दैनिक प्रार्थना

हमारे मन में सबके प्रति प्रेम, सहानुभूति, मित्रता और शांतिपूर्वक साथ रहने का भाव हो


दैनिक प्रार्थना

है आद्य्शक्ति, जगत्जन्नी, कल्याणकारिणी, विघ्न्हारिणी माँ,
सब पर कृपा करो, दया करो, कुशल-मंगल करो,
सब सुखी हों, स्वस्थ हों, सानंद हों, दीर्घायु हों,
सबके मन में संतोष हो, परोपकार की भावना हो,
आपके चरणों में सब की भक्ति बनी रहे,
सबके मन में एक दूसरे के प्रति प्रेम भाव हो,
सहानुभूति की भावना हो, आदर की भावना हो,
मिल-जुल कर शान्ति पूर्वक एक साथ रहने की भावना हो,
माँ सबके मन में निवास करो.

Wednesday 16 April, 2008

स्वार्थ भाव मिटे हमारा प्रेम पथ विस्तार हो

यह पंक्ति आर्य समाज हवन के बाद यज्ञ देव की आरती मैं से ली गई है. आज के समाज मैं जहाँ निजी स्वार्थ ने प्रेम का गला घोंट दिया है, यह पंक्ति बहुत महत्वपूर्ण हो गई है. मनुष्य स्वभाव से थोड़ा बहुत स्वार्थी होता है. पर उसे निजी स्वार्थ पूर्ति के लिए दूसरों का नुकसान नहीं करना चाहिए. निजी स्वार्थ पूर्ति के लिए लोग कुछ भी ग़लत काम करने के लिए तैयार हो जाते हैं. स्वार्थ पूरा न होने पर उनके मन मैं विरोधावास पैदा होता है. वह दूसरों को उस के लिए जिम्मेदार ठहराने लगते हैं. मन में बढ़ती नफरत हिंसा को जन्म देती है. आज भारतीय समाज इस हिंसा से टूट रहा है. भाई भाई का, बेटा बाप का, पड़ोसी पड़ोसी का, मित्र मित्र का, पति पत्नी का शत्रु बन गए हैं.

स्वार्थ अपने आप में बुरा नहीं हटा. स्वार्थ वही बुरा होता है जिससे किसी दूसरे का बुरा होता हो. अपना स्वार्थ पूरा हो जाने पर यदि मनुष्य उस का लाभ दूसरों को भी मिल जाने देता है तब वह स्वार्थ एक पुन्य बन जाता है. उदाहरण के तौर पर हम राजा भागीरथ का नाम ले सकते हैं. राजा भागीरथ ने गंगा जी को प्रथ्वी पर लाने के लिए कठिन तपस्या की. इसमें उनका अपना निजी स्वार्थ था - उन के पूर्वजों की मुक्ति. जब उन की स्वार्थसिद्धि हो गई और गंगा जी वापस स्वर्ग को जाने लगीं तब उन्होंने राजा से कहा - राजन मैं तुमसे बहुत प्रसन्न हूँ. जो चाहो वर मांग लो. राजा भागीरथ ने कहा - माँ आपने मेरे ऊपर बड़ी कृपा की. ऐसी ही कृपा आप सब प्राणियों पर करती रहो. माँ ने कहा इस के लिए तो मुझे प्रथ्वी पर ही रुकना होगा. आज भी गंगा जी प्रथ्वी पर निवास करती हैं और करोड़ों लोगों पर कृपा करती हैं. आज भी राजा भागीरथ इस महान कार्य के लिय याद किए जाते हैं. कोई उनकी निजी स्वार्थसिद्धि की बात नहीं करता.

इस पंक्ति में हम ईश्वर से प्रार्थना करते हैं की वह हमारे निजी और संकुचित स्वार्थ भाव को मिटाकर उसे दूसरों के लिए कल्याणकारी बनाएं. जब हम दूसरों के कल्याण के लिए सोचेंगे या कार्य करेंगे तब हमारा प्रेम और गहरा और विस्तृत होता जाएगा. समाज मैं सब प्रेम से मिल कर रहेंगे. हिंसा समाप्त हो जायेगी. स्वर्ग प्रथ्वी पर उतर आएगा. आइये प्रभु से प्रार्थना करें - स्वार्थ भाव मिटे हमारा प्रेम पथ विस्तार हो.

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