एक हिंदू मन, बचन, कर्म से अहिंसक होता है. मन, बचन और कर्म तीनों प्रकार की हिंसा का दंड ईश्वर देता है. मानव निर्मित कानून मन की हिंसा का कोई दंड नहीं दे पाता. कुछ हद तक बचन की हिंसा और कर्म की हिंसा का दंड देने की सामर्थ्य कानून में है. पर कानून इस सामर्थ्य का पूरा इस्तेमाल नहीं कर पाता. नागरिक, पुलिस, वकील और जज चारों ईमानदार होंगे और कानून का पूरा सम्मान करेंगे तभी इस सामर्थ्य का पूरा इस्तेमाल हो पायेगा. ऐसा हो नहीं पाता और अपनी गलती का आरोप लोग कानून पर थोप देते हैं.
ईश्वर का कानून भंग करने की सजा हर हालत में मिलती है, वहां कोई गलती नहीं होती. ईश्वर की अदालत सब से बड़ी अदालत है. कोई भी हिंसा करने से पहले यह समझ लेना चाहिए कि हो सकता है मानव निर्मित कानून से बच जाएँ, पर ईश्वर के कानून से नहीं बच पायेंगे. ईश्वर की अदालत में मन, बचन और कर्म द्वारा की गई किसी भी प्रकार की हिंसा की सजा मिलेगी. कृष्ण का साथ भी यधिष्ठिर को बचन की हिंसा की सजा पाने से नहीं बचा पाया. इस लिए ईश्वर के कानून से डरिये, भले ही समाज में आपकी स्थिति आपको यहाँ के कानून से बचा ले.
कुछ लोग ईश्वर के नाम पर हिंसा करते हैं. यह तो और भी बड़ा अपराध है, इस की तो सजा भी बहुत भयंकर होगी. जो लोग सोचते हैं कि इस तरह की हिंसा करके वह जन्नत में मजे करेंगे, तो वह बहुत बड़ी गलफहमी में हैं. यह जीवन ईश्वर की देन है. किसी से उस का जीवन छीन लेना ईश्वर के प्रति एक घोर अपराध है. ईश्वर की अदालत में इस अपराध की कोई छमा नहीं है. आपको ऐसे बहुत हिंदू मिल जायेंगे जो ईश्वर में विश्वास नहीं करते, बल्कि उसे गालियाँ भी देते हैं. ईश्वर इन्हें भी प्यार करता है. पर वह किसी भी प्रकार की हिंसा को छमा नहीं करता. रात-दिन उसकी पूजा करने वाला व्यक्ति भी अगर हिंसा करेगा तो उसे सजा मिलेगी. राजा दशरथ से गलती से हिंसा हो गई और उनके वाण से श्रवन कुमार मारा गया. बाद में ईश्वर ने उन का पुत्र बन कर जन्म लिया, पर दशरथ उस हिंसा की सजा पाने से नहीं बचे. जरा सोचिये अगर दशरथ नहीं बच पाये तब आप हिंसा करके कैसे बचेंगे?
आज समाज में हिंसा की बहुतायत हो गई हे. लोग मन, बचन और कर्म तीनों से हिंसा करने में लगे हैं. मन से किसी के बारे में सही नहीं सोचते, बचन से किसी के बारे में सही नहीं कहते, कर्म से तो बस किसी भी की जान ऐसे ले लेते हैं जैसे किसी कीड़े को मार रहे हैं. हिंदू धर्म में तो कीड़े को मारना भी हिंसा है. हिंसा का कोई स्थान नहीं है हिंदू धर्म में. अगर कोई हिंदू हिंसा करता है, चाहे कोई भी कारण हो, वह ईश्वर के प्रति अपराध कर रहा है. ईश्वर हर जीवधारी के अन्तर में विराजमान है. किसी जीवधारी पर हिंसा कर के एक हिंदू ईश्वर पर हिंसा कर रहा है. आत्मरक्षा के लिए भी पूरी कोशिश यही करनी चाहिए कि किसी की जान न लेनी पड़े, जब कोई और रास्ता न बचे तभी किसी की जान लेना सही माना जा सकता है. पिछले दिनों एक महिला ने एक कामांध व्यक्ति का सर काट दिया. वह बहुत समय तक कोशिश करती रही कि यह दुराचारी उस के ख़िलाफ़ हिंसा बंद कर दे पर वह नहीं माना. इस महिला के सामने कोई रास्ता नहीं बचा. इस लिए उस दुराचारी की जान ले लेना सही है. मेरा पूरा विश्वास है कि यहाँ का कानून और ईश्वर का कानून दोनों इस महिला को निरपराध मानेंगे.
