हर व्यक्ति कवि है. अक्सर यह कवि कानों में फुसफुसाता है. कुछ सुनते हैं, कुछ नहीं सुनते. जो सुनते हैं वह शब्द दे देते हैं इस फुसफुसाहट को. एक और पुष्प खिल जाता है काव्य कुञ्ज में.
दैनिक प्रार्थना
हमारे मन में सबके प्रति प्रेम, सहानुभूति, मित्रता और शांतिपूर्वक साथ रहने का भाव हो
दैनिक प्रार्थना
सब पर कृपा करो, दया करो, कुशल-मंगल करो,
सब सुखी हों, स्वस्थ हों, सानंद हों, दीर्घायु हों,
सबके मन में संतोष हो, परोपकार की भावना हो,
आपके चरणों में सब की भक्ति बनी रहे,
सबके मन में एक दूसरे के प्रति प्रेम भाव हो,
सहानुभूति की भावना हो, आदर की भावना हो,
मिल-जुल कर शान्ति पूर्वक एक साथ रहने की भावना हो,
माँ सबके मन में निवास करो.
Friday, 31 October 2008
आसाम में जो निर्दोष मारे गए उन्हें अश्रुपूर्ण श्रधांजलि
Thursday, 30 October 2008
भाई दूज मनाइए कम्पूटर पर
Wednesday, 29 October 2008
एक आंसू बहाओ उन के लिए
"क्या तुम तैयार हो अपनी मात्रभूमि के लिए हर बलिदान करने को? अगर हाँ, तब तुम इस देश को गरीबी और बीमारी से मुक्ति दिला सकते हो. क्या तुम जानते हो कि हमारे करोड़ों देशवासी भूखे और बीमार हैं? क्या तुम उन का दर्द महसूस करते हो? क्या कभी तुम उन के लिए एक आंसू बहाते हो?"
Monday, 27 October 2008
प्रकाश का त्यौहार दीवाली मंगलमय हो आपके लिए
क्या आमिर अली आतंकवादी है?
Sunday, 26 October 2008
अर्थव्यवस्था की अर्थी
Friday, 24 October 2008
मेरे हिंदू भाइयों जरा ध्यान दीजिये
Thursday, 23 October 2008
प्लीज़, छुट्टी पर चले जाओ
Wednesday, 22 October 2008
अनैतिक विकास
Tuesday, 21 October 2008
एक कविता रेनू सूद की
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Monday, 20 October 2008
अनुत्तरित प्रश्न
Sunday, 19 October 2008
Saturday, 18 October 2008
भगवान् और इंसान
कभी पोप से मिला तो पूछूंगा
बेटा - पिता जी कुछ लोग अपने धर्म को बड़ा और दूसरे धर्म को छोटा क्यों कहते हैं?
Friday, 17 October 2008
रास्ते अलग हो सकते हैं पर मंजिल तो एक ही है
Wednesday, 15 October 2008
एकता की तो ......!!!
Tuesday, 14 October 2008
ब्लाग 'मोहल्ला' - हिंदू और हिंदू धर्म को गालियाँ
पिछले कुछ दिनों से इस ब्लाग पर जो भी लेख छपता है उस में केवल हिन्दुओ और उनके धर्म को गालियाँ दी जाती हें। मैंने इस बात पर ऐतज़ार दर्ज किया। आज जब में इस ब्लाग पर गया तो मैंने पाया कि मेरी कोई टिपण्णी इस ब्लाग पर छप नहीं पा रही है। कारण मैं नहीं जानता। हो सकता है ब्लाग सूत्रधार ने कोई बंदिश लगा दी हो। ब्लाग के नए लेख में पुलिस की बर्बरता को भी मजहबी जामा पहना कर हिन्दुओं और हिंदू धर्म की निंदा की गई है। मेरी टिपण्णी है -
"पुलिस क्या है, यह सब जानते हैं. पुलिस द्बारा नागरिकों पर क्या अत्त्याचार किए जाते हैं, यह भी सब जानते हैं. इन अत्त्याचारों में से वह चुन कर लाना जो मुसलमानों से सम्बंधित हैं तो इस ब्लाग और इस के सूत्रधार को क्या कहें? पुलिस का इन अत्त्याचारों के पीछे एक ही मकसद होता है, पैसा. हर मामले में जिस पार्टी की और से पुलिस को ज्यादा फायदा मिलता है, वह उस की तरफ़ रहती है. इस बारे में पुलिस किसी का धर्म नहीं देखती. वह देखती है केवल पैसा. अब इस अत्त्याचार को मजहबी जामा पहना दिया जाना तो बहुत ग़लत बात है. ऐसे ब्लाग लेख समाज में वैमनस्य को और हवा देते हैं. नेता तो यह करते ही हैं, पिछले कुछ दिनों से कुछ ब्लागकार भी यह करने लगे हैं. मोहल्ला इस का एक जीता-जागता उदहारण है.
