भगवान् को मैंने कभी देखा नहीं,
बस उस के बारे में सुना है,
जो सुना है उस पर यकीन किया है,
कभी नाउम्मीद नहीं किया उसने.
इंसान को मैंने देखा है,
पहचाना है, जाना है,
पर अक्सर किया है उसने,
नाउम्मीद.
हर व्यक्ति कवि है. अक्सर यह कवि कानों में फुसफुसाता है. कुछ सुनते हैं, कुछ नहीं सुनते. जो सुनते हैं वह शब्द दे देते हैं इस फुसफुसाहट को. एक और पुष्प खिल जाता है काव्य कुञ्ज में.
हमारे मन में सबके प्रति प्रेम, सहानुभूति, मित्रता और शांतिपूर्वक साथ रहने का भाव हो
6 comments:
sundar vichaar hain
agar voh naumeed kar de to bhagwaan kis baat ka .
कविता अच्छी है. दोनों स्थलों पर 'मुझे' अतिरिक्त शब्द है.
क्या बात है, वाह!!
बहुत ही सुंदर विचार, एक सुन्दर कविता
धन्यवाद
Achhe vichar
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