दैनिक प्रार्थना

हमारे मन में सबके प्रति प्रेम, सहानुभूति, मित्रता और शांतिपूर्वक साथ रहने का भाव हो


दैनिक प्रार्थना

है आद्य्शक्ति, जगत्जन्नी, कल्याणकारिणी, विघ्न्हारिणी माँ,
सब पर कृपा करो, दया करो, कुशल-मंगल करो,
सब सुखी हों, स्वस्थ हों, सानंद हों, दीर्घायु हों,
सबके मन में संतोष हो, परोपकार की भावना हो,
आपके चरणों में सब की भक्ति बनी रहे,
सबके मन में एक दूसरे के प्रति प्रेम भाव हो,
सहानुभूति की भावना हो, आदर की भावना हो,
मिल-जुल कर शान्ति पूर्वक एक साथ रहने की भावना हो,
माँ सबके मन में निवास करो.

Saturday, 18 October 2008

भगवान् और इंसान

भगवान् को मैंने कभी देखा नहीं,
बस उस के बारे में सुना है,
जो सुना है उस पर यकीन किया है,
कभी नाउम्मीद नहीं किया उसने.

इंसान को मैंने देखा है,
पहचाना है, जाना है, 
पर अक्सर किया है उसने,
नाउम्मीद.
 

6 comments:

भारतीय नागरिक - Indian Citizen said...

sundar vichaar hain

dhiru singh { धीरेन्द्र वीर सिंह } said...

agar voh naumeed kar de to bhagwaan kis baat ka .

युग-विमर्श said...

कविता अच्छी है. दोनों स्थलों पर 'मुझे' अतिरिक्त शब्द है.

Udan Tashtari said...

क्या बात है, वाह!!

राज भाटिय़ा said...

बहुत ही सुंदर विचार, एक सुन्दर कविता
धन्यवाद

श्रीकांत पाराशर said...

Achhe vichar