इस ब्लाग के सूत्रधार और हिन्दुओं और उन के धर्म के लिए गाली-गलौज की भाषा प्रयोग करने बालों से मैं यही पूछना चाहूँगा कि ऐसा करके वह किस का फायदा कर रहे हैं? क्या वह ब्लाग रचना इस लिए करते हैं कि समाज में नफरत का और ज्यादा प्रचार करें? नफरत से कभी किसी को कुछ नहीं मिला, और न ही इन्हें कुछ मिलेगा। इंसानियत को मजहबी जामा पहनाने से केवल नुकसान होगा फायदा नहीं. मुद्दों को एक तरफा नजर से देखने से मुद्दे सुलझते नहीं और उलझ जाते हैं. प्रेम की बात करो, नफरत की बात मत करो. प्रेम से आप किसी का दिल जीत सकते हैं, नफरत से नहीं. इस लिए हिन्दी ब्लाग जगत के ब्लाग्कारों, प्रेम करो सबसे, नफरत न करो किसी से."
अब तो मोहल्ले पर केवल गाली-गलौज ही नजर आती है। एक अच्छे ब्लाग का यह पतन दुःख का कारण है।
Sunday, 12 October 2008
राष्ट्रिय एकता परिषद्, जोड़ या तोड़???
इस परिषद् को काम तो जोड़ने का करना चाहिए पर यह काम करती है तोड़ने का. आतंकवाद, मजहबी दंगे, और ऐसे बहुत से मुद्दे हैं जिन पर इस परिषद् को बैठकर, ठंडे दिमाग से सोचना चाहिए और इस समस्याओं का हल तलाशना चाहिए. पर यह सारे पहलवान करंगे आग में घी डालने का काम. शुरुआत करेंगे मनोनीत प्रधान मंत्री जी. सामने का मोर्चा संभालेंगे विपक्ष के नेता. बाकी सारे पहलवान अपनी-अपनी तरफ़ से आग में आहुतियाँ देंगे. एक दूसरे पर इल्जाम लगायेंगे. दूसरों को 'नफरत के सौदागर' और ख़ुद को 'मोहब्बत का मसीहा' साबित करेंगे. पुलिस और सुरक्षा एजेंसिओं को खूब गालियाँ देंगे. अगर नफरत नापने का कोई यंत्र होता तो बैठक से पहले और बैठक के बाद में नफरत कई गुना ज्यादा हो गई है यह साबित होता.
मजेदार बात यह है कि इन सबको और जनता को भी यह पता है कि किस पहलवान ने क्या दांव लगाना है, किस ने किस पर क्या इल्जाम लगाना है, किसने किस को क्या गाली देनी है. सब के भाषण पहले से तैयार हैं, हर हालत में इन्होनें अपने-अपने भाषण सुना देने है. मुकाबला होगा कौन कितना ज्यादा चिल्लाता है. 'एकता' की अर्थी जलाएंगे और 'विभाजन' को और मजबूत करेंगे यह लोग अपने भाषणों से. बेचारे असहाय 'वोट जी' को लगेगा कि इस परिषद् का नाम 'राष्ट्रिय एकता परिषद्' से बदल कर 'राष्ट्रिय एकता-विध्वंस परिषद्' रख देना चाहिए.
Friday, 10 October 2008
कांग्रेस का देश के साथ क्रूर मजाक
Thursday, 9 October 2008
आज की कुछ खबरें
वह बहुत मजे से अपनी जिंदगी गुजार रहा था. १९ लाख रुपए सालाना मिलते थे उसे. पर पुलिस ने उसे आतंकवादी होने के इल्जाम में गिरफ्तार किया. उसकी मां ने कहा वह निर्दोष है. इसमें कोई खास बात नहीं क्योंकि हर मां अपने बेटे को निर्दोष कहेगी. पर एक ख़ास बात कही उस की मां ने उस से, जब वह उस से मिलने गई - "तूने जिहाद का मतलब मुझसे क्यों नहीं पुछा? इस्लाम इस बारे में क्या कहता है, यह तुझे मुझ से पूछना था. मैं तुझे सही बात बताती." क्या यह हर गिरफ्तार मुस्लिम नौजवान के साथ नहीं हो रहा है? मैंने अक्सर यह कहा है कि अगर तुम अपने बच्चों को सही बात नहीं सिखाओगे तो कोई और उन्हें ग़लत बात सिखा देगा.
