बढ़ रहा है,
गुस्सा आदमी का,
या छोटी हो रही है,
हद बर्दाश्त की?
भटक रहा है,
स्वार्थ के अंधेरों में,
या लौट रहा है,
क्या कहते हैं,
बैक टू स्कुँयर वन?
हर व्यक्ति कवि है. अक्सर यह कवि कानों में फुसफुसाता है. कुछ सुनते हैं, कुछ नहीं सुनते. जो सुनते हैं वह शब्द दे देते हैं इस फुसफुसाहट को. एक और पुष्प खिल जाता है काव्य कुञ्ज में.
हमारे मन में सबके प्रति प्रेम, सहानुभूति, मित्रता और शांतिपूर्वक साथ रहने का भाव हो
4 comments:
sahan shakti kam ho rahi hai. gussa aadmi ko kha raha hai
kuchh nahi bhay ka abhao hai, bhay bin hoy na preet
महोदय .
सब धर्मं और संसकारों से दूर होते भौतिकवादी सोच का नतीजा है .
हम अपने सम्स्कारो से दुर जा रहै है, ओर पश्चिम के संस्कार अपना रहै है तो यही होगा...... राम सीता पर अब हम उगलिया उठाने लगे है.... रावण अब पबित्र लगता है तो उसी का स्भाव भी हम मै आ रहा है
धन्यवाद एक अच्छी कविता के लिये
Post a Comment