आज हमारे देश में हर तरफ़ गरीबी और बीमारी दिखाई देती है, पर हम अपना अधिकाँश समय और सामर्थ्य आपस में लड़ने में व्यर्थ गवां देते हैं. क्या कभी हमने अपने गरीब और बीमार देशवासियों दर्द महसूस किया है? क्या कभी हमने उनके लिए एक आंसू बहाया है?
स्वामी विवेकानंद ने कहा था
"क्या तुम तैयार हो अपनी मात्रभूमि के लिए हर बलिदान करने को? अगर हाँ, तब तुम इस देश को गरीबी और बीमारी से मुक्ति दिला सकते हो. क्या तुम जानते हो कि हमारे करोड़ों देशवासी भूखे और बीमार हैं? क्या तुम उन का दर्द महसूस करते हो? क्या कभी तुम उन के लिए एक आंसू बहाते हो?"
3 comments:
Kahan bache hain swami vivekanand ke updeshon ko mannewale? jab tak aadmi khud mushibat men nahi fansta tab tak vah hath pair nahi marta. agar har vyakti thoda thoda bhi rashtra ke prati apne dayeetva ko nibhane lag jaye to phir samsyayen rahengi hi nahi.
theek likha hai, baat yah hai ki yahan koi sochna hi nahi chahta, sochega to kuchh karne ki ichcha hogi aur karne ke liye haath pairo ko kasht dena padega.
सुरेश जी मै श्रीकांत पाराशर जी की बात से सहमत हुं आप ने बहुत ही सुन्दर ढग से बात कही है.
धन्यवाद
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