प्रधान मंत्री ने कहा कि ईसायिओं पर हुए हमलों से भारत का नाम सारे विश्व में बदनाम हुआ है, यह एक राष्ट्रिय शर्म की बात है. मैं यह नहीं समझ पाता कि बदनामी और शर्म किसी एक या दूसरे मजहब के साथ क्यों जोड़ दी जाती है? क्या इंसानियत धर्म देख कर जागती है? मरने वाला अगर इस धर्म का था तो बहुत बुरी बात हुई, और अगर वह दूसरे धर्म का था तो कोई बात नहीं. यह कैसा सोच है? जब कश्मीर में पंडितों का कत्लेआम हो रहा था तब यह इंसानियत क्यों नहीं जागी, तब भारत की बदनामी क्यों नहीं हुई, तब यह राष्ट्रिय शर्म की बात क्यों नहीं बनी? दिल्ली और दूसरे शहरों में बम धमाकों में जब लोग मरे तो यह इंसानियत क्यों नहीं जागी, तब भारत की बदनामी क्यों नहीं हुई, तब यह राष्ट्रिय शर्म की बात क्यों नहीं बनी? लेकिन जब दिल्ली में पुलिस मुट्भेड़ में कुछ लोग मारे गए या गिरफ्तार किए गए तब अचानक ही इंसानियत जाग उठी. शर्मा जी की मौत पर इंसानियत तो नहीं जगी, हाँ कुछ लोग हैवानियत की हदें पार कर गए. क्या क्या नहीं इन लोगों ने? क्या क्या इल्जाम नहीं लगाए इन लोगों ने? धर्म के नाम पर हैवानियत का यह नंगा नाच क्या भारत की बदनामी नहीं करता? क्या यह राष्ट्रीय शर्म की बात नहीं है?
भारत में घुसे बंगलादेशी नागरिकों ने भारतीय नागरिकों पर हमला किया. यह तो अजीब ही बात हो गई. जिन्हें इस देश की जमीन से खदेड़ दिया जाना चाहिए था, वह यहाँ बस गए हैं, और ऐसे बसे हैं कि यहाँ के निवासियों पर हमला करने की हिम्मत भी रखते हैं. कुछ दिन पहले दिल्ली के तैमूर नगर इलाके में ऐसे ही गैरकानूनी बंगलादेशी घुसपैठियों ने दिल्ली पुलिस की जम कर पिटाई की.
कामरेड सोमनाथ जी ने विदेश का दौरा रद्द कर दिया क्योंकि वहां की सरकार ने कहा कि उन की तलाशी ली जायेगी. इस से पहले कुछ सरकारों ने भारतीय मंत्रियों की तलाशी ली थी, जॉर्ज फर्नांडिस और प्रणब मुखेर्जी ऐसे कुछ मंत्री हैं. कैसी भारत सरकार है यह? यहाँ कोई बाहर से आता है तो उस की तलाशी तो दूर उस के लिए लाल कालीन विछाया जाता है. क्या इन तलाशियों से भारत की बदनामी नहीं होती?क्या यह राष्ट्रीय शर्म की बात नहीं है? यह बेशर्म सरकारें और यह बेशर्म नेता.
Sunday, 5 October 2008
एक सवाल. आप ने क्या हासिल किया???
आप की कार से एक साईकिल, स्कूटर या कार टकरा गई. आप को बहुत गुस्सा आ गया. आप ने साइकिल सवार, स्कूटर/कार ड्राइवर पर हमला कर दिया, उसे धायल कर दिया या मार डाला. आप ने क्या हासिल किया?
आप के पड़ोसी ने स्कूटर पार्क किया जो आप को अच्छा नहीं लगा. आप उस से झगड़ा करने लगे. मार-पीट हुई और आपने उसे धायल कर दिया या मार दिया. आप ने क्या हासिल किया?
आप ने कुछ लोगों के भरमाने पर बाज़ार में बम रख दिया. उस विस्फोट में बहुत से बच्चे, जवान और बूढ़े मारे गए. आप ने क्या हासिल किया?
