मुंबई आतंकी हमले के बाद जनता के मन में जन-प्रतिनिधियों के प्रति आक्रोश भरा हुआ है . बैसे तो हर आतंकी हमले के बाद यह आक्रोश जन्म लेता है, पर इस बार यह आक्रोश तीब्र रूप से मुखर भी हो उठा है. हर और जन-प्रतिनिधियों के प्रति अविश्वास जताया जा रहा है, उनकी भर्त्सना की जा रही है, उन्हें जिम्मेदार ठहराया जा रहा है निर्दोष नागरिकों की हत्या का. यह मांग भी की जा रही कि अपनी जिम्मेदारी न निभा सकने वाले जन-प्रतिनिधियों के ख़िलाफ़ कार्यवाही की जाय. इस सब से अधिकाँश जन-प्रतिनिधि बौखला उठे हैं. यह जन-प्रतिनिधि स्वयं को राजनेता कहते हैं. मेरे विचार में वह सिर्फ़ घटिया राजनीतिबाज हैं और इस देश और समाज पर एक गाली की तरह छा गए हैं.
भारत एक प्रजातांत्रिक देश है. भारत की जनता, चुनाव प्रक्रिया द्वारा अपने प्रतिनिधि चुनती है, उन पर विश्वास करती है कि यह जन-प्रतिनिधि जनता के ट्रस्टी के रूप में देश का प्रबंध कार्य करेंगे. यह अत्यन्त अफ़सोस की बात है कि चुने जाने के बाद यह अपना जन-प्रतिनिधि का चौला उतार फेंकते हैं और स्वयं को राजनेता घोषित कर देते हैं. जनता के ट्रस्टी न रह कर जनता के राजा बन जाते हैं, उस पर राज्य करने लगते हैं. केवल अपने बारे में सोचते हैं, केवल अपनी सुरक्षा के लिए चिंतित रहते हैं, जनता को बांटने के नए-नए तरीके निकालते हैं, नफरत फेलाते हैं. कुर्सी पर पारिवारिक मालिकाना हक़ तय कर देते हैं.
पिछले दिनों में जनता का उग्र रूप देख कर इनकी सिट्टीपिट्टी गुम हो गई है. इनकी प्रदूषित मानसिकता नंगी होकर बाहर आ गई है. वोटों की राजनीति के साथ अब इस्तीफों की राजनीति हो रही है. जनता को मूर्ख बनाने का हर-सम्भव प्रयास किया जा रहा है. दो इस्तीफों के बाद तीसरा राजनीतिबाज अकड़ जाता है और जिम्मेदारी तय करने का सारा नाटक धरा रह जाता है. परिवार की बफादारी देश से ऊपर है, यह बात फ़िर एक बार साबित हो जाती है.
एक राजनीतिबाज देश पर कुर्बान हुए एक शहीद और उसके परिवार का अपमान करता है, सारा देश विरोध में उठ खड़ा होता है. इस राजनीतिबाज की पार्टी इस के घटिया व्यवहार पर खेद प्रकट करती है, पर यह बेशर्म राजनीतिबाज अपनी बेशर्मी पर शर्मसार होने की बजाये ऐसे जाहिर करता है जैसे उस ने देशभक्ति का कोई महान कार्य किया है. इस पार्टी की एक सहयोगी पार्टी का नेता इस घटिया व्यवहार का समर्थन करता है और उस शहीद के पिता पर ही ऊँगली उठाने लगता है.
एक और राजनीतिबाज महिलाओं द्वारा राजनीतिबाजों में अविश्वास प्रकट करने पर उन्हें गालियाँ देने लगता है. उसकी पार्टी की एक समर्थक संस्था उसकी भाषा को आपत्तिजनक बताती है, पर राजनीतिबाजों में अविश्वास प्रकट करने को ग़लत ठहराती है.
जिस जनता का प्रतिनिधित्व यह घटिया राजनीतिबाज कर रहे हैं, उसी को आँखें दिखा रहे हैं, उसी को धमका रहे हैं कि खबरदार अगर हम पर अविश्वास किया तो. यह मौका है भारत की जनता के पास, इन घटिया राजनीतिबाजों को उखाड़ फेंकने का. हे मेरे देशवासियों आओ हम सब एक होकर इन विश्वासघातियों को समुन्दर में धकेल दें. यह देश हमारा है. हमारा देश एक प्रजातंत्र है. इस के प्रति हमारा यह कर्तव्य है कि इन प्रजातंत्र के दुश्मनों, इन अवांछित तत्वों को देश निकाला दे दें.
5 comments:
हमारा देश एक प्रजातंत्र है. इस के प्रति हमारा यह कर्तव्य है कि इन प्रजातंत्र के दुश्मनों, इन अवांछित तत्वों को देश निकाला दे दें.
bahut sateek kaha hai aapne.. par ye sawal abhi tak anuttarit hai ki kaise?????????इन अवांछित तत्वों को देश निकाला दे दें.
darasal prajatantra hamare jaise naagrikon ke desh ke liye bana hi nahi hai.
जनता को बस अपनी याददाश्त सही रखनी चाहिए और जब उसका मौका आए इन नेताओं को लात मार कर किनारे खड़ा करे। इन्होंने न केवल जनता बल्िक उन शहीदों का भी अपमान किया है और इसकी सजा इन्हें जरूर मिलेगी। मैंने विधानसभा चुनावों में जनप्रतिनिधित्व कानून 1961 के खंड 49-ओ का प्रयोग कर वोट देने से इंकार किया है। आप सब भी ऐसा ही करें।
वोट की राजनीति ने आतंकी हमलों से निपटने की दृढ इच्छाशक्ति खत्म कर दी है, अब देश को राजनेता नही , राष्ट्रनेता की ज़रूरत है !
सुरेश जी जनता अब इन्हे इ की ओकात याद दिला कर रहै हे भगवान अब मेरे भारत की जनता को जगाये रखना, यह दो कोडी के नेता जिनका बाप शायद कही छोटा कम करता हो आज करोडो मे खेलते है हमारे खुन पसीने की कमाई से, ओर हमे ही दुत्कारते है आओ सब मिल कर इन्हे दुतकारे, सालो को पकड कर उसी समुन्दर मे फ़ेकं दो जह से इन के बाप आये थे.
धन्यवाद
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