आज के अखबार में एक लेख छपा है भारतीय धर्म-निरपेक्षता के ऊपर। लेखक हैं एम् जे अकबर. वह कहते हैं:
"...... there is not a single instance of any Hindu writer having vilified the Prophet of Islam. Similarly, there is, to my knowledge, not a single Muslim writer who was abusive towards Lord Ram or Hanuman. Indian secularism is quintessentially different from that of the west. It is not the separation of state and religion, but space for the other: coexistence on the basis of mutual respect. I do not have to believe in Hanuman to respect my Hindu brother's right to believe in Ramayana; the Hindu does not need to believe in Allah to respect my belief in the miracle of Holy Koran...."
कितनी सही और सच्ची बात कही है. कितना अच्छा होता अगर यह पूर्ण वास्तविकता होती। कुछ तथाकतित बौद्धिक लेखक और आर्टिस्ट हर हिंदू विचार को ग़लत साबित करने में लगे रहते हें। घटिया राजनीतिबाजों और मजहब के सौदागरों ने भारतीय धर्म-निरपेक्षता को नफरत और मार-काट में बदल दिया है. वोट की ओछी राजनीति लोगों को धर्म के नाम पर बाँट रही है. इस नफरत के साए में बाहर से आए कुछ आतंकवादी आसानी से यहाँ पनाह पा जाते हैं और स्थानीय मदद से आसानी से जयपुर जैसे नर-संहार को अंजाम दे देते हैं.
हर व्यक्ति कवि है. अक्सर यह कवि कानों में फुसफुसाता है. कुछ सुनते हैं, कुछ नहीं सुनते. जो सुनते हैं वह शब्द दे देते हैं इस फुसफुसाहट को. एक और पुष्प खिल जाता है काव्य कुञ्ज में.
दैनिक प्रार्थना
हमारे मन में सबके प्रति प्रेम, सहानुभूति, मित्रता और शांतिपूर्वक साथ रहने का भाव हो
दैनिक प्रार्थना
है आद्य्शक्ति, जगत्जन्नी, कल्याणकारिणी, विघ्न्हारिणी माँ,
सब पर कृपा करो, दया करो, कुशल-मंगल करो,
सब सुखी हों, स्वस्थ हों, सानंद हों, दीर्घायु हों,
सबके मन में संतोष हो, परोपकार की भावना हो,
आपके चरणों में सब की भक्ति बनी रहे,
सबके मन में एक दूसरे के प्रति प्रेम भाव हो,
सहानुभूति की भावना हो, आदर की भावना हो,
मिल-जुल कर शान्ति पूर्वक एक साथ रहने की भावना हो,
माँ सबके मन में निवास करो.
सब पर कृपा करो, दया करो, कुशल-मंगल करो,
सब सुखी हों, स्वस्थ हों, सानंद हों, दीर्घायु हों,
सबके मन में संतोष हो, परोपकार की भावना हो,
आपके चरणों में सब की भक्ति बनी रहे,
सबके मन में एक दूसरे के प्रति प्रेम भाव हो,
सहानुभूति की भावना हो, आदर की भावना हो,
मिल-जुल कर शान्ति पूर्वक एक साथ रहने की भावना हो,
माँ सबके मन में निवास करो.
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1 comment:
कमाल की बात है, एमजे अकबर ने शायद एम-एफ़ हुसैन की पेंटिंग नहीं देखीं? या सरस्वती वन्दना और वन्देमातरम के खुले विरोध को भी धर्मनिरपेक्षता से जोड़ना चाहिये? धर्मनिरपेक्षता एक illusion है…
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