दैनिक प्रार्थना

हमारे मन में सबके प्रति प्रेम, सहानुभूति, मित्रता और शांतिपूर्वक साथ रहने का भाव हो


दैनिक प्रार्थना

है आद्य्शक्ति, जगत्जन्नी, कल्याणकारिणी, विघ्न्हारिणी माँ,
सब पर कृपा करो, दया करो, कुशल-मंगल करो,
सब सुखी हों, स्वस्थ हों, सानंद हों, दीर्घायु हों,
सबके मन में संतोष हो, परोपकार की भावना हो,
आपके चरणों में सब की भक्ति बनी रहे,
सबके मन में एक दूसरे के प्रति प्रेम भाव हो,
सहानुभूति की भावना हो, आदर की भावना हो,
मिल-जुल कर शान्ति पूर्वक एक साथ रहने की भावना हो,
माँ सबके मन में निवास करो.

Monday, 20 October 2008

अनुत्तरित प्रश्न

बढ़ रहा है, 
गुस्सा आदमी का,
या छोटी हो रही है,
हद बर्दाश्त की?
भटक रहा है,
स्वार्थ के अंधेरों में,
या लौट रहा है,
क्या कहते हैं,
बैक टू स्कुँयर वन? 

4 comments:

गोविंद गोयल, श्रीगंगानगर said...

sahan shakti kam ho rahi hai. gussa aadmi ko kha raha hai

भारतीय नागरिक - Indian Citizen said...

kuchh nahi bhay ka abhao hai, bhay bin hoy na preet

दीपक कुमार भानरे said...

महोदय .
सब धर्मं और संसकारों से दूर होते भौतिकवादी सोच का नतीजा है .

राज भाटिय़ा said...

हम अपने सम्स्कारो से दुर जा रहै है, ओर पश्चिम के संस्कार अपना रहै है तो यही होगा...... राम सीता पर अब हम उगलिया उठाने लगे है.... रावण अब पबित्र लगता है तो उसी का स्भाव भी हम मै आ रहा है
धन्यवाद एक अच्छी कविता के लिये