दैनिक प्रार्थना

हमारे मन में सबके प्रति प्रेम, सहानुभूति, मित्रता और शांतिपूर्वक साथ रहने का भाव हो


दैनिक प्रार्थना

है आद्य्शक्ति, जगत्जन्नी, कल्याणकारिणी, विघ्न्हारिणी माँ,
सब पर कृपा करो, दया करो, कुशल-मंगल करो,
सब सुखी हों, स्वस्थ हों, सानंद हों, दीर्घायु हों,
सबके मन में संतोष हो, परोपकार की भावना हो,
आपके चरणों में सब की भक्ति बनी रहे,
सबके मन में एक दूसरे के प्रति प्रेम भाव हो,
सहानुभूति की भावना हो, आदर की भावना हो,
मिल-जुल कर शान्ति पूर्वक एक साथ रहने की भावना हो,
माँ सबके मन में निवास करो.

Wednesday, 22 October 2008

अनैतिक विकास

नफरत का जहर फ़ैल रहा है,
प्रेम का अमृत सूख रहा है,
भूख इतनी बढ़ गई है,
आदमी आदमी को खा रहा है,
मानवता पशुता की और अग्रसर है,
अनैतिक विकास कहें या,
नैतिक विनाश? 

5 comments:

Anonymous said...

अनैतिक विकास कहें या,
नैतिक विनाश?

नैतिकता का तो विनाश ही होता जा रहा है

युग-विमर्श said...

नैतिकता का विलुप्त होना ही अनैतिकता का विकास है जिस प्रकार प्रकाश के विलुप्त होने से अन्धकार छ जाता है.

श्रीकांत पाराशर said...

Naitik vinash hi kahna hoga. achhi panktiyan hain.

संगीता पुरी said...

बहुत अच्छा लिखा है आपने।

राज भाटिय़ा said...

अनैतिक विकास या नैतिक विनाश? लेकिन हो तो विनाश ही रहा है, बहुत सुन्दर विचार
धन्यवाद