मैं हिंदू हूँ, इस लिए मुझे तकलीफ होती है जब कोई हिंदू हिंसा करता है. कारण चाहे कोई भी हो, हिंदू को हिंसा करने से बचना चाहिए. मुसलमान और ईसाई अगर हिंसा करते हैं तो वह अपने ईश्वर को जवाब देंगे. इस देश का कानून उन्हें सजा देगा. हिंसा का जवाब हिंसा नहीं है. मैं यह मानता हूँ कि हिन्दुओं की इस भावना को उन की कमजोरी माना जाता है. कोई भी बिना किसी डर के हिन्दुओं पर आक्रमण कर देता है. जब हिंदू इस हिंसा का जवाब हिंसा से दे देता तो सब तरफ़ से गालियाँ पड़ने लगती हैं. लेकिन हिन्दुओं को यह नहीं भूलना चाहिए कि हमारा धर्म हमें सब इंसानों से प्रेम करना, उनका और उनके धर्म का आदर करना सिखाता है. नफरत का हमारे धर्म में कोई स्थान नहीं है. हमारे लिए तो हर चलता-फिरता इंसान एक मन्दिर है, जिसके अन्तर में ईश्वर विराजता है. हम कैसे किसी इंसान के अन्तर में विराजमान ईश्वर पर आक्रमण कर सकते हैं या उसे मार सकते हैं?
इसलिए मेरे हिंदू भाइयों, अपने गुस्से पर नियंत्रण करो, अपने सोच पर नफरत को हावी मत होने दो, हमारे धर्म पर तो हर समय, हर तरफ़ से आक्रमण होते रहे हैं. अभी भी हो रहे हैं. यह आक्रमण बाहर से भी हो रहे हैं और अन्दर से भी. पर हमें संयम नहीं खोना चाहिए. यह हमारा देश है. हमें कोई ऐसा काम नहीं करना चाहिए जिस से इस देश की अखंडता और प्रभुसत्ता को कोई नुक्सान पहुंचे. जो इस देश को अपना नहीं समझते उन्हें बेनकाब करना चाहिए और देश के कानून के हवाले करना चाहिए.
प्रेम करो सबसे, नफरत न करो किसी से.
9 comments:
प्रेम करो सबसे, नफरत न करो किसी से
" bhut accha or saccha lekh hai aapka or apke ek ek shabd se hum sehmet hain...."
Regards
प्रिय गुप्त जी
मेरे लिए एक सुखद स्थिति है कि आपकी लेखनी एक स्वस्थ दिशा में अग्रसर हो गई. मनुष्य को निरंतर आत्म-मंथन करते रहना चाहिए. धर्म ईश्वर द्वारा यदि नियंत्रित और संचालित होता तो यह कठिनाइयां क्यों आतीं. किसी का ईश्वर अलग नहीं है. सब एक ही ईश्वर को जवाबदेह हैं. दीपावली और नव वर्ष की अभी से शुभ कामनाये.
स्नेह-सहित
शैलेश जैदी
प्रिय शैलेश जी,
मेरी लेखनी हमेशा से ही स्वस्थ रही है. बात मैं पहले भी यही कहता था. पर शायद आप उसे अपने नजरिये से देखते थे और आपको वह अस्वस्थ नजर आती थी. मेरे लिए भी यह एक सुखद स्थिति है की अब आपको मेरी लेख्निस्वस्थ लग रही है.
दीपावली की वधाई और शुभकामनाओं के लिए धन्यवाद.
bilkul theek kah rahe hain, aap, lekin main ek cheej aur jodna chahoonga ki anyay ka pratikaar bhi awashya karna chahiye.
आपकी बात काबिलेगौर है. वो जो समझते हैं कि वो सच्चे हिंदू हैं उन्हें जरूर ध्यान देना चाहिए
रोशन जी, हिंदू सच्चा या झूठा नहीं होता. हिंदू तो बस हिंदू होता है. कभी गुस्से में सही राह से भटक जाता है और दूसरों की राह पर चला जाता है.
आप कहते हैं
"आपको ऐसे बहुत हिंदू मिल जायेंगे जो ईश्वर में विश्वास नहीं करते, बल्कि उसे गालियाँ भी देते हैं."
जो लोग ईश्वर में विश्वास नहीं रखते तो वो उसे गालिंया कैसे दे सकते हैं?
मैथिलि जी, यही तो खास बात है कि वह कहते हैं कि ईश्वर है ही नहीं पर उसे गालियाँ भी देते हैं.
सुरेश जी हम सब उस की संतान है, अब आप अपने बच्चे का कोई सा भी खिलोना लेकर उस के सामने तोड दो फ़िर देखो बच्चा कितना गुस्सा करता है, ओर हम सब भी उस एक के खिलोने है, ओर जब हम उस् के बनाये खिलोनो को नुक्सान पहुचाये गे, उन्हे नष्ट करेगें तो क्या वह हम से खुश होगा??
आप ने अपने लेख मै बहुत ही सुन्दर बात कही है, काश हम सभी इसे मानते
धन्यवाद
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