है बुद्धिजीवी,
बहुत दिनों से तुम छुट्टी पर नहीं गए,
प्लीज़ अब चले जाओ न,
हिमालय की कंदराओं में,
मुझे कुछ काम पूरे करने हैं,
जो पेंडिंग पड़े हैं न जाने कब से.
पड़ोस की कालोनी में,
अब्दुल को ईद की मुबारकवाद देनी है,
पीटर के घर जाना है,
कहने 'हेप्पी क्रिसमस',
रहमान कर पायेगा अपना वादा पूरा,
दीवाली पर मेरे घर आने का,
अवतार सिंह के साथ जाना है,
गुरु पर्व पर गुरुद्वारे से प्रसाद लेने.
सिमरन को कर दिया था बम ने अनाथ,
एक मां की गोद सूनी कर दी एक और बम ने,
एक बहन हर वर्ष राखी खरीदती है,
और दिन भर रोती रहती है,
क्योंकि एक बम ने छीन लिया उस का भाई,
एक भाई ने बिठाना था बहन को डोली में,
बम ने बदल दी डोली एक अर्थी में,
इनके और इन जैसे न कितने,
सबके पास जाना है,
दो शब्द सहानूभूति के कहने.
है बुद्धिजीवी,
अब तो चले जाओ छुट्टी पर.
9 comments:
bilkul theek likha hai, main bhi sahmat hoon
buddhijiviyon ko gali dena shagal ho gaya hai log khud apne andar nahi jhaankte
अन्तिम पन्तियाँ बड़ी मार्मिक लिखी है . अच्छी अभिव्यक्ति. बधाई .
kunal ji bade buddhijeevi hain, shayad. baaki to bloggers ..... khodte rahte hain jo meri najar men buddhi bechkar jeevit rahne se jyada achcha kary hai
अरे नहीं कुनाल जी, मैं बुद्धिजीविओं को गाली नहीं दे रहा, सिर्फ़ उन्हें छुट्टी पर जाने की अपील कर रहा हूँ. बेचारे दिन-रात बुद्धि के घोड़े दौड़ाते रहते हैं, थक जाते होंगे. आम आदमी कुछ दिन इन के बिना भी रह लेगा.
अच्छी अभिव्यक्ति
Rachna achhi lagi. achha sandesh deti hai aur marmik bhi ban padi hai. sarvadharm ki baat karti kavita vaise bhi man ko bhati hai.Hamari aur se poore number.
सुरेश जी आप के पास एक जुदाई कलम है ? आप जो भी लिखते हो बहुत अच्छा लगता है, या फ़िर आप बहुत अच्छा लिखते हो कि दिल की गहराई तक चला जाता है.
धन्यवाद
सुन्दर!
Post a Comment