दाम पूरे मांगते हैं. कभी कभी तो यह लोग दाम बढ़ाने के लिए भी हड़ताल करते हैं.
हड़ताल किसी समाज की प्रगति में सबसे बड़ा वाधक है. हड़ताल करने वालों को राष्ट्र द्रोह के अंतर्गत सजा दी जानी चाहिए. हड़ताल को अपनी बात कहने और मनवाने को एक सम्बैधानिक अधिकार करार देना एक नकारात्मक सोच है. इस सोच को बदला जाना चाहिए. हड़ताल पर पूर्ण पाबंदी लगनी चाहिए.
हर व्यक्ति कवि है. अक्सर यह कवि कानों में फुसफुसाता है. कुछ सुनते हैं, कुछ नहीं सुनते. जो सुनते हैं वह शब्द दे देते हैं इस फुसफुसाहट को. एक और पुष्प खिल जाता है काव्य कुञ्ज में.
दैनिक प्रार्थना
हमारे मन में सबके प्रति प्रेम, सहानुभूति, मित्रता और शांतिपूर्वक साथ रहने का भाव हो
दैनिक प्रार्थना
है आद्य्शक्ति, जगत्जन्नी, कल्याणकारिणी, विघ्न्हारिणी माँ,
सब पर कृपा करो, दया करो, कुशल-मंगल करो,
सब सुखी हों, स्वस्थ हों, सानंद हों, दीर्घायु हों,
सबके मन में संतोष हो, परोपकार की भावना हो,
आपके चरणों में सब की भक्ति बनी रहे,
सबके मन में एक दूसरे के प्रति प्रेम भाव हो,
सहानुभूति की भावना हो, आदर की भावना हो,
मिल-जुल कर शान्ति पूर्वक एक साथ रहने की भावना हो,
माँ सबके मन में निवास करो.
सब पर कृपा करो, दया करो, कुशल-मंगल करो,
सब सुखी हों, स्वस्थ हों, सानंद हों, दीर्घायु हों,
सबके मन में संतोष हो, परोपकार की भावना हो,
आपके चरणों में सब की भक्ति बनी रहे,
सबके मन में एक दूसरे के प्रति प्रेम भाव हो,
सहानुभूति की भावना हो, आदर की भावना हो,
मिल-जुल कर शान्ति पूर्वक एक साथ रहने की भावना हो,
माँ सबके मन में निवास करो.
Monday, 5 May 2008
काम नहीं तो दाम नहीं
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4 comments:
आपका कहना सही है मान्यवर परन्तु उस बारे मे क्या कहना चाहेंगे जब सरकारी कर्मचारी ९ -१० महीने कभी कभी तो सालों बिना तनख्वाह के कार्य करते रहते हैं ?
विचारणीय मुद्दा है.
लवली जी, जैसे बिना काम के दाम नहीं, बैसे ही बिना दाम के काम नहीं. सरकारी कर्मचारी महीनों बिना वेतन के काम करें यह संबंधित सरकार के लिए शर्म की बात है. जो भी इस के लिए जिम्मेदार हैं सजा के पात्र हैं.
सुरेश जी,
आप की प्रत्येक पोस्ट का मैं एक-एक अक्षर बड़े ध्यान से पढ़ता हूं। यह पोस्ट भी अच्छी लगी।
अच्छा लगता है कि आप जैसे किसी व्यक्ति से शब्दों के माध्यम से कुछ न कुछ बात तो होती ही रहती है।
क्या आपने ''http://samachar18.blogspot.com'' विजिट किया? कैसा लगा। जरुर बताइयेगा और हो सके तो कुछ सुझाव भी दीजियेगा।
आपने जुगाड़ की समस्या को जो लेख लिखा था उसे भी मैंने बड़े ध्यान से पढ़ा। ‘गजरौला लाइव’ पर उसे दोनों पहलुओं का जिक्र करुंगा-नकारात्मक और सकारात्मक।
धन्यवाद,
हरमिन्दर सिंह
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