दैनिक प्रार्थना

हमारे मन में सबके प्रति प्रेम, सहानुभूति, मित्रता और शांतिपूर्वक साथ रहने का भाव हो


दैनिक प्रार्थना

है आद्य्शक्ति, जगत्जन्नी, कल्याणकारिणी, विघ्न्हारिणी माँ,
सब पर कृपा करो, दया करो, कुशल-मंगल करो,
सब सुखी हों, स्वस्थ हों, सानंद हों, दीर्घायु हों,
सबके मन में संतोष हो, परोपकार की भावना हो,
आपके चरणों में सब की भक्ति बनी रहे,
सबके मन में एक दूसरे के प्रति प्रेम भाव हो,
सहानुभूति की भावना हो, आदर की भावना हो,
मिल-जुल कर शान्ति पूर्वक एक साथ रहने की भावना हो,
माँ सबके मन में निवास करो.

Tuesday 13 May, 2008

दरबाजा दिखाओ इन मंत्रियों को - भाग २

एक और मंत्री हैं अर्जुन सिंह. पहले यह पढ़ लीजिये:

"I would like to put it on record that when I met Pandit Jawahar Lal Nehru in March 1960, I pledged my total loyalty to him and his family. This was the commitment which is an article of faith with me. For the past 48 years of my life, I have scrupulously adhered to it".

यह वह महान उदगार हैं जो इन सज्जन ने दुखी मन से प्रकट किए जब इस परिवार की मुखिया ने इन को एक तरफ़ कर दिया और इन के मंत्रालय में थोड़ा बहुत जो कुछ हुआ है उस का क्रेडिट भी मनमोहन सिंह को दे दिया. उस से पहले पार्टी के प्रवक्ता ने कहा था की हमारी पार्टी में चमचागिरी का कोई स्थान नहीं है. पर इस वीर और स्वाभिमानी पुरूष को देखिये, कि इतना अपमान होने पर भी अपनी बफादारी से बाज नहीं आ रहे हैं.

अफ़सोस की बात यह है कि एक परिवार के लिए समर्पित व्यक्ति को राष्ट्र की जिम्मेदारी सौंप दी जाती है. किसी विकासशील देश में मानव संशाधन बहुत महत्वपूर्ण हैं. इसी संशाधन को विकसित करने का काम इन बफदार सज्जन को दिया गया. जो व्यक्ति ख़ुद अपने विकास के लिए चमचागिरी का सहारा ले वह देश के किसी संशाधन का क्या विकास करेगा?

एक बात और, किसी परिवार के लिए बफदार होने की कीमत देश क्यों दे? यह सज्जन जिस परिवार के बफादार थे या हैं, बही परिवार इन्हे उसका ईनाम दे. परिवार में ही कोई काम इन्हें दिया जाना चाहिए था. जनता के पैसे का इस तरह दुरूपयोग करना इस परिवार के लिए शोभनीय नहीं है. न ही इस परिवार को इस तरह का कोई अधिकार है. भाई आपका बफदार है आप भुगतिए, देश क्यों भुगते आपके बफादारों को?

इन मंत्री महोदय को बिना कोई समय नष्ट किए दरबाजा दिखाया जाना चाहिए.

3 comments:

गुस्ताखी माफ said...

ज़नाब गुप्ता साहब ये तो खानदानीं वफादार है। इनके बाप दादे अंग्रेजों के थे और इन्होंने अपनी वफादारी अपने पुरखों से सीखी है। इसी वफादारी के बल पर हमेशा मलाई काटते रहे हैं ये लोग। सिन्धिया वगैरह आज के जितने भी राजघराने हैं ये सब वफादारों की जमात से ही तो हैं।

कम्बख्त इतने वफादार हैं कि जब टीवी पर अपना थोबड़ा दिखातें हैं तो शर्म के मारे मेरा कुत्ता अपना मुंह झुका लेता है।

Suresh Gupta said...

आपकी टिपण्णी पढ़ कर मजा आ गया. कुत्ता कुछ आदमियों से ज्यादा समझदार निकला.

संजय बेंगाणी said...

नेताओ को कुत्ता यूँ ही नहीं कहा जाता.