किसी भी मंजिल तक पहुँचने के लिए एक से अधिक रास्ते होते है. लोग अलग-अलग रास्तों से चल कर मंजिल तक पहुँचते हैं. मंजिल सब का स्वागत करती है. किस ने कौन सा रास्ता चुना, इस आधार पर कोई भेद-भाव नहीं करती. इसी प्रकार ईश्वर तक पहुँचने के बहुत से रास्ते हैं. लोग अपने-अपने विश्वास के आधार पर अलग-अलग रास्तों से ईश्वर तक पहुँचते हैं. ईश्वर सब को समान रूप से स्वीकार करता है. वह किसी से नहीं पूछता कि तुम कौन से रास्ते से आए हो?
लेकिन कुछ लोग इसी बात पर आपस में उलझ पड़ते हैं कि कौन सा रास्ता ठीक है? वह कहते हैं कि उनके धर्म मैं बताया गया रास्ता ही सही है बाकी सारे रास्ते ग़लत हैं. चलिए आपकी ही सही मान लेते हैं. आप अपने सही रास्ते से ईश्वर तक पहुँच जाइए. अगर दूसरों के रास्ते ग़लत हैं, वह ईश्वर तक नहीं पहुंचेंगे, इधर-उधर भटकते रहेंगे. आप क्यों परेशान होते हैं? आप क्यों उन के पूजा के तरीकों में टांग अड़ाते हैं?
एक हिंदू मूर्ति पूजा करता है. यह ग़लत हे या सही है, यह उसके और ईश्वर के बीच की बात है. किसी मुसलमान को इस पर आपत्ति क्यों होनी चाहिए? मुसलमान मूर्ति पूजा को ग़लत मानते हैं तो मानें. कोई हिंदू इस बात पर आपत्ति नहीं उठाता. मुसलमान या ईसाई किस तरह पूजा करते हैं इस से किसी हिंदू को आपत्ति नहीं होती. मुसलमान या ईसाई अपने तरह से पूजा करें और हिन्दुओं को अपने तरह से करने दें.
पिछले दिनों में हिन्दुओं के धार्मिक जलूसों औ उत्सवों पर जो आक्रमण किए गए वह किसी तरह से सही नहीं कहे जा सकते. यह असहिष्णुता सांप्रदायिक दंगों को जन्म देती है और फ़िर उसके लिए हिन्दुओं को ही जिम्मेदार ठहराया जाता है. मुस्लिम और ईसाई समुदायों को इस असहिष्णुता से बचना चाहिए. मुझे अपने कार्यकाल की एक बात याद रही है. मेरा एक मुसलमान साथी एक फेक्ट्री में निरीक्षण के लिए गया. वहां फेक्ट्री के मालिक के दफ्तर में एक छोटा मन्दिर था जिसमे कुछ मूर्तियाँ थीं. इस बन्दे ने इस बात पर आपत्ति उठा दी और कहा कि मन्दिर वहां से हटाया जाय. बबाल मच गया. हमारे दफ्तर से कई सीनियर अफसरों को जाना पड़ा तब जाके कहीं मामला सुलझा. ताज्जुब की बात यह है कि इस भले आदमी ने अपनी गलती नहीं मानी और यही कहता रहा कि फेक्ट्री के मालिक ने दफ्तर में मन्दिर बना कर ग़लत काम किया और फ़िर फेक्ट्री में काम कर रहे हिन्दुओं ने उसे मारने की कोशिश की.
हिंदू आदतन शान्ति पसंद कौम हैं, जब मुसलमान या ईसाई उन के धार्मिक मामलों में दखलंदाजी करने लगते हैं, उनके धर्म और देवी-देवताओं का मजाक बनाने लगते हैं, फ़िर भी हिंदू काफ़ी हद तक बर्दाश्त करते हैं, पर जब यह दखलंदाजी और मजाक बर्दाश्त के बाहर हो जाता है तब वह जवाब देते हैं, और फ़िर पोप तक चिल्लाने लगते हैं. सब को मुसलामानों और ईसाइओं की पिटाई नजर आती है, पर जो ग़लत हरकतें इन लोगों ने कीं वह नहीं नजर आतीं. मुझे लगता है कि जब तक मुसलमान और ईसाई अपनी यह हरकतें बंद नहीं करेंगे तब तक भारतीय समाज में स्थाई शान्ति नहीं आएगी. मुसलमान और ईसाई अपने अल्पसंख्यक होने का नाजायज फायदा उठा रहे हैं, इस पर रोक लगनी चाहिए.
2 comments:
bilkul sahi kah rahe hain, pratikaar awashya hona chahiye, shanti pasand hone ka arth yah nahi ki apne astitva ka vinash dekhte rahen
सुरेश जी आप की बात से सहमत हू, बाबरी मस्जिद पर बहुत से हिन्दु भी बोले थे की यह सब गलत है, ऎसा नही होना चाहिये, लेकिन कशमीर पर या अन्य बम धमाको मै आज तक कभी भी कोई मुस्लिम नही बोला कि यह गलत है, ओर चुप रहना भी उस काम की तरफ़ दारी होता है, हुसेन जो हिन्दुयो के देवी देवताओ की गलत तस्बीरे बनाता है, कितने मुस्लिम उस के बिरुध बोले??
अगर किसी मुस्लिम पर मुसिबत आती है तो हिन्दु मदद के लिये ही आगे आता है,हिन्दु पर कोई अतांकी हमला हो तो आज तक किसी मुस्लिम ने आगे बढ कर उसे रोका है???
धन्यवाद, आप की बात काबिले गोर करने लायक है.
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