दैनिक प्रार्थना

हमारे मन में सबके प्रति प्रेम, सहानुभूति, मित्रता और शांतिपूर्वक साथ रहने का भाव हो


दैनिक प्रार्थना

है आद्य्शक्ति, जगत्जन्नी, कल्याणकारिणी, विघ्न्हारिणी माँ,
सब पर कृपा करो, दया करो, कुशल-मंगल करो,
सब सुखी हों, स्वस्थ हों, सानंद हों, दीर्घायु हों,
सबके मन में संतोष हो, परोपकार की भावना हो,
आपके चरणों में सब की भक्ति बनी रहे,
सबके मन में एक दूसरे के प्रति प्रेम भाव हो,
सहानुभूति की भावना हो, आदर की भावना हो,
मिल-जुल कर शान्ति पूर्वक एक साथ रहने की भावना हो,
माँ सबके मन में निवास करो.

Sunday, 19 October 2008

खोज

हम दो दोस्त,
निकले थे खोजने,
वह भगवान् को,
मैं इंसान को,
उसकी खोज पूरी हुई,
वह लौट आया,
मैं अभी भी खोज रहा हूँ,
इंसान को. 

6 comments:

परमजीत सिहँ बाली said...

अच्छी पोस्ट।

श्रीकांत पाराशर said...

Dhundhte rah jaoge. asan nahin hai insan milna. Phir bhi koshish jaruri hai.

भारतीय नागरिक - Indian Citizen said...

srikaant ji sahi likha hai, insaan ko dhundhna jyada muskil hai

अविनाश वाचस्पति said...

लेकिन मैं चल पड़ा हूं
इंसान को खोजने वाले
इंसान के पीछे पूरी
शिद्दत से।

Unknown said...

सही कहा अविनाश जी, चलिए मिल कर खोजेंगे इंसान को.

राज भाटिय़ा said...

क्या बात है, बहुत ही गहरी बात कह दी आप ने इंसान आज खो गया है
धन्यवाद