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पुलिस जनता के जान और माल की रक्षा के लिए है. दिल्ली पुलिस न तो जान की रक्षा कर पा रही है और न ही माल की. आम जनता को ख़ुद पुलिस से डर लगता है. निरीह नागरिकों पर पुलिस के अत्याचार के किस्से रोज अखबारों में छपते हैं. यह समझ ही नहीं आता की पुलिस का यह महकमा बनाया क्यों गया है. रोज पुलिस को नए अधिकार दिए जाते हैं ताकि पुलिस और मुस्तेदी से आम जनता पर अत्याचार कर सके. कोई पुलिसवाला आदि किसी जेबकतरे को पकड़ लेता है तो पुलिस कमिश्नर उसे ईनाम देता है. अगर पुलिस की लापरवाही से किसी नागरिक की जान चली जाती है तो उसे कुछ नहीं कहा जाता. आज के अखबार में एक ख़बर छपी है, अगर कोई नागरिक पुलिसवाले से बहस करेगा तो उस पर तगड़ा जुर्माना किया जाएगा. आखिरकार भारत की पुलिस किसी वी आई पी से कम तो नहीं है.
सरकार रेल चलाती है. सरकार विजली और पानी बेचती है, शहर की साफ सफ़ाई की जिम्मेदारी सरकार की है. पुलिस की बात तो हम ऊपर कर ही चुके हैं. इन और अनेक सरकारी महकमों से जनता संतुष्ट नहीं है. पर कोई कुछ न कह सकता है, न कुछ कर सकता है. सरकार जैसे मर्जी काम करेगी, जब मन चाहेगा सरकार कीमतें बढ़ा देगी और निरीह जनता को यह अन्याय स्वीकार करना होगा. नागरिक पानी मानेंगे तो सरकार लाठी चलवा देगी. विजली मानेंगे तो गोली चलवा देगी. आम आदमी की सरकार का हर काम आम आदमी के ख़िलाफ़ है. फ़िर भी भारत एक मजबूत प्रजातंत्र है. बैसे एक तरह से देखा जाए तो यह सही है - प्रजा के ख़िलाफ़ तंत्र बाकई बहुत मजबूत है.
और भी बहुत से अवांछित चेहरे होंगे प्रजातंत्र के. कुछ आप भी तो दिखाइए.
1 comment:
बस प्रतिभा पाटिल और उनके जैसे लोग यानि नेता ब्राजील यानी विदेश न जाते तो महंगाई वाली समस्या ही न आती. इसे रोकिये.
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