दैनिक प्रार्थना

हमारे मन में सबके प्रति प्रेम, सहानुभूति, मित्रता और शांतिपूर्वक साथ रहने का भाव हो


दैनिक प्रार्थना

है आद्य्शक्ति, जगत्जन्नी, कल्याणकारिणी, विघ्न्हारिणी माँ,
सब पर कृपा करो, दया करो, कुशल-मंगल करो,
सब सुखी हों, स्वस्थ हों, सानंद हों, दीर्घायु हों,
सबके मन में संतोष हो, परोपकार की भावना हो,
आपके चरणों में सब की भक्ति बनी रहे,
सबके मन में एक दूसरे के प्रति प्रेम भाव हो,
सहानुभूति की भावना हो, आदर की भावना हो,
मिल-जुल कर शान्ति पूर्वक एक साथ रहने की भावना हो,
माँ सबके मन में निवास करो.

Saturday 19 April, 2008

अशान्तिपूर्ण प्रदर्शन और भारतीय प्रजातंत्र

अशान्तिपूर्ण प्रदर्शन क्या भारतीय प्रजातंत्र की पहचान बन चुके है?

भारतीय प्रजातंत्र में आम जनता के शांतिपूर्ण आग्रह का कोई असर होना बहुत पहले ही समाप्त हो चुका है. पर क्या अब महान और अत्यन्त शक्तिशाली राजनीतिबाजों को भी अपनी बात में असर लाने के लिए अशान्तिपूर्ण आग्रह ही करना होगा. राहुल गाँधी ने अपनी बात कहने के लिए अशान्तिपूर्ण आग्रह का सहारा लिया. वह अपने साथ लगभग १५० लोगों की भीढ़ लेकर झाँसी के डिप्टी कमिश्नर के घर में घुस गए और दो घंटे तक किसी को कोई काम नहीं करने दिया. यह आक्रामक तरीका उन्होंने क्यों अपनाया यह वह और उनकी पार्टी बेहतर जानते हैं, पर मेरी राय में उन्होंने अपनी बात कहने के लिए एक आदर्श स्थापित करने का मौका गवां दिया. यह एक अत्यन्त निराशाजनक बात है. एक व्यक्ति जिसे भारत के प्रधानमंत्री के रूप में विज्ञापित किया जा रहा है उस का इस तरह उत्तेजित भीढ़ को लेकर एक सरकारी अधिकारी के घर में जबरन घुस जाना एक शर्म की बात है.

कुछ कहूं में आप से राहुल जी? में एक वरिष्ट नागरिक हूँ. पंडित नेहरू से मनमोहन सिंह तक बहुत से प्रधानमंत्री देखे हैं मेने. भाई आप नए नेता बन रहे है, कुछ तो नई बात कीजिये. इस गुंडई राजनीति में कुछ तो शालीनता लाइए. आप के परिवार को हमेशा महान होने की संज्ञा दी जाती है, कुछ तो महानता दिखाइए. आप को इस तरह की हरकतें करना शोभा नहीं देता. जो लोग आप के कार्यक्रम निधारित करते हैं और उन का रूप तय करते हैं, उन को समझाइए. उनसे कहिये की आप अपनी बात पूरी शालीनता से कहेंगे. आप के सामने अभी पूरी जिन्दगी पड़ी है. प्रधानमंत्री की कुर्सी कहीं भागी नहीं जा रही.

यदि आपने अपनी कार्य प्रणाली नहीं बदली तो वह दिन दूर नहीं जब आप का आग्रह हिंसापूर्ण हो जायेगा और न जाने कितने जान माल का नुकसान होगा. आपका कोई प्रदर्शन सफल रहा या असफल रहा यह अगर इसी बात से जाना जाता है कि प्रदर्शन के दौरान कितनी हिंसा हुई, कितने ज्यादा जान माल का नुकसान हुआ तो फ़िर आप में और सड़कछाप राजनीतिबाजों में क्या फर्क रहेगा.

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