दैनिक प्रार्थना

हमारे मन में सबके प्रति प्रेम, सहानुभूति, मित्रता और शांतिपूर्वक साथ रहने का भाव हो


दैनिक प्रार्थना

है आद्य्शक्ति, जगत्जन्नी, कल्याणकारिणी, विघ्न्हारिणी माँ,
सब पर कृपा करो, दया करो, कुशल-मंगल करो,
सब सुखी हों, स्वस्थ हों, सानंद हों, दीर्घायु हों,
सबके मन में संतोष हो, परोपकार की भावना हो,
आपके चरणों में सब की भक्ति बनी रहे,
सबके मन में एक दूसरे के प्रति प्रेम भाव हो,
सहानुभूति की भावना हो, आदर की भावना हो,
मिल-जुल कर शान्ति पूर्वक एक साथ रहने की भावना हो,
माँ सबके मन में निवास करो.

Saturday, 19 April 2008

भूल गई माँ, मुझको मुझसे नहीं मिलाया.

आज सुबह जब दर्पण में मैं ख़ुद को देख रहा था,
दर्पण बोला, 'हेलो अजनबी',
चौंक गया मैं,
जीवन की संध्या बेला में,
यह कैसा अद्भुत संबोधन?
सोचा बहुत याद न आया,
मैं हूँ कौन कहाँ से आया?
पहला परिचय हुआ पिता से,
दादा दादी, भइया बहना,
परिचय घर के बाहर निकला,
उन का नाती, उन का बेटा,
बीत गया यह सारा जीवन,
इनका उनका कहते कहते,
जीवन की संघ्या बेला में,
दर्पण ने यह प्रश्न उठाया,
क्या अपना परिचय बतलाऊँ,
कैसे आज तुम्हें समझाऊँ,
भूल गई माँ, मुझको मुझसे नहीं मिलाया.

2 comments:

Udan Tashtari said...

गहरी रचना!

Manas Path said...

अच्छी लगी कविता.