युसूफ किरमानी ने अपने ब्लाग 'हम सब की बात' पर एक पोस्ट डाली है जिसका शीर्षक है 'मुशीरुल हसन की आवाज सुनो'. मैंने अपनी राय दर्ज करा दी, फ़िर सोचा कि अगर मैं इस मुद्दे पर पोस्ट लिखता तो उसे क्या शीर्षक देता? सोचा और फ़िर यह पोस्ट यहाँ इस ब्लाग पर दाल दी. शीर्षक रखा - 'आओ एक दूसरे का दर्द महसूस करें'.
मुशीरुल हसन साहब ने जामिया में एक समारोह आयोजित किया और उस में शबाना आजमी और नसीरुद्दीन शाह को डाक्टर की उपाधि से सम्मानित किया. इस समारोह में उन्होंने एक भाषण दिया जिसके बारे में किरमानी साहब ने लिखा कि मुशीरुल हसन की आवाज सुनो. हसन साहब ने हमें आमंत्रित ही नहीं किया, वरना हम भी उन की आवाज सुन लेते और जामिया का दर्द महसूस कर लेते. इतने बड़े विश्वविद्यालय के इतने बड़े वाइस चांसलर की आवाज सुनने का मौका निकल गया. खैर कोई बात नहीं, उन्होंने जो कहा वह अखबार में तो पढ़ ही लिया. अखबार ने जो और जैसा लिखा है उस से उनकी बातें काफ़ी हद तक सही लगीं, पर यह नहीं समझ में आया कि वह अपने दर्द के लिए किसे जिम्मेदार मानते हैं और यह सब किस से कह रहे हैं, सरकार से, पुलिस से, राजनीतिक दलों से, जामिया के और देश के दुखी मुसलमान समुदाय से या हिंदू समुदाय से, और उन से क्या चाहते हैं?
उन्होंने शबाना आजमी को डाक्टर बना दिया. अगर शबाना को यह सम्मान उनके समाज और देश को दिए गए किसी महत्वपूर्ण योगदान के लिए दिया गया है तो बहुत अच्छी बात है. लेकिन अगर उन्हें इस लिए सम्मानित किया गया कि कुछ दिन पहले उन्होंने भारतीय लोकतंत्र को मुसलमानों के ख़िलाफ़ बताया था, तो मेरे जैसे आम समझ वाले हिन्दुस्तानी को दुःख होगा. अखबार ने लिखा है कि हसन साहब ने हुसैन को भी यह सम्मान दिया था, जिन्होनें हिंदू देवी-देवताओं के नग्न चित्र बनाये थे. अगर यह सही है तो इस बात से हमें दुःख हुआ.
अब एक मुद्दा यह बना कि हम तो जामिया के दर्द को महसूस कर रहे हैं, पर क्या हसन साहब और जामिया हमारे दर्द को महसूस करेंगे जो उन्होंने शबाना और हुसैन को इस तरह सम्मानित करके हमें दिया है? दूसरी बात, हिन्दुओं को भी दुःख होता है जब उनके परिवार, रिश्तेदारी और मित्रों में कोई बम धमाकों में जान गंवाता है. क्या हसन साहब और जामिया हिन्दुओं के इस दर्द को महसूस करते हैं?
दर्द तो सब को होता है. हम दूसरों से कहें कि हमारा दर्द महसूस करो पर हम ख़ुद दूसरों का दर्द महसूस न करें तो बात कैसे बनेगी? आइये सब एक दूसरे का दर्द महसूस करें और उसे दूर करने के उपाय खोजें और उन पर अमल करें.
4 comments:
"आओ एक दूसरे का दर्द महसूस करें" वैसे अगर इतिहास पढा जाये और हिन्दुस्तान का हालात देखा जाये तो समझ में आ जायेगा मुस्लमान हिन्दुस्तान को दर्द के शिवाय कुछ नही दिया
पोस्ट का शीर्षक पढ़कर आपके ब्लॉग पर आया था निराशा हाथ लगी. एक कमेन्ट भी था उसमे नफरत की बू आ रही थी. हमें मानवीयता पर विश्वास करना चाहिए जो हमने कभी नही किया. आज हम मुस्लिमो को गलिया रहे हैं दुसरे को गलियाना आसान है. हकीकत तो यह है की हम हिंदू से भी प्यार नही करते. चंदन चौहान जी और आप गुप्ता जी दलित हिंदू से प्यार करते हैं क्या आप और हम सवर्ण उनसे रोटी बेटी के सम्बन्ध जोड़ने को तैयार हैं. पहले हमें अपने गिरेवान में झांकना चाहिए.......
हेमंत जी, आप की टिपण्णी का स्वागत है.
मैं किसी हिंदू को दलित नहीं मानता. कोई किसी को दलित समझे या कहे तो वह दलित नहीं हो जाता. मैं यह मानता हूँ कि सब हिन्दुओं को समान अवसर नहीं मिले. जिन हिन्दुओं ने दूसरे हिन्दुओं को अपने से नीचा समझा और उन्हें समान अवसर नहीं मिलने दिए, उन्होंने हिंदू धर्म की मूलभावना के ख़िलाफ़ काम किया. मेरे विचार में इन लोगों को दलित कहा जाना चाहिए. किसी भी हिंदू को ख़ुद को बड़ा और दूसरे को छोटा कहने का अधिकार नहीं है.
आपने एक व्यक्तिगत प्रश्न पूछा है. मेरे परिवार का कोई सदस्य, कोई रिश्तेदार, कोई मित्र किसी दूसरे हिंदू को दलित नहीं मानता, इस लिए हमारे सवर्ण या किसी को दलित कहने या होने का कोई मतलब ही नहीं रह जाता. यह कोई कारण नहीं है किसी से रोटी-बेटी का सम्बन्ध जोड़ने या न जोड़ने का.
आपको मेरे लेखों से निराशा होती है यह मेरे लिए दुःख का विषय है. पर मैं अपने सोच के आधार पर लिखता हूँ. मेरे इस सोच का आधार परस्पर प्रेम और आदर है. आपको यह मेरे लेखों में नजर नहीं आता तो यह आपका सोच है.
हेमंत जी, भाई मै या कोई भी भारत का आम आदमी किसी भी मुस्लिम को दुशमन नही मानता,फ़िर आप ने केसे कह दिया? आप सुरेश जी का पुरा लेख तो पढ गये लेकिन असल बात को ध्यान से नही पढ पाये,हर देश का दुशमन वो है जो देश के दुश्मनो क साथ दे, उन की तरफ़ दारी करे,आज के जामने मै तो कोई अपने बच्चो की भी गारंटी नही लेता पता नही लडका बाहर जा कर क्या करता है, भाई साहिब चाहे वो हिन्दु हो या मुस्लिम जो चोर का साथ देगा वो खुद भी चोर कहलायेगा ? ओर चोर ़ओर है या नही यह काम आदालत का है, मेरा, आप का सुरेश जी का या फ़िर 'मुशीरुल हसन का काम नही...
सुरेश जी तो साफ़ लिखा है "आओ एक दूसरे का दर्द महसूस करें"
धन्यवाद
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