

न तो फेक्टरी चाहिए, न मेंयुफेक्चारिंग लाइसेंस, न किसी रजिस्ट्रेशन की जरूरत, न कोई ड्राइविंग लाइसेंस I देश का कानून टूटता है तो टूटने दीजिये I आपको तो बस लोकल पुलिस और प्रशाशन का ख्याल करना है I भारत का कानून भारतीय संबिधान में नहीं लिखा है, वह तो लोकल पुलिस और प्रशाशन की जेब में रहता है. उनकी जेब गरम तो कानून आप के लिए नरम I पैसे दो, कानून खरीदो और अपनी जेब में डाल लो I एक चौक पर एक पुलिस वाला एक जुगाड़ू में बैठ कर एक बस का चालान कर रहा था, बस का ड्राईबर कभी अपनी बस को देखता, कभी जुगारू को और कभी पुलिस वाले को.
यह जुगाड़ू एक मल्टी-पर्पज मोटर वेहिकल है, इस में आप मॉल ढोहिये, जानबर ढोहिये, ख़ुद भी ढो जाइये. कोका कोला कम्पनी इन में कोका कोला ढोती है. मैं गंगा मेले वाले दिन ट्रेफिक जाम में फंस गया. एक भैंस एक जुगारु में सफर कर रही थी. लगभग दस तीर्थ यात्री आए और भैस से बिना पूछे जुगारु में चढ़ गए. भैंस को बुरा लगा पर क्या कर सकती थी. उसने एक ठंडी साँस ली और जुगाली करने लगी.



लोग टाटा को बिना मतलब ही क्रेडिट दे रहे हैं सस्ती कार के लिए. टाटा अपनी कार की कीमत एक लाख रूपये बता रहे हैं. यहाँ एक मल्टी-पर्पज मोटर वेहिकल अस्सी हजार में मिल रही है.
मजे की बात यह है की लोकल पब्लिक को इस सब से कोई परेशानी नहीं है. एक-दो लोगों से बात हुई तो उन्होंने कहा की इन सब से बहुत आराम हो गया है. कही भी रुकवा लो, कहीं भी बैठ जाओ, कुछ भी सामान ले जाओ, मैंने कहा और कानून? उन्होंने कहा कानून और हंसने लगे. पुलिस इस देश का कानून है और उसे कोई ऐतज़ार नहीं है. मैंने इस बारे उस इलाके में मशहूर अखबारों को लिखा, फोटो भी भेजी, पर उन्होंने कोई नोटिस नहीं लिया. या हो सकता है उन्होंने कुछ छानबीन भी की हो, और पुलिस वालों की तरह उनकी जेब भी गरम हो गई हो.
यह एक बहुत दुर्भाग्यपूर्ण बात है की एक आम भारतीय नागरिक के मन में अब भारतीय कानून के लिए कोई इज्ज़त नहीं रह गई है. केन्द्र / प्रदेश सरकार और कानून बनाने वाली पार्लियामेन्ट का कोई मतलब नहीं है उनके लिए. उनके लिए सरकार, कानून सब कुछ केवल लोकल पुलिस और प्रशासन है. लोग धड़ल्ले से कानून तौड़ते हैं. लोकल पुलिस और प्रशासन दूसरी और देखता है. सब खुश है, किसी को कोई परेशानी नहीं, हम जैसे कुछ चिठ्ठाकार लिखते रहते हैं.
3 comments:
एक आग्रह - आप इसे कृपया गहरे लाल रंग से बदल कर कुछ और रख सकते हैं क्या? देखने में आंखों पर बहुत जोर परता है.. आज वाली पोस्ट तो मैंने नोटपैड में कापी करके पढ रहा हूं..
ji han.. ye badhiya hai.. aankhon par jyada pressure bhi nahi par raha hai.. :)
Thanks..
सुरेश जी, आपने ऐसी समस्या पर लिखा है जिसपर लिखा नहीं जाता। जुगाड़ या जुगाड़ू जोड़-गांठ कर बनाया गया है। इनसे हमारे क्षेत्र में प्रत्येक वर्ष कई मौंते होतीं हैं। इसका कारण स्पष्ट है कि इन्हें नियंत्रित आसानी से नहीं किया जा सकता। ये आसानी से मुड़ते भी नहीं हैं। गजरौला के रेलवे फाटक पर दो वर्ष पूर्व एक हादसे में जुगाड़ चालक ने एक नन्हें मासूम की जान ले ली थी। उस समय भीड़ बेकाबू हो गयी और काफी हंगामा काटा। उसके बाद से आज तक गजरौला और उसके आसपास के क्षेत्र में अनगिनत ऐसी दुघर्टनायें हुयीं जिनके जिम्मेदार जुगाड़ ही थे।
जब कोई दुघर्टना इस वाहन से होती है तो पुलिस उन पर अपना दबाव बनाने का कार्य शुरु कर देती है। इससे उसे मोटी आमदनी होती है। एक-दो दिन सब सामान्य रहता है। कुछ समय बाद जुगाड़ सड़क पर उसी तरह अनियंत्रित दौड़ते नजर आते हैं।
हमने अपने स्थानीय अखबार ‘गजरौला रिपोर्टर’ में भी इसके बारे में काफी लिखा है। हमारा अखबार ऐसी समस्याओं के लिये ही बना है इसलिये इसे हम कम खर्च में जन समर्थन से चला रहे हैं। आपके जैसे लोग उन समस्याओं के बारे में लिख रहे हैं जिनपर लोगों का ध्यान जाता नहीं मगर ये गंभीर होती हैं।
मैं शीघ्र एक ब्लाग बनाने की तैयारी कर रहा हूं जिसमें केवल जनसमस्याओं को स्थान दिया जाये। आप मुझे इस विषय में कुछ सुझाव या सहयोग दें तो बेहतर रहेगा।
इसके अलावा वृद्ध लोगों के लिये भी एक ब्लाग बनाने पर विचार कर रहा हूं। सुझाव अवश्य दें या मेल करें। मेरा पता है- gajrola@gmail.com
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