दैनिक प्रार्थना

हमारे मन में सबके प्रति प्रेम, सहानुभूति, मित्रता और शांतिपूर्वक साथ रहने का भाव हो


दैनिक प्रार्थना

है आद्य्शक्ति, जगत्जन्नी, कल्याणकारिणी, विघ्न्हारिणी माँ,
सब पर कृपा करो, दया करो, कुशल-मंगल करो,
सब सुखी हों, स्वस्थ हों, सानंद हों, दीर्घायु हों,
सबके मन में संतोष हो, परोपकार की भावना हो,
आपके चरणों में सब की भक्ति बनी रहे,
सबके मन में एक दूसरे के प्रति प्रेम भाव हो,
सहानुभूति की भावना हो, आदर की भावना हो,
मिल-जुल कर शान्ति पूर्वक एक साथ रहने की भावना हो,
माँ सबके मन में निवास करो.

Thursday 17 April, 2008

प्रजातंत्र के अवांछित चेहरे

देश के बाहर प्रेसिडेंट प्रतिभा पाटिल ने लगभग खाली ब्राजील सेनेट को संबोधित किया. देश के अन्दर महंगाई पर हुई चर्चा में दोनों लोक सभा और राज्य सभा लगभग खाली रहीं. उधर ब्राजील सरकार और भारतीय दूतावास के अधिकारी सफाई देने की कोशिश कर रहे हैं. इधर भारत की जनता के प्रतिनिधि जनता को शर्मिंदा कर सीना ताने घूम रहे हैं. उधर पाटिल लातिन अमेरिकन देशों से अच्छे सम्बन्ध बनाने के लिए १२ दिन की यात्रा पर हैं. इधर महंगाई से परेशान जनता इस उम्मीद में है कि सरकार कुछ करेगी पर जिन लोगों को उसने लोक सभा में भेजा है वह तो जनता को सिर्फ़ शर्मिंदा ही कर पा रहे हैं.

पुलिस जनता के जान और माल की रक्षा के लिए है. दिल्ली पुलिस न तो जान की रक्षा कर पा रही है और न ही माल की. आम जनता को ख़ुद पुलिस से डर लगता है. निरीह नागरिकों पर पुलिस के अत्याचार के किस्से रोज अखबारों में छपते हैं. यह समझ ही नहीं आता की पुलिस का यह महकमा बनाया क्यों गया है. रोज पुलिस को नए अधिकार दिए जाते हैं ताकि पुलिस और मुस्तेदी से आम जनता पर अत्याचार कर सके. कोई पुलिसवाला आदि किसी जेबकतरे को पकड़ लेता है तो पुलिस कमिश्नर उसे ईनाम देता है. अगर पुलिस की लापरवाही से किसी नागरिक की जान चली जाती है तो उसे कुछ नहीं कहा जाता. आज के अखबार में एक ख़बर छपी है, अगर कोई नागरिक पुलिसवाले से बहस करेगा तो उस पर तगड़ा जुर्माना किया जाएगा. आखिरकार भारत की पुलिस किसी वी आई पी से कम तो नहीं है.

सरकार रेल चलाती है. सरकार विजली और पानी बेचती है, शहर की साफ सफ़ाई की जिम्मेदारी सरकार की है. पुलिस की बात तो हम ऊपर कर ही चुके हैं. इन और अनेक सरकारी महकमों से जनता संतुष्ट नहीं है. पर कोई कुछ न कह सकता है, न कुछ कर सकता है. सरकार जैसे मर्जी काम करेगी, जब मन चाहेगा सरकार कीमतें बढ़ा देगी और निरीह जनता को यह अन्याय स्वीकार करना होगा. नागरिक पानी मानेंगे तो सरकार लाठी चलवा देगी. विजली मानेंगे तो गोली चलवा देगी. आम आदमी की सरकार का हर काम आम आदमी के ख़िलाफ़ है. फ़िर भी भारत एक मजबूत प्रजातंत्र है. बैसे एक तरह से देखा जाए तो यह सही है - प्रजा के ख़िलाफ़ तंत्र बाकई बहुत मजबूत है.

और भी बहुत से अवांछित चेहरे होंगे प्रजातंत्र के. कुछ आप भी तो दिखाइए.

1 comment:

इष्ट देव सांकृत्यायन said...

बस प्रतिभा पाटिल और उनके जैसे लोग यानि नेता ब्राजील यानी विदेश न जाते तो महंगाई वाली समस्या ही न आती. इसे रोकिये.