दैनिक प्रार्थना

हमारे मन में सबके प्रति प्रेम, सहानुभूति, मित्रता और शांतिपूर्वक साथ रहने का भाव हो


दैनिक प्रार्थना

है आद्य्शक्ति, जगत्जन्नी, कल्याणकारिणी, विघ्न्हारिणी माँ,
सब पर कृपा करो, दया करो, कुशल-मंगल करो,
सब सुखी हों, स्वस्थ हों, सानंद हों, दीर्घायु हों,
सबके मन में संतोष हो, परोपकार की भावना हो,
आपके चरणों में सब की भक्ति बनी रहे,
सबके मन में एक दूसरे के प्रति प्रेम भाव हो,
सहानुभूति की भावना हो, आदर की भावना हो,
मिल-जुल कर शान्ति पूर्वक एक साथ रहने की भावना हो,
माँ सबके मन में निवास करो.
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Wednesday, 27 January 2010

मंहगाई है जनता का भाग्य !!!

आखिरकार वह वक्त आ ही गया,
सरकार ने माना मंहगाई है,
कवायद शुरू हो गई,
मंहगाई कम करने की नहीं,
इल्जाम लगाने की एक दूसरे पर,
विरोधी पक्ष ने बात पकड़ ली,
तो फिर सब मिल गए,
मंहगाई की बात फिर गए भूल,
जनता का भाग्य जब यही है,
तब सरकार क्या करे?

Saturday, 29 March 2008

हम चुनाव लड़ रहे हैं, हमें आप का वोट चाहिए

यह तो कमाल हो गया! जरूर आज सूरज पश्चिम से निकला था. मेरे दरवाजे पर नेताजी आए. नहीं मैं उन्हें जानता नहीं, पहचानता भी नहीं. उन्होंने कहा वह नेता हैं, उनके साथ काफी लोग भी थे, मेरे पास उनकी बात न मानने का कोई कारण भी नहीं था. इसलिए मैंने मान लिया कि वह नेता हैं. बैसे मैंने कभी सोचा नहीं था कि कभी कोई नेता मेरे दरवाजे पर आएगा. मैं बैसे ही नेताओं से बचता हूँ और ईश्वर से यह प्रार्थना करता रहता हूँ कि कोई नेता मेरे दरवाजे पर न आए. मेरा मानना है कि देश की बहुत सी समस्याओं के लिए यह नेता ही जिम्मेदार हैं. किसी समाज को यदि अपराध और भ्रष्टाचार से मुक्त करना है तब पहले उसे नेताओं से मुक्त करना होगा.

तो मैं कह रहा था, मेरे दरवाजे पर नेता जी आए.
उन्होंने कहा - 'हम आपके क्षेत्र से विधान सभा का आगामी चुनाव लड़ रहे हैं'.
मैंने कहा - 'पहले तो मैं लड़ाई में विश्वास नहीं करता. दूसरे आप मेरे क्षेत्र में आकर क्यों लड़ रहे हैं, आप को लड़ना है तो अपने क्षेत्र मैं जाकर लड़िए, तीसरे यह आपका कोई अपना मामला होगा, चौथे मुझे इस में क्यों फंसा रहे हैं?'
उन्होंने कहा - 'आप समझे नहीं',
मैंने कहा - 'तो समझाइए न',
उन्होंने कहा - 'हम चुनाव लड़ रहे हैं',
मैंने कहा - 'यह तो आप पहले ही कह चुके हैं और मैं भी कह चुका हूँ कि आप को लड़ना है तो लड़िए, मैं इस में क्या कर सकता हूँ?'
उन्होंने कहा - 'हमें आप का वोट चाहिए',
मैंने कहा - 'मेरा वोट लड़ने के लिए नहीं है, आप ग़लत जगह आ गए हैं',
उन्होंने कहा - 'आप समझ नहीं रहे हैं',
मैंने कहा - ' अरे भाई तो समझाइए न',
उन्होंने कहा - 'हम चुनाव लड़ रहे हैं और उस के लिए हमें आप का वोट चाहिए',
मैंने कहा - ' अब आप नहीं समझ रहे हैं, मैंने कहा कि मेरा वोट लड़ने के लिए नहीं है, वह आप को नहीं मिल सकता',
उन्होंने कहा - 'अब मैं नहीं समझा',
मैंने कहा - 'मैं समझाता हूँ, मेरा वोट उस के लिए है जो विधान सभा में इस क्षेत्र का प्रतिनिधिव करेगा, उस के लिए नहीं जो लड़ेगा',
उन्होंने कहा - 'सब ऐसा ही कहते हैं, चुनाव लड़ना',
मैंने कहा - 'पर मैं ऐसा नहीं कहता, आप उन के पास जाइये जो चुनाव को लड़ाई मानते हैं और कहते हैं, मैंने आप से पहले ही कहा था कि आप ग़लत जगह आ गए हैं, नमस्कार',
उन्होंने कहा - 'अरे हमारी बात तो सुनिए',
मैंने कहा - 'इतनी देर से और क्या कर रहा हूँ?, नमस्कार ,
उन्होंने कहा - 'अरे',
मैंने कहा - 'नमस्कार',
उन्होंने फ़िर कहा - 'अरे',
मैंने फ़िर कहा - 'नमस्कार',
शायद यह वार्तालाप और देर चलता पर मेने दरवाजा बंद कर लिया.

