हर व्यक्ति कवि है. अक्सर यह कवि कानों में फुसफुसाता है. कुछ सुनते हैं, कुछ नहीं सुनते. जो सुनते हैं वह शब्द दे देते हैं इस फुसफुसाहट को. एक और पुष्प खिल जाता है काव्य कुञ्ज में.
दैनिक प्रार्थना
हमारे मन में सबके प्रति प्रेम, सहानुभूति, मित्रता और शांतिपूर्वक साथ रहने का भाव हो
दैनिक प्रार्थना
है आद्य्शक्ति, जगत्जन्नी, कल्याणकारिणी, विघ्न्हारिणी माँ,
सब पर कृपा करो, दया करो, कुशल-मंगल करो,
सब सुखी हों, स्वस्थ हों, सानंद हों, दीर्घायु हों,
सबके मन में संतोष हो, परोपकार की भावना हो,
आपके चरणों में सब की भक्ति बनी रहे,
सबके मन में एक दूसरे के प्रति प्रेम भाव हो,
सहानुभूति की भावना हो, आदर की भावना हो,
मिल-जुल कर शान्ति पूर्वक एक साथ रहने की भावना हो,
माँ सबके मन में निवास करो.
सब पर कृपा करो, दया करो, कुशल-मंगल करो,
सब सुखी हों, स्वस्थ हों, सानंद हों, दीर्घायु हों,
सबके मन में संतोष हो, परोपकार की भावना हो,
आपके चरणों में सब की भक्ति बनी रहे,
सबके मन में एक दूसरे के प्रति प्रेम भाव हो,
सहानुभूति की भावना हो, आदर की भावना हो,
मिल-जुल कर शान्ति पूर्वक एक साथ रहने की भावना हो,
माँ सबके मन में निवास करो.
Friday 14 March, 2008
यथा राजा तथा प्रजा
रघुकुल रीति सदा चली आई,
प्राण जाए पर वचन न जाई.
ऐसे होते थे राजा,
और ऐसी ही होती थी प्रजा,
अब न राजा ऐसे रहे, न प्रजा,
जो जितना बेईमान वह उतना अच्छा राजा,
जो जितनी बेईमान वह उतनी अच्छी प्रजा,
कहावत फ़िर चरितार्थ हुई,
यथा राजा तथा प्रजा.
प्रजा ने लिया उधार बैंक से,
राजा ने कहा वापस मत करना,
समझना वोट की कीमत है,
मदद के नाम पर रिश्वत,
देता है राजा प्रजा को,
प्रगति की नई परिभाषा है यह.
पहले राजा मानते थे प्रजा को पुत्रवत,
अब मानते हैं एक वोट वत,
बाँटते हैं नफरत, मांगते हैं वोट,
सच्चाई इमानदारी पर करते हैं चोट.
प्रजा ने टेक्स दिया राजा को,
राजा ने खर्च किया ख़ुद पर,
विकास कार्यों मैं पाँच पैसे,
पंचान्वें अपनी जेब मैं.
बना दिया बाज़ार राष्ट्र को,
भूल गए अपना इतिहास,
खेतों मैं फक्ट्री लगाईं,
फसलों को करके बरबाद.
जब बच्चे थे तब पढ़ते थे,
कृषि प्रधान देश है भारत,
अब बूढ़े हो कर पढ़ते हैं,
कंक्रीट का जंगल भारत.
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