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चुनाव आयुक्त एक संबैधानिक पद है,
इस का कोई विचार नहीं,
अपने पद की गरिमा का ध्यान नहीं,
दूसरे पद की गरिमा भी स्वीकार नहीं,
कौन शर्मिंदा हुआ?
जनता या जन-प्रतिनिधि?
जेल से छूटकर वह अदालत चले गए,
विधान सभा ने एक प्रस्ताव पास कर दिया,
अदालत का कोई नोटिस स्वीकार्य नहीं,
अदालत एक संबैधानिक संस्था है,
इस का भी कोई विचार नहीं,
उसकी गरिमा भी स्वीकार नहीं,
कौन शर्मिंदा हुआ?
जनता या जन-प्रतिनिधि?
विधान सभा एक संबैधानिक संस्था है,
जन-प्रतिनिधि एक संबैधानिक पद,
अपनी मर्यादा का आदर नहीं,
दूसरों की मर्यादा का आदर नहीं,
कोई संयम नहीं, कोई अनुशासन नहीं,
जन-प्रतिनिधिओं का यह व्यवहार,
करता है सिर्फ़ शर्मिंदा जनता को,
जिन्होनें चुना है उन्हें.
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