फ़िर सोचा कि हो सकता है पिछले कुछ घंटों में मेरी दिल्ली भी शीला जी की मेहरबानी से हरी-भरी, साफ-सुथरी और अति सुंदर हो गई हो. तुरंत मैं घर से बाहर निकला और मेन रोड पर पहुँचा. कुछ नया नजर नहीं आया. जो है वह आप भी देखिये.







हर व्यक्ति कवि है. अक्सर यह कवि कानों में फुसफुसाता है. कुछ सुनते हैं, कुछ नहीं सुनते. जो सुनते हैं वह शब्द दे देते हैं इस फुसफुसाहट को. एक और पुष्प खिल जाता है काव्य कुञ्ज में.
हमारे मन में सबके प्रति प्रेम, सहानुभूति, मित्रता और शांतिपूर्वक साथ रहने का भाव हो
3 comments:
दोनों की असलियत उजागर हो गयी.
हमारे प्रधानमंत्री चुटकुला भी गंभीरता से सुनाते हैं. आपके फोटो देखकर तो एसा ही लगता है.
आपका ब्लाग पढ़कर बहुत अच्छा लगा. धन्यवाद
अरे नही यह इतना ऊपर पहुच गये की इन्हे तो भारत मे महगांई भी नही दिखती, गदंगी कहा दिखे गी,
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