हर व्यक्ति कवि है. अक्सर यह कवि कानों में फुसफुसाता है. कुछ सुनते हैं, कुछ नहीं सुनते. जो सुनते हैं वह शब्द दे देते हैं इस फुसफुसाहट को. एक और पुष्प खिल जाता है काव्य कुञ्ज में.
दैनिक प्रार्थना
हमारे मन में सबके प्रति प्रेम, सहानुभूति, मित्रता और शांतिपूर्वक साथ रहने का भाव हो
दैनिक प्रार्थना
है आद्य्शक्ति, जगत्जन्नी, कल्याणकारिणी, विघ्न्हारिणी माँ,
सब पर कृपा करो, दया करो, कुशल-मंगल करो,
सब सुखी हों, स्वस्थ हों, सानंद हों, दीर्घायु हों,
सबके मन में संतोष हो, परोपकार की भावना हो,
आपके चरणों में सब की भक्ति बनी रहे,
सबके मन में एक दूसरे के प्रति प्रेम भाव हो,
सहानुभूति की भावना हो, आदर की भावना हो,
मिल-जुल कर शान्ति पूर्वक एक साथ रहने की भावना हो,
माँ सबके मन में निवास करो.
सब पर कृपा करो, दया करो, कुशल-मंगल करो,
सब सुखी हों, स्वस्थ हों, सानंद हों, दीर्घायु हों,
सबके मन में संतोष हो, परोपकार की भावना हो,
आपके चरणों में सब की भक्ति बनी रहे,
सबके मन में एक दूसरे के प्रति प्रेम भाव हो,
सहानुभूति की भावना हो, आदर की भावना हो,
मिल-जुल कर शान्ति पूर्वक एक साथ रहने की भावना हो,
माँ सबके मन में निवास करो.
Sunday, 2 March 2008
जनता का तंत्र या जनता पर तंत्र???
स्पीकर महोदय ने कहा,
जनता के प्रतिनिधि कर रहे हैं ओवरटाईम,
मिटाने को जनता का तंत्र भारत मैं,
कुछ अजीब लगी मुझे यह बात,
कहाँ देखा उन्होंने जनता का तंत्र?
कहते हैं पहले गुलाम था भारत,
चलता था विदेशी राजा का तंत्र,
अब कहते हैं आजाद है भारत,
क्योंकि चलता है देश मैं जनता का तंत्र,
सब जानते हैं यह एक किताबी बात है,
ग़लत है कहना 'जनता का तंत्र',
सही है कहना 'जनता पर तंत्र',
पहले था विदेशी राजा का तंत्र,
अब है देसी राजा का तंत्र,
या कहें,
देसी बनी विदेशी रानी का तंत्र,
जनता पहले भी जनता थी,
जनता आज वही जनता है,
पिटने को, मरने को,
भूख से, गोली से,
विजली और पानी का संकट,
कमर तोड़ वढ़ती महंगाई,
घर और वाहर नहीं सुरक्षित,
जुल्म पुलिस का, महंगा न्याय,
सब जनता के लिए समर्पित.
स्पीकर महोदय ने कुछ कहना था,
स्पीकर महोदय ने कुछ कह दिया,
अखबारों ने छाप दिया,
टी वी ने दिखा दिया,
बात ख़त्म हो गई.
मेरी कविता भी ख़त्म हो गई.
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