अपना वोट दीजिये

Friday, 14 March 2008

यथा राजा तथा प्रजा


रघुकुल रीति सदा चली आई,
प्राण जाए पर वचन न जाई.
ऐसे होते थे राजा,
और ऐसी ही होती थी प्रजा,
अब न राजा ऐसे रहे, न प्रजा,
जो जितना बेईमान वह उतना अच्छा राजा,
जो जितनी बेईमान वह उतनी अच्छी प्रजा,
कहावत फ़िर चरितार्थ हुई,
यथा राजा तथा प्रजा.

प्रजा ने लिया उधार बैंक से,
राजा ने कहा वापस मत करना,
समझना वोट की कीमत है,
मदद के नाम पर रिश्वत,
देता है राजा प्रजा को,
प्रगति की नई परिभाषा है यह.

पहले राजा मानते थे प्रजा को पुत्रवत,
अब मानते हैं एक वोट वत,
बाँटते हैं नफरत, मांगते हैं वोट,
सच्चाई इमानदारी पर करते हैं चोट.

प्रजा ने टेक्स दिया राजा को,
राजा ने खर्च किया ख़ुद पर,
विकास कार्यों मैं पाँच पैसे,
पंचान्वें अपनी जेब मैं.

बना दिया बाज़ार राष्ट्र को,
भूल गए अपना इतिहास,
खेतों मैं फक्ट्री लगाईं,
फसलों को करके बरबाद.

जब बच्चे थे तब पढ़ते थे,
कृषि प्रधान देश है भारत,
अब बूढ़े हो कर पढ़ते हैं,
कंक्रीट का जंगल भारत.

Sunday, 2 March 2008

चुनाव का मौसम


आखिरी बजट के साथ,
फ़िर आ गया चुनाव का मौसम,
फ़िर नजर आयेंगे नेता,
फ़िर आ गया वादों का मौसम,
आम आदमी के खास बनने का मौसम,
सड़कों के गड्ढे भरने का मौसम,
अकड़ी गर्दन झुकने का मौसम,
हाथ जोड़ कर मिलने का मौसम,
पुराने वादे भुलाने का मौसम,
नए वादे करने का मौसम,
अच्छे काम भुनाने का मौसम,
बुरे काम नकारने का मौसम,
दूसरों पर इल्जाम लगाने का मौसम,
गुंडों को जेल से छुड़ाने का मौसम,
पार्टी मैं भरती कराने का मौसम,
मन्दिर के चक्कर लगाने का मौसम,
ज्योतिषी के घर आने जाने का मौसम,
हर चुनाव क्षेत्र को कुरुक्षेत्र बनाने का मौसम,
पाण्डवों के हार जाने का मौसम,
कौरवों के जीत जाने का मौसम,
जिस जनता के कपड़े उतारे थे सबने,
उस जनता को कपड़े पहनाने का मौसम,
पार्टी के दफ्तर मैं बोली लगेगी,
किसी भी तरह टिकट पाने का मौसम,
चलो आओ हम भी लड़ें अब चुनाव,
यह है खूब खाने कमाने का मौसम.