आप के छात्र ने होम वर्क नहीं किया. आप को बहुत गुस्सा आया. आपने उसे थप्पड़ मारे जिस से उस के कान का परदा फट गया. आप ने क्या हासिल किया?
आप पुलिस में हैं. आप ने एक चोर पकड़ा. थाने में ला कर आपने उसे इतना मारा कि वह मर गया. आप ने क्या हासिल किया?
बस में कुछ गुंडों ने एक लड़की के साथ बदसलूकी की. वह मदद के लिए चिल्लाती रही पर आप देखते रहे. आप ने क्या हासिल किया?
आप डाक्टर हैं. आप ने गर्भ में बच्चे के सेक्स की जांच की और पाया कि वह कन्या है. उस के माता-पिता के कहने पर आप ने गर्भ में ही उस की हत्या कर दी. आप ने क्या हासिल किया?
आप नेता हैं. आपने अपनी नाजायज मांगे मनवाने के लिए रास्ता रोक दिया. एक बीमार आदमी अस्पताल नहीं पहुँच पाया और मर गया. आप ने क्या हासिल किया?
आप जूनियर डाक्टर हैं. आप ने एक जरा सी बात पर हड़ताल कर दी. कुछ मरीज समय से इलाज न होने के कारण मर गए. आप ने क्या हासिल किया?
उन्होंने स्वामी जी को मारा. आप ने उन का चर्च जला दिया. कुछ निर्दोष लोगों को मार दिया. आप ने क्या हासिल किया?
आप ने कुछ ग़रीबों की मजबूरी का नाजायज फायदा उठा कर उन्हें उन का धर्म बदलने पर मजबूर किया. आप ने क्या हासिल किया?
एक हिंदू लड़की आप के बेटे से प्यार करती थी और उस से शादी करना चाहती थी. आप ने उसे मजबूर किया कि वह अपना धर्म बदल ले, नहीं तो शादी नहीं होगी.उस ने धर्म बदल लिया. आप ने क्या हासिल किया?
आप की मर्जी का दहेज़ न मिलने पर आप ने अपनी बहू को मार डाला. आप ने क्या हासिल किया?
आप ने अपने पति और सास-स्वसुर के ख़िलाफ़ झूटी शिकायत कर के उन्हें गिरफ्तार करवा दिया. आप ने क्या हासिल किया?
आप ने अपने जरा से फायदे के लिए अपने सहकर्मी की बॉस से झूटी शिकायत करके उस की प्रोमोशन रुकवा दी. आप ने क्या हासिल किया?
और भी बहुत से सवाल हैं. फ़िर कभी पूछेंगे.
Saturday, 4 October 2008
बंद करो धर्म के नाम पर यह हिंसा
अगर मुसलमान शब्द का अर्थ 'अल्लाह में मुकम्मल ईमान' है, तो केवल कुछ लोग ही मुसलमान क्यों हुए? जो भी कोई अल्लाह, खुदा, ईश्वर में मुकम्मल ईमान रखता है, मुसलमान कहलायेगा. मैं अपने ईश्वर में पूरा विश्वास रखता हूँ, इस नाते मैं भी मुसलमान हूँ. अपने को मुसलमान कहने वाले अपने तरीके से अपने अल्लाह की इबादत करते हैं, मैं अपने तरीके से, ईसाई अपने तरीके से अपने खुदा की इबादत करते हैं, इसी तरह सिख अपने तरीके से वाहे गुरु की इबादत करते हैं. यह सब अगर अपने-अपने ईश्वर में पूरा विश्वास रखते हैं तो यह सब मुसलमान हुए. आप में और इन में कोई फर्क नहीं है. अगर आप एक सच्चे मुसलमान हैं तो इंसान-इंसान में फर्क करना बंद कीजिए. अगर आपका खुदा यह फर्क नहीं करता तो आप कौन होते हैं यह फर्क करने वाले?
