दैनिक प्रार्थना

हमारे मन में सबके प्रति प्रेम, सहानुभूति, मित्रता और शांतिपूर्वक साथ रहने का भाव हो


दैनिक प्रार्थना

है आद्य्शक्ति, जगत्जन्नी, कल्याणकारिणी, विघ्न्हारिणी माँ,
सब पर कृपा करो, दया करो, कुशल-मंगल करो,
सब सुखी हों, स्वस्थ हों, सानंद हों, दीर्घायु हों,
सबके मन में संतोष हो, परोपकार की भावना हो,
आपके चरणों में सब की भक्ति बनी रहे,
सबके मन में एक दूसरे के प्रति प्रेम भाव हो,
सहानुभूति की भावना हो, आदर की भावना हो,
मिल-जुल कर शान्ति पूर्वक एक साथ रहने की भावना हो,
माँ सबके मन में निवास करो.

Friday, 28 March 2008

चुल्लू भर पानी मैं डूब नहीं मरते

मैं अक्सर सोचता हूँ
आम् जनता के प्रतिनिधि
आम् जनता की तरह क्यों नहीं सोचते?
आम् जनता की तरह क्यों नहीं देखते?
आम् जनता की तरह क्यों नहीं समझते?

प्रधान मंत्री के अनुसार भारत के शहरौ मैं
दिल्ली सबसे साफ सुथरी है, हरी भरी है, सुन्दर है
किस दिल्ली की बात करते है वह?
यह आम जनता की दिल्ली तो नहीं
वह तो न साफ सुथरी है, न हरी भरी है, न सुन्दर है
वहॉ तो पानी भी पूरा नही मिलता
विजली की भारी किल्लत रहती है
जहाँ जनता न घर मै सुरक्षित है न बाहर
पुलिस से उसे डर लगता है
कही और भाग जाने को मन करता है

दिल्ली के वित्त मंत्री कहते है
जरूरी चीजो की कीमते नही बढ़ी
यहाँ जनता की कमर टूट गई है महंगाई से
उन्हें टूटी कमर दिखाई नहीं देती
जो भुक्तभोगी है उसे झुट्लाते हैं
ग़लत आंकड़े दिखाते हैं
जनता की भूख पर राजनीति करते है
चुल्लू भर पानी मैं डूब नहीं मरते हैं.

कैसा प्रजातंत्र है यह?
कैसे हैं यह प्रजा के प्रतिनिधि?
कैसी है यह प्रजातांत्रिक सरकार?
जो जनता का प्रतिनिधित्व नहीं उस पर शासन करती है
जो सच को झुट्लाती है
झूट को सच कह कर बतियाती है,
विदेशी राजतन्त्र की गुलामी से आजादी तो मिल गई,
पर कब मिलेगी आजादी स्वदेशी प्रजातंत्र की गुलामी से?

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