दैनिक प्रार्थना

हमारे मन में सबके प्रति प्रेम, सहानुभूति, मित्रता और शांतिपूर्वक साथ रहने का भाव हो


दैनिक प्रार्थना

है आद्य्शक्ति, जगत्जन्नी, कल्याणकारिणी, विघ्न्हारिणी माँ,
सब पर कृपा करो, दया करो, कुशल-मंगल करो,
सब सुखी हों, स्वस्थ हों, सानंद हों, दीर्घायु हों,
सबके मन में संतोष हो, परोपकार की भावना हो,
आपके चरणों में सब की भक्ति बनी रहे,
सबके मन में एक दूसरे के प्रति प्रेम भाव हो,
सहानुभूति की भावना हो, आदर की भावना हो,
मिल-जुल कर शान्ति पूर्वक एक साथ रहने की भावना हो,
माँ सबके मन में निवास करो.

Thursday, 23 October 2008

प्लीज़, छुट्टी पर चले जाओ

है बुद्धिजीवी,
बहुत दिनों से तुम छुट्टी पर नहीं गए,
प्लीज़ अब चले जाओ न,
हिमालय की कंदराओं में, 
मुझे कुछ काम पूरे करने हैं,
जो पेंडिंग पड़े हैं न जाने कब से.

पड़ोस की कालोनी में,
अब्दुल को ईद की मुबारकवाद देनी है,
पीटर के घर जाना है,
कहने 'हेप्पी क्रिसमस',
रहमान कर पायेगा अपना वादा पूरा,
दीवाली पर मेरे घर आने का,
अवतार सिंह के साथ जाना है,
गुरु पर्व पर गुरुद्वारे से प्रसाद लेने.

सिमरन को कर दिया था बम ने अनाथ,
एक मां की गोद सूनी कर दी एक और बम ने,
एक बहन हर वर्ष राखी खरीदती है,
और दिन भर रोती रहती है,
क्योंकि एक बम ने छीन लिया उस का भाई,
एक भाई ने बिठाना था बहन को डोली में,
बम ने बदल दी डोली एक अर्थी में, 
इनके और इन जैसे न कितने,
सबके पास जाना है,
दो शब्द सहानूभूति के कहने.
 
है बुद्धिजीवी,
अब तो चले जाओ छुट्टी पर. 

9 comments:

भारतीय नागरिक - Indian Citizen said...

bilkul theek likha hai, main bhi sahmat hoon

Kunal said...

buddhijiviyon ko gali dena shagal ho gaya hai log khud apne andar nahi jhaankte

दीपक कुमार भानरे said...

अन्तिम पन्तियाँ बड़ी मार्मिक लिखी है . अच्छी अभिव्यक्ति. बधाई .

भारतीय नागरिक - Indian Citizen said...

kunal ji bade buddhijeevi hain, shayad. baaki to bloggers ..... khodte rahte hain jo meri najar men buddhi bechkar jeevit rahne se jyada achcha kary hai

Unknown said...

अरे नहीं कुनाल जी, मैं बुद्धिजीविओं को गाली नहीं दे रहा, सिर्फ़ उन्हें छुट्टी पर जाने की अपील कर रहा हूँ. बेचारे दिन-रात बुद्धि के घोड़े दौड़ाते रहते हैं, थक जाते होंगे. आम आदमी कुछ दिन इन के बिना भी रह लेगा.

Vivek Gupta said...

अच्छी अभिव्यक्ति

श्रीकांत पाराशर said...

Rachna achhi lagi. achha sandesh deti hai aur marmik bhi ban padi hai. sarvadharm ki baat karti kavita vaise bhi man ko bhati hai.Hamari aur se poore number.

राज भाटिय़ा said...

सुरेश जी आप के पास एक जुदाई कलम है ? आप जो भी लिखते हो बहुत अच्छा लगता है, या फ़िर आप बहुत अच्छा लिखते हो कि दिल की गहराई तक चला जाता है.
धन्यवाद

अनूप शुक्ल said...

सुन्दर!