कोई गरीब है, किसी को मदद की जरूरत है, क्या उस की इस मजबूरी का नाजायज फायदा उठा कर आप उस का धर्म परिवर्तन करा देंगे? क्या इंसानियत के नाते किसी की मदद करना आपके धर्म में नहीं सिखाया जाता? क्या आप की इंसानियत सिर्फ़ आपके अपने धर्म के लोगों तक ही सीमित है? यह भरती के दफ्तर क्यों खोल रखे हैं आपने? क्या आपके खुदा ने आपको अपना भरती एजेन्ट बनाकर यहाँ भेजा है? क्या इस जमीन पर कोई चुनाव होने वाला है जिसमें आपका और दूसरों के खुदा हिस्सा लेंगे और आप उन के लिए वोट बेंक तैयार कर रहे हैं? कुछ लोग कहते हैं कि केवल हमारा अल्लाह है और कोई नहीं. कुछ लोग कहते हैं कि हमारा खुदा सब से अच्छा है, हमारा धर्म सब से अच्छा है. यानी आपका अल्लाह और उनका खुदा कोई चीज हो गए जिसे आप लोग मार्केट कर रहे हैं.
आप अपने धर्म के मानने वालों के साथ अमानवीय व्यवहार करते हैं, उन्हें इंसान नहीं समझते, और जब वह मजबूर होकर अपना धर्म बदल लेते हैं तो धर्म के व्यापारियों के विरुद्ध आप हिंसा करते हैं. जो इन गरीब और असहाय लोगों को धर्म बदल कर मिलता है वह सब आप ही इन्हें क्यों नहीं दे देते? अगर ऐसा हो जाए तो कोई भी धर्म का व्यापारी इन के साथ धर्म का सौदा नहीं कर सकता. ईश्वर की नजर में सब बराबर हैं. वह तो केवल प्रेम का सम्बन्ध मानता है. आप किसी से नफरत कैसे कर सकते हैं? आप कैसे किसी को मार सकते हैं? आप दूसरों के धार्मिक स्थानों पर हमला कैसे कर सकते हैं? आपका ईश्वर आपको इस की इजाजत नहीं देता. वह तो उन्हें भी प्रेम करता है जो उसे गालियाँ देते हैं. क्या आपको नहीं लगता कि इस तरह हिंसा करके आप अपने ईश्वर के प्रति अपराध कर रहे हैं? सोचिये, कल जब आप उसके सामने जायेंगे तो क्या जवाब देंगे उसे? क्या इंसानों के खून से रंगी हथेलियाँ लेकर उस के सामने जायेंगे आप?
क्या आप जिस हवा में साँस लेते हैं वह आप के ईश्वर ने भेजी है? अगर यह सच है तो दूसरे धर्म वाले उस हवा में साँस कैसे ले सकते हैं? आप के ईश्वर का भेजा हुआ पानी दूसरे धर्म वाले कैसे पी सकते हैं? इसी तरह आप के ईश्वर की भेजी हुई धूप भी केवल आप की है, दूसरे उसका इस्तेमाल कैसे कर सकते हैं? आपने अपने-अपने ईश्वर तो बाँट लिए, अब उसके द्वारा भेजी गई हवा, पानी और धूप को बाँट सकते हैं क्या आप? अगर बाँट सकते हैं तो बाँट लीजिये. जब ईश्वर और इंसानियत का बंटवारा होना ही है तो मुकम्मल बंटवारा क्यों न हो. धूप, हवा,पानी के रंग अलग कर लीजिये ताकि पहचानने में आसानी हो. खून का रंग भी अगर बदल सकते हैं तो बदल लीजिये.
अपने-अपने धर्म का मजाक उड़ाना बंद कीजिए. अपने-अपने ईश्वर का मजाक उड़ाना बंद कीजिए. आप ख़ुद अपने धर्म और ईश्वर का मजाक उड़ाते हैं और दूसरों पर लांछन लगाते हैं और यह बहाना बनाकर उन के ख़िलाफ़ हिंसा करते हैं. जरा अपने ईश्वर का नाम लेकर अपने मन के अन्दर झांकिए, आप को लगेगा कि आप ख़ुद अपने धर्म के सब से बड़े दुश्मन हैं. हिंसा करनी है तो आप ख़ुद अपने ख़िलाफ़ करिए. यही सच्चा जिहाद है. यही सब से अच्छी प्रार्थना है. यही सबसे अच्छा कन्फेशन है. यही सब से अच्छी अरदास है.
बंद कर दीजिये धर्म के नाम पर यह हिंसा करना.
मान गए आपको शीला जी
सम्पादकीय में जो कहा गया है मैं उस से सहमत हूँ। क्या आप भी सहमत हें? यह एक शर्मनाक बयान है। इस की जितनी निंदा की जाए कम है।
Thursday, 2 October 2008
देखिये तस्वीर क्या कहती है!!!
प्रेम करो सबसे, नफरत न करो किसी से